इंचो में मैं नापी जाती हूं..तरह तरह से मैं आंकी जाती हूं..
आज नहीं दिन अच्छे..कल हो भी सकते हैं...
आज नहीं दिन अच्छे..
कल हो भी सकते हैं..।
या आंख मूंद कर..
समस्यायों पर..
हम रो भी सकते हैं..।
या फिर सोचें हम..
ये हाल तो कुछ भी नहीं..
और चैन से सो भी सकते हैं..।
या फिर हालात बदलने को..
हम कोई कड़ी पिरो भी सकते हैं..।
कुछ ना कुछ तो करना होगा..
हालात ना वश में हो लेकिन..
हमको तो संभलना होगा..
संभावनाओं को ढूंढना होगा..
मुश्किलों से लड़ना होगा..
अच्छे दिनों के लिए..
किरदारों के भ्रम से निकलकर..
स्वयं विधाता बनना होगा..।
यकीनन होता है ऐसा..
यकीनन होता है ऐसा..
हृदय कहीं रुक जाता है..
काम धाम होते रहते हैं..!!
भेद कई चलते रहते हैं..
मेल मिलाप होते रहते हैं..!!
शांति सुकून की चाहत में..
ताम झाम होते रहते हैं..!!
झूठ फरेब के तिलिस्म में..
कृष्ण राम होते रहते हैं..!!
पाते हैं ना कुछ खोते हैं..
नाम तमाम होते रहते हैं..!!
यकीनन होता है ऐसा..
हृदय कहीं रुक जाता हैं..
दुआ सलाम होते रहते हैं..!!
मास्टर जी पढ़ा रहें हैं..
धूप निकली हुई है..
हरी घास पर बच्चे घेरे हुए..
मास्टर जी पढ़ा रहें हैं..
कुछ गाय है..आस पास
जैसे उनको भी पढ़ने की आस..
चित्रों के कुछ बोर्ड लगे हैं..
क्यारी में कुछ फूल खिले हैं..
कॉन्वेंट जैसी तो व्यवस्था नहीं पर..
तन्मयता से सिखा रहें हैं..
मास्टर जी पढ़ा रहे हैं..
कहीं सुना था ..
सरकारी शिक्षक पढ़ाते नहीं हैं..
बच्चों में मन लगाते नहीं हैं..
पर ये सजीवो में..
ज्ञान का प्रसार..
देख कर लगा मुझे इस बार..
कर्मनिष्ठा ही मूल है..
मास्टर जी ज्ञान फैला रहें हैं..
मास्टर जी पढ़ा रहें हैं..
बच्चों की उत्सुकता दिखाती है कि..
उन्हें भी सब सबक भा रहे हैं..
मास्टर जी पढ़ा रहें हैं..।।
अपना घर एक मंदिर है..
अपना घर एक मंदिर है..
जो भी आए स्वागत है..
हृदय में स्नेह लिए..
अपनेपन का ध्येय लिए..
स्वागत है..स्वागत है..
जो द्वार से ही..
नमस्कार कर ले..
उसका भी स्वागत है..
जो पास आकर..
हाल सुनाए..
उसका भी स्वागत है..
देहरी छूने वाले भी ..
अभिनंदित हैं..
हृदय में जो बस जाए..
उसका भी स्वागत है..
आए मन में भेद लिए..
कुटिल कुटिल जो मुस्काए।
उसका भी स्वागत है..
हमारे हित का सोचे..
और सच्चा मीत कहाए..
उसका भी स्वागत है..
अपना घर एक मंदिर है..
जो भी आए स्वागत है..
शांति, अमन, चैन...ईश्वर व्याप्ति का आधार..
शांति, अमन, चैन...
ईश्वर व्याप्ति का आधार ।।
मुस्कान, अधर का प्रतीक निरंतर..
जब तक शांति का प्रसार..
सुंदरता जीवन की अविरलअपने शहर का हाल बताओ..क्या हाल हैं?
मेरे शहर में धुंध है..
और और कई सवाल हैं...
अपने शहर का हाल बताओ..
उधर क्या हाल हैं ??
व्यस्त हैं सभी..अलग अलग ..
अलग अलग सबके ख्याल हैं..
तुम्हारे उधर क्या हाल चाल हैं??
मैं असमंजस में हूं..
प्रेम करूं स्वयं से ही..
या औरों से भी लौ लगाऊं..
यही सब छोटे मोटे..
यहां बवाल हैं..
