tag:blogger.com,1999:blog-56540092675106072722024-03-13T06:49:26.109-07:00मन जैसा कुछजीवन की कुछ कविताएं;
मन करता है किसी से कहें सुनाएं
मन जैसा कुछhttp://www.blogger.com/profile/03267889928959025169noreply@blogger.comBlogger96125tag:blogger.com,1999:blog-5654009267510607272.post-17399961037606257942023-09-10T09:07:00.001-07:002023-09-10T09:07:29.421-07:00ओझल तन मन...जीवन.. हम तुम केवल बंधे बंधे.. हम राही केवल, नहीं हमराही...<p><b>ओझल तन मन...जीवन..</b></p><p><b>हम तुम केवल बंधे बंधे..</b></p><p><b>हम राही केवल, नहीं हमराही...</b></p><p><b>चले आते हैं, चले जाते हैं...</b></p><p><b>सुबह शाम बिन कहे सुने..</b></p><p><b>न हाथों का मेल..</b></p><p><b>न चाहतों की कोई बेल...</b></p><p><b>शब्द भी अनमने...</b></p><p><b>निष्कर्ष भी मिले जुले !!!</b></p><p><b>सपने भी कहते होंगे...</b></p><p><b>कैसे हम रहते होंगे...</b></p><p><b>हकीकतों का कहकहा सुनकर...</b></p><p><b>फिर तह कोई सुकून दे जाती होगी शायद..</b></p><p><b>मुसीबतों का गिरेबान पकड़कर...</b></p><p><b>इसी बहाने नींद आ जाती होगी गहरी सी...</b></p><p><b>जमीन पर पड़े पड़े......!!!!!!!!!!!</b></p><p><b><br /></b></p><p><br /></p>मन जैसा कुछhttp://www.blogger.com/profile/03267889928959025169noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-5654009267510607272.post-17854546876449086692023-09-06T23:13:00.001-07:002023-10-14T10:57:58.190-07:00तुम पर इल्ज़ाम लगाएंगे कैसे.. धुरी तुम्हारी ही..तुम्ही से तो सधे हुए हैं ..<p><b>तुम पर इल्ज़ाम लगाएंगे कैसे..</b></p><p><b>धुरी तुम्हारी ही..तुम्ही से तो सधे हुए हैं ..</b></p><p><b>बोझिल मन हो सकता है...</b></p><p><b>समर्पण भाव खो सकता है...</b></p><p><b>तुमसे दूर जायेंगे कैसे ...</b></p><p><b>मन से इतने जो बंधे हुए हैं...</b></p><p><b>कलह कोई, द्वेष कोई.. </b></p><p><b>न रखना बहुत देर तक...</b></p><p><b>नही पहुंचती मेरी मंशा भी..</b></p><p><b>रिश्तों के इन हेर फेर तक..</b></p><p><b>तुमको उलझाएंगे कैसे..</b></p><p><b>तुम्हारी ही जद में पड़े हुए हैं..</b></p><p><b>घर मेरा तुम्हारा ................ </b></p><p><b>..ये जमावड़ा...रिश्तों का जाल सारा..</b></p><p><b>ये कांटा ...वो मछुवारा....</b></p><p><b>इन सबमें तुमको फसाएंगे कैसे..</b></p><p><b>किसी बात पर तो हम भी..</b></p><p><b>अकर्मण्य से तड़प रहें हैं...!!!!!!</b></p><p><b><br /></b></p><p><br /></p>मन जैसा कुछhttp://www.blogger.com/profile/03267889928959025169noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-5654009267510607272.post-84272121120477669242023-09-06T09:44:00.002-07:002023-10-14T10:59:02.589-07:00ऋणी रहूंगी सदा.. तुमको जो न अपना सकी.. स्त्री होकर भी..<p><b>मैं ऋणी रहूंगी सदा..</b></p><p><b>तुमको जो न अपना सकी..</b></p><p><b>स्त्री होकर भी..</b></p><p><b>न्याय न तुमको दिला सकी..</b></p><p><b>एक मत मेरा भी था हालांकि..</b></p><p><b>बहुमत न उसको बना सकी..</b></p><p><b>रूप रंग के चाहने वालों को </b></p><p><b>मन का सौंदर्य न समझा सकी..</b></p><p><b>तुमको आशीर्वाद है लेकिन..</b></p><p><b>बेहतर तुमको घरबार मिले..