कुछ बच्चों को खेलते देखा..कुछ को बैठे शांत..
फूलों के गमले, मुरझाईं कुछ बेलें, कुछ जीवन विश्रांत..
कुछ स्त्रियों के केश मेहंदी में डूबे हुए..
छुपाने की,रंगने की, क्योंकर चाहत ?
कुछ बीते हुए को पाने की शायद थी अकुलाहट..
कुछ पुरुषों को बैठे देखा भिन्न भिन्न अवेगों में..
अखबारों के पन्ने कुछ ..उन अलसाई आंखों में..
भविष्य के कुछ सपने देखे..साथ बैठे कुछ अपने देखे..
परिवार देखे कुछ..कुछ अकेलेपन के दर्पण देखे..
इस सर्दी की धूप में ........छत पर खड़े हुए .....
देखे कुछ ताजातरीन रिश्ते..कुछ औंधे मुंह पड़े हुए..
खुद की छत पर भी देखा कुछ, मन भर गया..
दृश्य इधर उधर के , कभी कभी मेरे अपने घर के..
मन ने जो देखा आंखों के आइने से, चुपके से..
धीरे धीरे बोझिल बोझिल मन सीढ़ियों से नीचे उतर गया !!
आज आपकी इस रचना पर टिप्पणी करने वाला प्रथम व्यक्ति होने का सौभाग्य पा रहा हूँ । बहुत दर्द है आपकी पंक्तियों में । जिसने सहा है या सह रहा है, वही समझ सकता है ।
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद ..
Deleteआपकी टिप्पणी अमूल्य है मेरे लिए..
सादर प्रणाम
बहुत सुन्दर रचना..आखिरी कुछ पंक्तियों में निहित सम्वेदना का स्वर बहुत दूर से ही सही, पर अन्दर तक छू गया.. आपकी छत का वह कोना मुझे भी दिखाई दे गया..
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 10 फरवरी 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteसाझा करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद..जरूर आयेंगे..
Deleteनमस्कार आपको..
प्रिय अर्पिता जी, जीवन के नियमित घटनाक्रम में से संवेदनाओं का सूक्ष्मता से अवलोकन एक कवि मन ही कर सकता है। मानवीय भावनाओं को उजागर करती इस मार्मिक शब्दचित्र के लिए आप सराहना की पात्र हैं। हार्दिक शुभकामनाएं । लिखती रहिये।
ReplyDeleteढ़ेर सारे छत का अवलोकन कर सुन्दर चित्रण किया आपने
ReplyDeleteजीवन के विविध रंगों को आपने छत से देख कर उनका जीवंत चित्रण किया है। आपको बधाई।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और सार्थक रचना।
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteगर अंदाज़ा लगायें तो पायेंगे कि सभी इक़ निश्चित सा जीवन व्यतीत कर रहे हैं
बहुत बढ़िया।
ReplyDeleteबहुत सुंदर।
ReplyDeleteबहुत बहुत सराहनीय |
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी ।
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