तुम बताओ ..
कैसे मिज़ाज ..उधर..
हाल फिलहाल हैं ??
इंजन कोई..
कोई डिब्बा रेल का..
हिस्सा हैं सभी..
एक चलते हुए खेल का..
कुछ हैं ..बहुत आराम से..
कुछ खस्ताहाल हैं..
तुम बताओ उधर..
रफ़्तार की क्या चाल है ??
मेरे शहर में धुंध है..
और कई सवाल हैं.........
…..........…....................!!!!!
हर जुबान कहती है..हर नज़र कहती है..
कहीं उड़ता नहीं..मेरा मन..
कहीं उड़ता नहीं मेरा मन..
तुम्हारे हृदय के द्वार पर ..
ये बैठा रहता है..
कभी जो खुलेंगे द्वार..
दर्शन को तुम्हारे..
वो क्षण सोचा करता है..
मैं तो नश्वर,
मात्र एक किश्वर..
हूं मैं तो सदा से अश्वर..
तुम तो अद्वितीय, अप्रतिम..
हे ईश्वर..कई नामों वाले..
हर एक नाम से तुम्हें ..
जपता रहता है..
कहीं उड़ता नहीं मेरा मन..
तुम्हारे हृदय के द्वार पर.
ये बैठा रहता है..
कैसे मैं शशक्त बनूं..
कैसे मैं शशक्त बनूं..
तुम पर जो इतनी आसक्त हूं..!!
मां जो हूं मैं तुम्हारी..
कटु बातों को भी भुला देती हूं..
उम्र के हर पड़ाव में..
बिल्कुल ना मैं सख्त हूं..
कैसे मैं शसक्त बनूं..
तुम पर जो इतनी आसक्त हूं..!!
बहन जो हूं मैं तुम्हारी..
भाग खुद का मैं तुम्हें थमा देती हूं..
लोलुप ना कोई लालस्त हूं..
कैसे मैं सशक्त बनूं..
तुम पर जो इतनी आसक्त हूं..!!
पत्नी जो हूं मैं तुम्हारी...
हर तरह से तुम्हारी भक्त हूं..
कैसे मैं शशक्त बनूं..
तुम पर जो इतनी आसक्त हूं..
पुत्री रूप में..
हर बात तुम्हारी पालित करने को..
मैं तो अभयस्त हूं..
कैसे मैं शशक्त बनूं..
तुम पर जो इतनी आशक्त हूं..!!
स्नेहिता मैं जो हूं..
स्नेही ही सिर्फ मैं हूं..
कलुषित भावनाओं से ..
मैं तो ना ग्रस्त हूं..
कैसे मैं शशक्त बनूं..
तुम पर जो इतनी आसक्त हूं..!!!
…….......................................................
.............................................................
समान विकास, समुचित सम्मान..
समान स्नेह, उपयुक्त उत्थान..
इस बात का बस मान रख लो..
मैं हूं जो आरंभ तुम्हारा..
कभी सहचरिनी, कभी सहारा..
तुम संग पलती बढ़ती..
और तुम्हारा ही रक्त हूं..
शशक्त मैं हो जाऊंगी..
बस तब ही जब ..
तुम्हारी तरफ से मैं..
आश्वस्त हूं..
.……...........................................
…...............................................
दफ्तर से घर जब लौटकर..
दफ्तर से घर जब लौटकर..
मै आती हूं..
बच्चे का मंगाया हुआ..
कोई ना कोई सामान लाती हूं..
कभी कभी नहीं भी ला पाती..
फिर भी संतोष उनके मुख पर पाती हूं..
पर सोचकर वो खुशी..असीम..
करती हूं प्रयास ..
ना आऊं कभी मैं खाली हाथ..
एक टॉफी या चॉकलेट..
की बात नहीं..
बच्चों का दिनभर का इंतजार है..
घर में चाहे सब कुछ हो..
पर वो एक नई चीज़ ..
जो हाथ में मेरे होती है..
नई खुशी नई भूख ..
तृप्त मन ..पूर्ण खुशी..
अभिव्यक्ति से परे..
थोड़ा सा ही कुछ पाकर ..
चहकते बच्चे मेरे..।।
थोड़ा तो आराम दो..
कम से कम चाय बनाना सीख लो..
फरमानों को थोड़ा विराम दो..
हे पुरुष समाज !!
हमें थोड़ा तो आराम दो..
घर की लक्ष्मी ..
नाम की..क्यूं !!