</b></p><p><b>ये अंतिम तिरस्कार हो तुम्हारा..</b></p><p><b>तुमको अब सिर्फ चाहा हुआ ..</b></p><p><b>अपनत्व भरा घर संसार मिले...</b></p><p><b><br /></b></p><p><b><br /></b></p><p><br /></p>मन जैसा कुछhttp://www.blogger.com/profile/03267889928959025169noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5654009267510607272.post-42749057440283279542021-10-19T00:58:00.000-07:002022-03-17T10:31:29.904-07:00वो जो था कभी घर आंगन ..वो आज मकान बिकाऊ है<p style="text-align: justify;"><b>वो जो था कभी घर आंगन.....</b></p><p style="text-align: justify;"><b>वो आज मकान बिकाऊ है. !!</b></p><p style="text-align: justify;"><b>क्योंकर इतना हल्कापन.....!!</b></p><p style="text-align: justify;"><b>रिश्तों का ये फीका मन......!!</b></p><p style="text-align: justify;"><b>सब कुछ कितना चलताऊ है !!</b></p><p style="text-align: justify;"><b>खूब कभी सजाया था.........</b></p><p style="text-align: justify;"><b>बच्चों ने ही तो इतना भरमाया था..</b></p><p style="text-align: justify;"><b>ये घर मैंने ..बरसों के लिए बसाया था..</b></p><p style="text-align: justify;"><b>बिखर गया ..मैं ..मिट्टी आकाश में ..</b></p><p style="text-align: justify;"><b>ये घर भी बिखरेगा, समझ न पाया था..!!</b></p><p style="text-align: justify;"><b>मजबूती के मायने बस इतने ...</b></p><p style="text-align: justify;"><b>स्वार्थ ही अब , रह गया टिकाऊ है..!! </b></p><p style="text-align: justify;"><b>घर मजबूरी में बिकते हैं..</b></p><p style="text-align: justify;"><b>टूटते हैं , रहने वाले जब..</b></p><p style="text-align: justify;"><b>नही संभलते हैं..</b></p><p style="text-align: justify;"><b>मजबूरी अगर झूठी हो..</b></p><p style="text-align: justify;"><b>कुछ मन की दरारों से..</b></p><p style="text-align: justify;"><b>कोई आस अगर टूटी हो..</b></p><p style="text-align: justify;"><b>बिकने न देना अंत तक..</b></p><p style="text-align: justify;"><b>जद्दोजहद के फलंत तक..</b></p><p style="text-align: justify;"><b>मकान नहीं मेरे अपनों..ये </b></p><p style="text-align: justify;"><b>आश्रय अनंत दीर्घायु है ।।</b></p><p style="text-align: justify;"><b>ये आंगन , उपवन मन का..</b></p><p style="text-align: justify;"><b>कोना कोना अपना..</b></p><p style="text-align: justify;"><b>मेरा ये सपना ..</b></p><p style="text-align: justify;"><b>आशीर्वाद मेरा तुम्हारे लिए..</b></p><p style="text-align: justify;"><b>ये नहीं कोई चीज़...</b></p><p style="text-align: justify;"><b>ये नहीं बिकाऊ है..</b></p><p style="text-align: justify;"><b>ये नहीं बिकाऊ है...।।</b></p>मन जैसा कुछhttp://www.blogger.com/profile/03267889928959025169noreply@blogger.com10tag:blogger.com,1999:blog-5654009267510607272.post-22900198365544346422021-08-06T20:58:00.000-07:002022-03-16T05:32:44.628-07:00बहुत से मसले हमने ...भगवान पर छोड़े हैं !!<p style="text-align: justify;"><b>बहुत से मसले हमने ..कहने को..भगवान पर छोड़े हैं..</b></p><p style="text-align: justify;"><b>खुद कितना बेपरवाह हैं ! ....…..बेखौफ भी यकीनन...