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हां के सिवा जवाब क्या था..

हमसे तारूफ जो नहीं था कुछ खास..

उनकी बातों का..

हां के सिवा जवाब क्या था !!

हमें जो सोना नहीं है कभी..

क्या फर्क पड़ता है कि ख्वाब क्या था ।।।

यूं भी पूछे नहीं जाते कभी हमसे..

हमारे विचार.. 

और अनुमति की जरूरत..

गैरजरूरी लगती है..

ऐसे में क्या सोचे कि..

इंतखाब क्या था..

अपने ही है..

उनसे हिसाब क्या मांगे..

अधिकार भी कोई चीज़ है..

पढ़ने की किताब क्या मांगे..

लेकिन अब ये हालात बदलने चाहिए..

मौन रहना ही हमारा भाग्य नहीं केवल..

प्रश्नों की भी आज़ादी मिलनी चाहिए..

और लोगो के खयालात बदलने चाहिए...


ओझल तन मन...जीवन.. हम तुम केवल बंधे बंधे.. हम राही केवल, नहीं हमराही...

ओझल तन मन...जीवन.. हम तुम केवल बंधे बंधे.. हम राही केवल, नहीं हमराही... चले आते हैं, चले जाते हैं... सुबह शाम बिन कहे सुने.. न हाथों का मेल....