हमें मुकम्मल नाम दो..
हे पुरुष समाज !!
हमें कुछ तो आराम दो..
अब तो हमारी भी हिस्सेदारी..
घर का खर्च चलाने में..
वापस जो घर आऊं तो..
मेरे जैसी मुस्कुराहट तुमको..
और सुनहरी शाम दो..
हे पुरुष समाज !!
हमें भी आराम दो..
दर्द मुझे भी..
दिनभर की थकी हारी..
मै भी तुम जैसी..
कुछ तो संज्ञान लो..!
हे पुरुष समाज !!
थोड़ा तो आराम दो..
फरमानों को विराम दो..!!
और मैं भी हूं...
रिश्ते नाते..
और रिश्तेदार..।
लोग अपने..
और घर परिवार..।
भूल ना जाना आदतन !!
उनमें एक मैं भी हूं..।
मै भी हूं ..
हर पूजा की साथी..
साथी हर कदम की..
साथी मैं हर वचन की
मन के अधूरेपन की..
झुठला ना देना आदतन..
एक जीवन..
मैं भी हूं..।
स्वागत प्रियजन का..
उमंगों से भरे..
उत्सव तीज त्योहार..
खुशियां हों अपार..
ठुकरा ना देना आदतन..
एक मन मैं भी हूं..!
स्वीकार कर लो..जो सभ्य और सही हो..
स्वीकार कर लो..
जो सभ्य और सही हो..
सीखने में शर्म कैसी ?
चाहे बात छोटे बच्चे ही ने कही हो।
तू तू मैं के आलाप..
क्योंकर करें हम ऐसे जाप..
उम्र का..
हैसियत का मसला ही नहीं है..
ये आपकी जुबान का..
किसी की शक्सियत की पहचान का..
तरीका है..
"आप"के संबोधन का ..
कोई विकल्प नहीं है..
सभी हैं गुरु किसी ना किसी तरह. .
यहां कोई भी अल्प नहीं है..।।
यहां कोई भी अल्प नहीं है..।।
चाय..
रावण अभी मरा नहीं है..
रावण अभी मरा नहीं है..
कितने हैं ये भी पता नहीं है..
लक्ष्मण, राम पलायन कर गए..
हनुमान किधर हैं..किधर गए??
हृदय सभी का चंचल सा..
स्थिरता का पता नहीं है..
रावण अभी मरा नहीं है..
नारी रहे वश में सदा..पुरुष के..
यही सदा की विडंबनाय..
पुरुष ही उसका भाग्य विधाता..
मनमुताबिक भोगी जाए..
शोषण सदा प्रथा रही है..
रावण अभी मरा नहीं है..
किसमें किसमें हैं ..
ये भी पता नहीं है..
होते बहुत बखान ..
नारी के उत्थान के..
करते सभी अहसान उसपर..
बेचारी सुकुमारी जान के..
या कुछ दंभ के पाश..
प्रेम स्वरूप बांध के..
शशक्तता एक धता रही है..
रावण अभी मरा नहीं है..।।।।
मशाल ए दयार ..
यूं तो होते हैं हर गली में शायर दो चार...
मगर जो दिल की बात सुन ले..
वो ही मशाल ए दयार है..
मसले बहुत से हैं..
शब्दों में पिरोना बात नहीं कोई.
हाथों में ले ले बात..
वही खालिस यलगार है..
वो ही मशाल ए दयार है।
उस बिंदु पर आओ ना..
उस बिंदु पर आओ ना..
ना कोई कहासुनी हो..
मै भी जहां सही हूं..
तुम भी जहां सही हो..
वाद विवाद किनारे हों..
हम दोनों ही..
एक दूसरे के सहारे हों..
ना कोई तना तनी हो..
उस बिंदु पर आओ ना..
जहां दोनों लोग सही हों.
इतने कटु क्यूं नेत्र तुम्हारे..
क्या कोई संताप है !!
है तो हमारी तुम्हारी ही..
जो भी कोई बात है..
मै समर्पित कब से हूं..
तुम भी झुक जाओ ना..
क्यों रात अंधेरी घनी हो !!
उस बिंदु पर आओ ना..
जहां दोनों लोग सही हों..
तुम कठोर , मै कोमल..
ताकत तुम, मैं संबल..
तुम सृष्टि का गौरव..
मैं सृष्टि का प्रतीक प्रतिपल..
इस भेद का जश्न मनाओ ना...
भरपूर रोशनी हो..