</b></p><p style="text-align: justify;"><b>मासूमियत ओढ़े हुए हमने सिर्फ ..तथ्य तोड़े मरोड़े हैं..</b></p><p style="text-align: justify;"><b>दंड संहिता अपनी ..........बनाई है हमने खुद के लिए..</b></p><p style="text-align: justify;"><b>खुद को मांफियां अनगिनत..दूसरे के लिए घड़े पाप के जोड़े हैं.</b></p><p style="text-align: justify;"><b>बहुत से मसले हमने.....फिर क्यों भगवान पर छोड़े हैं !!</b></p><p style="text-align: justify;"><b>मतलबी कितने निकले हम..!! भगवान का नाम भुनाया खूब..</b></p><p style="text-align: justify;"><b>राहें गलत चलते रहे ......फिर उसपर इल्ज़ाम लगाया खूब...</b></p><p style="text-align: justify;"><b>हद भी बहुत पार की हमने..और उसको याद दिलाया खूब...</b></p><p style="text-align: justify;"><b>हो गए बेसुध बेसहारे ......हाथ पैर फिर क्योंकर जोड़े हैं...!!</b></p><p style="text-align: justify;"><b>बहुत से मसले हमने...............क्यों भगवान से जोड़े हैं!!</b></p><p style="text-align: justify;"><b>करने वाले हम ही..........फिर भरने वाले क्योंकर न हों..</b></p><p style="text-align: justify;"><b>सब अपनी करनी भरनी.....बेहतर या दिन बदतर हो....</b></p><p style="text-align: justify;"><b>सब प्रयोजन जब खुद से....परिणाम से क्यों मुंह मोड़ें हैं!!</b></p><p style="text-align: justify;"><b>बहुत से मसले हमारे....उसके कारण भगवान ही थोड़े हैं !!</b></p><p style="text-align: justify;"><b>फिर क्यों ठीकरे हमने............ भगवान पर फोड़े हैं!!</b></p>मन जैसा कुछhttp://www.blogger.com/profile/03267889928959025169noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-5654009267510607272.post-38790041586812530542021-06-22T21:09:00.014-07:002022-03-16T05:32:57.220-07:00अनुबंध मन के..तोड़कर जाएंगे कहां<p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: left;"><div class="separator" style="clear: both; text-align: left;"><div class="separator" style="clear: both; text-align: left;"><a href="https://1.bp.blogspot.com/-dF_ZD8Ewa3U/YQ1K21EfopI/AAAAAAAAASI/a0vTJvByB_U0qK8CxBP38QfMKFDsuCilACLcBGAsYHQ/s320/manjaisakuchthumb.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="240" data-original-width="320" height="150" src="https://1.bp.blogspot.com/-dF_ZD8Ewa3U/YQ1K21EfopI/AAAAAAAAASI/a0vTJvByB_U0qK8CxBP38QfMKFDsuCilACLcBGAsYHQ/w200-h150/manjaisakuchthumb.jpg" width="200" /></a></div><a href="https://1.bp.blogspot.com/-8p2kEif1nYs/YQ1IAilu4KI/AAAAAAAAASA/YX8jha8PkD81U37oWaj2Bhb5W-uHy61-QCLcBGAsYHQ/s320/manjaisakuchthumb.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"></a></div><b><p><b>अनुबंध मन के ........तोड़कर जाएंगे कहां ..</b></p></b></div><p></p><p><b>लौटेंगे यहीं..मन के आकर्ष झुठलाएंगे कहां..</b></p><p><b>व्यथित होंगे.............तलाशेंगे तुम्हीं को..</b></p><p><b>वेदना हृदय की मिटाने को....मधुर मधुर..</b></p><p><b>कोमल कोमल वचनों के स्पर्श पाएंगे कहां..</b></p><p><b>आभासी होंगे प्रेम के रूप...और झूठे भी..</b></p><p><b>फिर भी हृदय जागेगा..कोलाहल के बीच ..</b></p><p><b>सुगंध सुबह की....