मास्टर जी पढ़ा रहें हैं..

धूप निकली हुई है..

हरी घास पर बच्चे घेरे हुए..

मास्टर जी पढ़ा रहें हैं..

कुछ गाय है..आस पास

जैसे उनको भी पढ़ने की आस..

चित्रों के कुछ बोर्ड लगे हैं..

क्यारी में कुछ फूल खिले हैं..

कॉन्वेंट जैसी तो व्यवस्था नहीं पर..

तन्मयता से सिखा रहें हैं..

मास्टर जी पढ़ा रहे हैं..

कहीं सुना था ..

सरकारी शिक्षक पढ़ाते नहीं हैं..

बच्चों में मन लगाते नहीं हैं..

पर ये सजीवो में..

ज्ञान का प्रसार..

देख कर लगा मुझे इस बार..

कर्मनिष्ठा ही मूल है..

मास्टर जी ज्ञान फैला रहें हैं..

मास्टर जी पढ़ा रहें हैं..

बच्चों की उत्सुकता दिखाती है कि..

उन्हें भी सब सबक भा रहे हैं..

मास्टर जी पढ़ा रहें हैं..।।

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ओझल तन मन...जीवन.. हम तुम केवल बंधे बंधे.. हम राही केवल, नहीं हमराही... चले आते हैं, चले जाते हैं... सुबह शाम बिन कहे सुने.. न हाथों का मेल....