उस बिंदु पर आओ ना..
जहां दोनों लोग सही हों..।।
वो 12 रूपए...
वो 12 रुपए ..
जो लावारिश पड़े थे..
पता नहीं किसकी जेब से गिरे थे..
नजर उधर पड़ी ..
एक शख्स की..
उठा कर बोला..
पास में बैठी महिला से..
3 रुपए तो देना..
12 में 3 जोड़ देते है..
किराया पूरा हो जाएगा..।।
किराया तो खैर पूरा हो गया..
पर देखो क्या गया..
हिन्दू थे तो धर्म गया..
मुस्लिम थे तो ईमान ..
एक जरा से अधैर्य ने कर दी..
आप की सम्पूर्ण पहचान.. !!
इतना ही बहुत है..तुम जो हाथ बंटाते हो..
तुम किचन तक चले आते हो..
इतना ही बहुत है..
कर नहीं पाते मदद पूरी..
आटा गूंधने में पानी जो गिराते हो..
इतना ही बहुत है..
चाय जो मैं बनाती हूं..
छानकर जो तुम ले जाते हो..
इतना ही बहुत है..
सब्जी काटते हैं जब हम..
लहसुन जो छिलाते हो..
इतना ही बहुत है..
खाना जब बन जाता है..
सबको जो परोस आते हो..
इतना ही बहुत है..
मेरे साथ मिलकर….
अंत में खाना जो खाते हो..
इतना ही बहुत है..
लोगों के निरर्थक व्यंग पर..
हस कर टाल जाते हो..
इतना ही बहुत है..
तुम जो एक नई उम्मीद जगाते हो..
बहुत है 💛💛बहुत है💛💛बहुत है💛💛..
...............................................................
...............................................................
मेरे बच्चे ..मेरे भाइयों ..मेरे पापाजी ..
और मेरे पति जी..सभी को धन्यवाद ...........
मेरे तो नहीं हैं...
नयन तुम्हारे, अधर तुम्हारे..
मेरे तो नहीं हैं..
क्योंकर अवलोकन उनका कर बैठे !!
वचन तुम्हारे ,कथन तुम्हारे..
मेरे तो नहीं हैं..
क्योंकर उनको हृदय में जगह दे बैठे !!
कर तुम्हारे, अवसर तुम्हारे..
मेरे तो नहीं हैं..
क्योंकर उम्मीद उनसे कर बैठे!!
त्याग तुम्हारे, चयन तुम्हारे..
मेरे तो नहीं हैं..
कैसे वरण जीवन का तुम हो बैठे!!
अस्वीकार मत करना...
क्यूंकि ये प्रणय निवेदन नहीं..
तुम्हारी एक परिक्रमा मात्र है..
प्रयोजन ना कोई समझना इसे..
जो भी है ..
सब निस्वार्थ है..।।
किराए के घर..
किराए के घर..
मेरी गली के..
शायद सभी गलियों के..
बिना उजालों के थे..
सभी किरायेदार जो..
अपने अपने घरों को चले गए थे..
उनके मालिक कहां रहते हैं !!
जो आए भी नहीं इधर?
ये कौनसा विस्तार है..
अनगिनत घर जो सूने रह जाते हैं..
परिणति खाली रह जाना ही है..
शायद..
जिन्हे किरायेदार बसाते हैं !!
ऐसा इसलिए भी है ..
और नियत भी यही है
समेट उतना ही पाओगे..
जितनी अंजुली है..
नाम का तो सबकुछ है..
जमीन और जायजाद..
पर उन किराए के मकानों का ..
नाम बस इतना है..
आज की दीवाली कागज पर . .
कल का वो सपना है. !!
जो चाहे अर्थ लगा लो..
मेरी बातों में तो हैं बातें कई..
चाहे जो अर्थ लगा लो..
तुम जैसे हो..
वैसा ही अर्थ पाओगे..
निर्भर है तुम पर ही..
अब जो भी अर्थ निकालो..
अर्थ भी मै हो सकती हूं..
अर्थ का आधार भी...
पर समर्थ तुम ही हो..
चाहे जैसे मुझे संभालो..।
अर्थहीन भी..
क्या पता मेरा ..
ख्याल हो..
पर सब तर्क तुम्हीं हो..
असमंजस से मुझे बचा लो..!!!!!
ये बताओ भले ही ना..
कौन हो तुम..
ये बताओ भले ही ना..
कैसे हो ..
ये ही बता दो ।
दूर तक चलना ..