यकीन के कलरव........</b></p><p><b>सदाबहार अनुग्रह ..आप छुपाएंगे कहां....</b></p><p><b>वीभस्त हो जाय भी तो क्या...ये व्यवहार..</b></p><p><b>किसी अर्थ का ना रहे प्रलय सम्मुख संसार..</b></p><p><b>फिर भी ..शेष की परिकल्पना का हर्ष लिए..</b></p><p><b>जीवन दर्शन के पर्व ..तुम बिन मनाएंगे कहां..</b></p><p><b>बहा देंगे ......मिटा देंगे..... प्राण भी गवां देंगे..</b></p><p><b>ये तो बहुत सहज सरस है..अवसान देह का...</b></p><p><b>पर जो अनंत है.........तुम्हारा मेरा संबंध.......</b></p><p><b>हां ये अनुबंध...... उसको दफनाएंगे कहां......</b></p><p><b>अनुबंध मन के...तोड़कर.... जाएंगे कहां......!!</b></p>मन जैसा कुछhttp://www.blogger.com/profile/03267889928959025169noreply@blogger.com11tag:blogger.com,1999:blog-5654009267510607272.post-75104036987117619722021-05-19T21:09:00.002-07:002022-03-21T21:13:55.611-07:00ओ तीर के बैठईया...अब नही मिलोगे क्या ???<div><div class="separator" style="clear: both; text-align: left;"><a href="https://1.bp.blogspot.com/-tKgLk3eCLQI/YQpgRRz6UAI/AAAAAAAAAR4/S5i5ZEDzKHE8km974MSORU-tFJyz5HNDwCLcBGAsYHQ/s610/manjaisakuch-featured.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="305" data-original-width="610" height="100" src="https://1.bp.blogspot.com/-tKgLk3eCLQI/YQpgRRz6UAI/AAAAAAAAAR4/S5i5ZEDzKHE8km974MSORU-tFJyz5HNDwCLcBGAsYHQ/w200-h100/manjaisakuch-featured.jpg" width="200" /></a></div><b><div><b><br /></b></div>ओ तीर के बैठईया !</b></div><div><b>अब नहीं मिलोगे क्या ??</b></div><div><b>अब क्या हो गई अलग अलग नैय्या !!</b></div><div><b>उस पार हमें नहीं ले चलोगे क्या ??</b></div><div><b>ढूंढते थे हमें ..एक पल भी अलग होकर..</b></div><div><b>जीवन पथ के साथी..कैसे हो अलग होकर !!</b></div><div><b>तुमने तो विमान ले लिया ..अवसान ले लिया..</b></div><div><b>हम थे तुम्हारे ही सहारे..अब कुछ नही कहोगे क्या ??</b></div><div><b>सैय्या भी कठोर है.....और नींद खुली आंखों की.....</b></div><div><b>तुम बिन सब रिश्ते झूठे..दूरी ये अब बस सांसों की....</b></div><div><b>हाथ पकड़ के ले जाओ मुझे भी...अब अपने उस लोक में..</b></div><div><b>क्या मेरे लिए अब तुम ...इतना भी नहीं करोगे क्या ???</b></div><div><b>लड़कपन में तुम्हें देखा........यौवन में तुम्हें पाया........</b></div><div><b>बच्चों की कड़ी लेकर जीवन को साथ बढ़ाया.............</b></div><div><b>नाती पोतों वालों हमने हर पल साथ बिताया..............</b></div><div><b>ये वक्त सहन नहीं होता...इतनी लंबी यादें फिर भी.......</b></div><div><b>अंतिम विदा में मुझे ......फिर से नहीं वरोगे क्या??????</b></div><div><b>ओ तीर के बैठईया !! .......अब दूर ही रहोगे क्या !!!!!</b></div><div><b>नहीं मिलोगे क्या ..............….................................</b></div><div><b>.....................................................................!!!</b></div><div><b><br /></b></div><div><br /></div>मन जैसा कुछhttp://www.blogger.com/profile/03267889928959025169noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-5654009267510607272.post-36256324898980868672021-03-08T19:52:00.000-08:002022-05-21T09:58:15.640-07:00आज चले आते हैं वो.....