साथ हमारे जो मुनासिब नहीं..
हृदय से मुझे अपना लो..
मुफलिसी का रिश्ता है..
हमारा तुम्हारा..
कोई लेन देन की बात नहीं होगी..
बस सहमति के कुछ स्वर मिला दो..
नाम तुम्हारा जानने की ..
ख्वाहिश नहीं हमारी..
अपनी कोई यादगार
सुझा दो..।
फर्क बहुत होगा ..
हम में और तुम में..
कोई मेल बताओ भले ही ना..
कोई संयोग है कि नहीं..
इतना समझा दो..।
एक पारदर्शी शीशा...
बनाएंगे तो खाएंगे...
बनाएंगे तो खाएंगे..
हमें कोई बनाकर खिलाता नहीं..
आते हैं बाहर से ..
पानी भी कोई पिलाता नहीं..
ये शिकायत नहीं है कोई..
मन का बस उदगार है..
कोई मशविरा हमसे लिया जाता नहीं..!
कौनसा रंग होगा..
उस दुनिया का..
हमारी आंखों में देखा जाता नहीं !
अंश हमारे जो हैं..
संभालने का तो आदेश हमें..
उन हाथों में लेकिन हाथ हमारा..
थमाया जाता नहीं..
....................….......
यही क्रम है..
होता आया यही..
बहन भाई का बढ़ना समान ..
व्यवहार में अभी..
आया नहीं..
मां और पिता ..
स्नेह बराबर दोनों का..
बच्चों ने समझ पाया नहीं..
पति पत्नी के अधिकार बराबर..
आदर और प्यार बराबर..
ऐसा जीवन जो ..
बन पाया नहीं..
....……..…........................
........................................
बनाएंगे तो खाएंगे..
लेकिन..सोचते हैं..
कभी तो वो दिन आयेंगे
मिलकर खाना बनाएंगे..
मिलकर वक्त बिताएंगे..
द्वार कभी खुलेगा आने पर मेरे..
खड़े होंगे..
बरसो की प्यास बुझाने को..
एक ग्लास पानी लिए
मेरे अपने प्रिय........……........
जाना तो बताकर जाना..
यूं तो कुछ खास तारुफ नहीं आपसे..
मगर जाना तो बताकर जाना..
बहुत नाज़ुक से हालात हैं..
आजकल हमारे..
ना इनपर मुस्कुरा के जाना ..
कभी मिलो जो आगे कभी..
पहचान सको मुझे..
बिल्कुल से ना भुला के जाना..
तुम्हारी बातों का जो इतना ..
शौक कर बैठे हैं..
जाना ही है जो तुमको..
बातों के सिलसिले बना के जाना..
जाना है तो बताकर जाना ।।
हां के सिवा जवाब क्या था..
हमसे तारूफ जो नहीं था कुछ खास..
उनकी बातों का..
हां के सिवा जवाब क्या था !!
हमें जो सोना नहीं है कभी..
क्या फर्क पड़ता है कि ख्वाब क्या था ।।।
यूं भी पूछे नहीं जाते कभी हमसे..
हमारे विचार..
और अनुमति की जरूरत..
गैरजरूरी लगती है..
ऐसे में क्या सोचे कि..
इंतखाब क्या था..
अपने ही है..
उनसे हिसाब क्या मांगे..
अधिकार भी कोई चीज़ है..
पढ़ने की किताब क्या मांगे..
लेकिन अब ये हालात बदलने चाहिए..
मौन रहना ही हमारा भाग्य नहीं केवल..
प्रश्नों की भी आज़ादी मिलनी चाहिए..
और लोगो के खयालात बदलने चाहिए...
देखो ऐसा है...
देखो ऐसा है..
जीवन में अगर.. सब कुछ पैसा है..
हाथ सर पर तो जरूर होंगे..
पर आशीर्वाद के स्वर नहीं मिलेंगे..
विपत्ति तुम्हारी खैर ...भाई बंधु हर लेंगे..
नेत्र विहवल नहीं मिलेंगे ।।
आलिंगन खैर होंगे..साथ तुम्हारा देने को..
स्पर्श के कर नहीं मिलेंगे..!!
पास जरूर होंगे..जीवन का ऋण चुकाने वाले..
स्नेहिल प्रतिफल नहीं मिलेंगे..।।
देखो ऐसा है..
जीवन में नहीं, सब कुछ पैसा है !!!
उपाय..
दूसरों के लिए नियम कानून..
अपने लिए उपाय है..
यही ज्ञान सनातन..
अन्याय का अभिप्राय है..
नियम बनाए जिसने ,
अपने लिए संशोधन किए ..
खुद चाहे जैसे भी जिएं,
अन्य को बेड़ियों के संकाय हैं...
खुद के मार्ग सरल -सरस,
औरों के लिए कठिन प्राय हैं..
जो ना होता ऐसा तो..
गीता क्यों सुनानी पड़ती !!
कभी जो रावण वध की कथा..
महाभारत क्यों रचानी पड़ती..
अन्तिम अवलोकन लेकिन..
कर्म, ज्ञान और बल..
बदलते रहते हैं मानक इनके,
जन्म से लेकर मृत्यु तक प्रतिपल ।
निश्चित है.. अवसान - दुर्गति,
घमंड ,अन्याय के प्रतिफल ।।
दिलचस्पी..
दिलचस्पी...दूसरो की बातो मे !
दिलचस्पी..दूसरो के हालातों में !
दिलचस्पी..है क्या कोई कर रहा ..
दिलचस्पी..कोई क्यों बढ़ रहा..
दिलचस्पी..कोई गिरा क्यों नहीं..
दिलचस्पी..कोई आपात उसपर पड़ा क्यों नहीं..
दिलचस्पी है हर उस बात में..
दूसरो के पतन,आघात में..
दिलचस्पी..नहीं जीवन की सुन्दरता में,
दिलचस्पी है ..नश्वर उन्मादित खयालात में..
दिलचस्पी के आंकड़े बड़े बड़े है..
पर वो नहीं सत्य पर खड़े हुए है..
दिलचस्पी जो हो खुद के ..
खुद के प्रश्न चिह्न में..
दूसरों के प्रति ऋण में..
परोपकार ;सरोकार में
केवल खुद के व्यापार में..
दिलचस्पी के मायने बदल जो जाएं...
तुम भी हंस सको खुल कर फिर..
हम भी थोड़ा मुस्कुराए !!!
अहमियत
अहमियत नहीं कुछ अगर...
जीवन के पथ, पड़ाव में..
निराश ना होना फिर भी..
इन अहम के उतार चढ़ाव में..
कोई बड़ा कोई छोटा .….
एक ठहराव की बात है केवल..
विशाल ,वृहद , और सतत जीवन की ..
सत्यता केवल इतनी..
हार जाते हैं सभी
अन्तिम इच्छा के चुनाव में !!!
एक मुस्कुराता हुआ चेहरा...
एक मुस्कुराता हुआ चेहरा देखा..
कई मुस्कुराते हुए फिर, चेहरे नजर आए ,
फिर मुस्कुराते हुए चेहरों पर , कुछ पहरे नज़र आए !!
वो कौन सी बंदिशें थी , जो जान नहीं पाए हम,
पर देख कर उन्हे कुछ राज गहरे नजर आए।
ये दुनिया की सच्चाई के प्रतीक थे कुछ शायद,
जो आधी आबादी के लिए ही बनी है,,
जो हसती है, खेलती है,
दुख भी झेलती है..
कुछ कहती नहीं ज्यादातर
ज्यादातर नहीं सोचती है,
उसकी गणित बहुत कमजोर है
उसकी मन की इसलिए बाते कुछ अलग सी हैं...
चेहरे के भाव कुछ और हैं!!!
सीता हैं अभी जंगल में
सीता हैं अभी जंगल में,
रावण अभी तक मरा नहीं है!
राम जब आयेंगे..
युद्ध करेंगे
मुक्त तब सीता होगी
राम अभी तक जन्मे नहीं है
रावण अभी तक मरा नहीं है
लक्ष्मण का भी पता नहीं है
खत्म होने से पहले..

खत्म होने से पहले, एक पहल हो ज़िन्दगी की
कुछ कहने लायक काम हो जाय!
यूं ही जाया किए उम्र ए ज़िन्दगी
थोड़ी देर के लिए ही नाम हो जाए!!!
तामाशीन
या तामाशीन हैं शायद!!
मतलब भर की आंख खुली बंद रखते हैं!!!
उनका मसला हो, उम्मीद मदद की ...
दूसरों के मसलों पर कान मुंह बंद रखते हैं!!!
कुछ भी....होता..
ओझल तन मन...जीवन.. हम तुम केवल बंधे बंधे.. हम राही केवल, नहीं हमराही...
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