<p><b>आज चले आते हैं वो ..</b></p><p><b>मखमली पहल बनकर..!</b></p><p><b>जिनकी कोशिश थी कभी..</b></p><p><b>ढहा देंगे मेरे सपनों के महल..</b></p><p><b>तूफानी कहर बन कर..!</b></p><p><b>लेकिन कुछ ऐसे निकले..</b></p><p><b>मेरी किस्मत के सितारे..</b></p><p><b>रह गए मंसूबे उनके..</b></p><p><b>बस बेअसर बन कर..!</b></p><p><b>बुरा भला किसी का.</b></p><p><b>तासीर में नहीं हमारी..</b></p><p><b>मिटे नहीं सूरत में किसी..</b></p><p><b>देख चुके वो..</b></p><p><b>जहर बन कर..!</b></p><p><b>अचरज है मुझे..</b></p><p><b>क्यूकर बदल जाते हैं !</b></p><p><b>इंसान अपनी ही धुन से </b></p><p><b>पलट जाते हैं..!</b></p><p><b>चलो देखा यूं भी दुनिया को..</b></p><p><b>दुश्मन कभी ..</b></p><p><b>कभी सहचर बन कर..!!</b></p>मन जैसा कुछhttp://www.blogger.com/profile/03267889928959025169noreply@blogger.com12tag:blogger.com,1999:blog-5654009267510607272.post-81745395234532918242021-03-06T20:45:00.000-08:002022-03-21T01:55:43.115-07:00एक जगह थी खाली.. सामाजिक आधार बनाना था..।<p><b>एक जगह थी खाली..</b></p><p><b>सामाजिक आधार बनाना था..।</b></p><p><b>इसलिए जोड़े रिश्ते ..</b></p><p><b>मन से किसे निभाना था !!</b></p><p><b>तुम भी बहुत सही थे..</b></p><p><b>हम भी सीधे साधे..</b></p><p><b>सादे ही बंधन रखे हमने..</b></p><p><b>सादे सादे वादे..</b></p><p><b>उमंगों को बस बहलाना था..!!</b></p><p><b>ऐसा क्यों होकर रह गया..</b></p><p><b>पूछते क्यों हो मुझसे..??</b></p><p><b>सबसे आखिर में मेरी गिनती..!</b></p><p><b>आखिर में तुम भी ..!</b></p><p><b>मन तो बेसुध कब का..</b></p><p><b>प्रेम भी जैसे कोई किदवंती !!</b></p><p><b>आवश्कता थी साथ की बस..</b></p><p><b>बस खुद को कहीं ठहराना था !!</b></p><p><b>ऐसे ही हैं बंधन कई..</b></p><p><b>मन पर कोई दस्तक नहीं..</b></p><p><b>प्रतीक कई सर से पैर तक..</b></p><p><b>सजते तन पर केवल..</b></p><p><b>पहुंचते कभी मन तक नहीं..</b></p><p><b>एक घरौंदा बनाया हमने..</b></p><p><b>और खूब सजाया हमने..</b></p><p><b>बस कैद कहीं हो जाना था !!</b></p><p><b>यूं ही जोड़े रिश्ते..</b></p><p><b>मन से किसे निभाना था!!</b></p><p><br /></p>मन जैसा कुछhttp://www.blogger.com/profile/03267889928959025169noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-5654009267510607272.post-85800495642259738382021-03-03T01:01:00.000-08:002022-03-17T22:32:31.831-07:00कोई कोना हो हृदय का खाली थोड़ा बहुत<p><b>कोई कोना हो हृदय का खाली थोड़ा बहुत...</b></p><p><b>समाहित कर लेना...मेरा अभिवादन..धन्यवाद..</b></p><p><b>यदि ना हो..तो अविरल धारा बना देना..।</b></p><p><b>मैं जो ऋणी हूं आपकी..मेरे जुड़े हुए हाथ आपको..</b></p><p><b>अपने करो को जोड़कर किसी का ऋण चुका देना..।</b></p><p><b>ऐसे ही हर भावना..जुड़ती जाए अनंत तक..</b></p><p><b>पहुंचे सुदूर..पूरे गगन में प्रसार हो..</b></p><p><b>मेरा प्रणाम आपको..मेरा श्री राम आपको..</b></p><p><b>जिस से मिलो उसको श्री राम का उदघोष सुना देना..</b></p><p><b>मेरी मुस्कान का स्रोत महादेव का आलय है..</b></p><p><b>जीवंतता मेरे हृदय की ..उनका ही प्रशय है..</b></p><p><b>मेरी मुस्कान को समझना संदेश शांति और प्रेम का..</b></p><p><b>आए जो भी सामने..मिलकर मुस्कुरा देना..।।</b></p>मन जैसा कुछhttp://www.blogger.com/profile/03267889928959025169noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-5654009267510607272.post-83771593199021186902021-02-21T22:40:00.002-08:002022-05-18T10:37:47.490-07:00यदि कोई विवाद ना हो.. मुझे कोई प्रतिवाद ना हो..<p><b>यदि कोई विवाद ना हो..</b></p><p><b>मुझे कोई प्रतिवाद ना हो..।</b></p><p><b>छेड़ दिया है जो शंखनाद ..</b></p><p><b>युद्ध की फिर क्यों शुरुवात ना हो..।</b></p><p><b>ये अतिक्रमण तुम्हारा..!!</b></p><p><b>मौन हमारा कब तक होगा..</b></p><p><b>ये दमन हमारा..तुम्हारे द्वारा..</b></p><p><b>क्योंकर ना प्रतिउत्तर होगा..।</b></p><p><b>सुख शांति अगर नहीं पसंद तुम्हें..</b></p><p><b>कब तक ना समर होगा..!</b></p><p><b>हमको इससे इंकार नहीं..</b></p><p><b>कि मानवता से प्यार नहीं..</b></p><p><b>मानव जो तुम रह ना सके..</b></p><p><b>हमसे भी ना अब सबर होगा..।</b></p><p><b>वैसे तो समझो इतनी बात..</b></p><p><b>अपनी अपनी हद में रहो. </b></p><p><b>हम नहीं चाहते युद्ध कभी..</b></p><p><b>तुम भी समझो कि..कुछ भी..</b></p><p><b>किसी का अप्रिय ना हो..।</b></p><p><br /></p>मन जैसा कुछhttp://www.blogger.com/profile/03267889928959025169noreply@blogger.com15tag:blogger.com,1999:blog-5654009267510607272.post-21996063436152890052021-02-20T00:46:00.001-08:002022-04-29T09:18:28.785-07:00खूबसूरत नहीं थी मैं..तुम भी मनोहर नहीं थे<p><b>खूबसूरत..नहीं थी मैं..</b></p><p><b>तुम भी मनोहर नहीं थे..।</b></p><div><b>साथ में आए तो..</b></div><div><b>नयन मेरे चमकने लगे..</b></div><div><b>तुम भी मुस्कुराने लगे..।</b></div><div><b>और साथ चले जब..</b></div><div><b>जीवनसाथी बनकर..</b></div><div><b>आकर्षण के कवच त्यागकर..</b></div><div><b>हम दोनों एक दूसरे को पसंद आने लगे..।</b></div><div><b>फिर पंख एक हो गए..</b></div><div><b>हम अनंत में खो गए..</b></div><div><b>ढूंढ कर लाए हम किलकारियां..</b></div><div><b>प्रेम को समझ पाने लगे..।</b></div><div><b>ख्वाहिशें मेरी हो गईं तुम्हारी..</b></div><div><b>तुम्हारी चाहते हम चाहने लगे..।</b></div><div><b>जीवन की सब गलियों से निकलकर..</b></div><div><b>साथ बैठे जब बहुत दूर चलकर..।</b></div><div><b>जहां हृदय का पूर्ण संगम हो..।</b></div><div><b>कुछ खूबसूरत है..तो मैं हूं..</b></div><div><b>कुछ मनोहर है..वो तुम हो..।।</b></div><div><br /></div>मन जैसा कुछhttp://www.blogger.com/profile/03267889928959025169noreply@blogger.com14tag:blogger.com,1999:blog-5654009267510607272.post-74748178700088432082021-02-16T19:52:00.003-08:002022-04-30T22:39:43.046-07:00चांद विषय है...<b>चांद विषय है ...</b><div><b>कई लेखों का..</b></div><div><b>कई कविताओं का..</b></div><div><b>कई बातों का..</b></div><div><b>कई मुहावरों का..</b></div><div><b>कई अभियानों का..</b></div><div><b>कई उड़ानों का..।</b></div><div><b>अब चांद पर और क्या !</b></div><div><b>जो है आकर्षण दुनियाभर का</b></div><div><b>उस पर भला और गौर क्या..।</b></div><div><b>गुरुत्वाकर्षण ज्वार भाटे का..</b></div><div><b>पृथ्वी का कोई मीत या..</b></div><div><b>दुश्मनी में रची बसी कोई रीत..।</b></div><div><b>चांद रात के किस्से संभालिए..</b></div><div><b>आभासी दुनिया से खुद को निकालिए..।</b></div><div><b>दुनिया दूर की खूबसूरत सी ही है..</b></div><div><b>देखने को असलियत मन की दूरबीन निकालिए..।</b></div><div><b>बदसूरत होना भी यूं तो कोई पाप पुण्य का लेखा नहीं..।</b></div><div><b>मन के स्वीकार्य हैं कभी सुलझे हुए कभी उलझे हुए..</b></div><div><b>कभी किसी ने मन से नहीं देखा, कभी मन देखा नहीं..।।</b></div><div><br /></div>मन जैसा कुछhttp://www.blogger.com/profile/03267889928959025169noreply@blogger.com11tag:blogger.com,1999:blog-5654009267510607272.post-46211102061382468922021-02-13T19:29:00.001-08:002022-05-18T10:37:58.901-07:00प्रेम भी कोई चीज़ है क्या !!<p><b>प्रेम भी कोई चीज़ है क्या !!</b></p><p><b>करने को ,कर गुजने को !!</b></p><p><b>एहसास कहूं तो झूठा है..</b></p><p><b>दिमाग ने दिल को लूटा है..।</b></p><p><b>मतलबी जब लोग सभी..</b></p><p><b>ये बंधन कैसे दिलों का हैं !!</b></p><p><b>कितने उदाहरण है घूमते ..</b></p><p><b>वो जो थे कभी माथे को चूमते..।</b></p><p><b>चिता जलाकर भूल गए वो </b></p><p><b>रुखसत हुए है हम दुनिया से सिर्फ </b></p><p><b>रिश्ता तो नहीं टूटा है..।</b></p><p><b>मै हमारे तुम्हारे बच्चों में अभी जिंदा हूं</b></p><p><b>प्रेम था जिससे तुमको मैं वही वृंदा हूं..</b></p><p><b>कुंवारे बन के ले आए एक नए प्रेम को..</b></p><p><b>अब तो यकीनन कहीं प्रेम नहीं..</b></p><p><b>शरीर से बंधा मन होगा ये </b></p><p><b>मन से मन का मिलन नहीं..</b></p><p><b>प्रेम है झूठी परिकल्पना..</b></p><p><b>प्रेम से भरा यहां कोई मन नहीं..।।</b></p>मन जैसा कुछhttp://www.blogger.com/profile/03267889928959025169noreply@blogger.com12tag:blogger.com,1999:blog-5654009267510607272.post-84415495099762199872021-02-12T19:30:00.002-08:002022-05-03T02:48:08.181-07:00जो बंदिशे नहीं होंगी.. निश्चल प्रेम भी नहीं होगा..<p><b>जो बंदिशे नहीं होंगी..</b></p><p><b>निश्चल प्रेम भी नहीं होगा..।</b></p><p><b>मिलन में कोई मतलब हो सकता है..</b></p><p><b>ना मिले ..और प्रेम हो जाय सदा के लिए..</b></p><p><b>बस वही तो मन का प्रेम होगा..।</b></p><p><b>प्रेम अगर आलिंगन है..</b></p><p><b>अधरों का मिलन है..</b></p><p><b>और समाजिक व्यवहार नहीं..</b></p><p><b>निश्चित ही ये कुछ और है..</b></p><p><b>ये मौलिक प्यार नहीं..</b></p><p><b>मौलिकता को समझोगे कैसे ?</b></p><p><b>नैतिक जब मन के उदगार नहीं..</b></p><p><b>वो जो फांसते हैं मीठी मीठी बातों से..</b></p><p><b>उनको समझाना मुश्किल है..</b></p><p><b>तुम ही समझो हे प्रिया..</b></p><p><b>प्रेम अवश्य है जगत में..</b></p><p><b>तुम्हारे लिए कहीं छुपा..</b></p><p><b>छुपा हुआ हो मकसद जिनका..</b></p><p><b>वो तुम्हारा प्यार नही...।।।।।</b></p>मन जैसा कुछhttp://www.blogger.com/profile/03267889928959025169noreply@blogger.com9tag:blogger.com,1999:blog-5654009267510607272.post-1542978013956458172021-02-10T19:54:00.001-08:002022-05-08T10:07:07.640-07:00तुम्हारी हमारी ना सही किसी की तो होगी..<p><b>तुम्हारी हमारी ना सही किसी की तो होगी..</b></p><p><b>ना रही ज़िन्दगी अपनी फिर भी ..।</b></p><p><b>बाकी ज़िन्दगी होगी ..</b></p><p><b>तुम कहने को कुछ चूक जाओगे..</b></p><p><b>हम सुनने से कुछ रह जाएंगे..</b></p><p><b>बातें फिर भी यही सब ..</b></p><p><b>आगे पीछे किसी ने कही होंगी..।</b></p><p><b>मन व्याकुल हो कर शिथिल हो गया जो..</b></p><p><b>सब कुछ व्यर्थ सा लगता है..।</b></p><p><b>अब आंखे मूंद ही लें..लेकिन</b></p><p><b>कुछ सोच सोच कर मन में..</b></p><p><b>शेष समर चलता है..।</b></p><p><b>बहुत जिया, जी भर जिया..</b></p><p><b>सब काम काज निपटा भी दिए..।</b></p><p><b>जो था आवश्यक संसार व्यवहार..</b></p><p><b>सब बेड़ा पार लगा भी दिए..।</b></p><p><b>बूढ़े तन में लेकिन डूबा मन ..</b></p><p><b>कई पीढ़ियों का संसार रचता है..।।</b></p>मन जैसा कुछhttp://www.blogger.com/profile/03267889928959025169noreply@blogger.com12tag:blogger.com,1999:blog-5654009267510607272.post-53796884986767228932021-02-10T08:09:00.032-08:002022-05-26T20:52:37.118-07:00प्रिय तुम्हारी भेंट...<b><span style="font-size: large;">प्रिय तुम्हारी भेंट..</span></b><div><b><span style="font-size: large;">आज पुष्पों से आच्छादित है..।</span></b></div><div><b><span style="font-size: large;">यदि ये एक फूल होता मात्र..</span></b></div><div><b><span style="font-size: large;">या कोई गुलदस्ता ..</span></b></div><div><b><span style="font-size: large;">कुछ रोज़ में मुरझा गया होता..</span></b></div><div><b><span style="font-size: large;">मुश्किल भी होता बचाना उसे..</span></b></div><div><b><span style="font-size: large;">सोचो कैसे वो भला बचा होता..।</span></b></div><div><b><span style="font-size: large;">लेकिन गमले में लगा ये पौधा..</span></b></div><div style="text-align: justify;"><b><span style="font-size: large;">मेरे सामर्थ्य में है इसे सींचना..</span></b></div><div><b><span style="font-size: large;">पालना , उसे बढ़ते देखना..।</span></b></div><div><b><span style="font-size: large;">इसकी टहनी से मैंने और भी..</span></b></div><div><b><span style="font-size: large;">हरियाली प्रेम की पाई है..।</span></b></div><div><b><span style="font-size: large;">नई ऊर्जा हर एक कली के साथ..</span></b></div><div><b><span style="font-size: large;">ये नहीं कुछ देर का साथी..</span></b></div><div><b><span style="font-size: large;">बिल्कुल तुम्हारे प्रेम की तरह..</span></b></div><div><b><span style="font-size: large;">ये भी कालजयी है..।।</span></b></div><div><br /></div>मन जैसा कुछhttp://www.blogger.com/profile/03267889928959025169noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-5654009267510607272.post-40019563234438095202021-02-08T19:47:00.002-08:002022-05-25T01:48:24.831-07:00छत से दूसरी छत के आज नजारे देखे हमने.<b>छत से दूसरी छत के आज नजारे देखे हमने..</b><div><b>कुछ बच्चों को खेलते देखा..कुछ को बैठे शांत..</b></div><div><b>फूलों के गमले, मुरझाईं कुछ बेलें, कुछ जीवन विश्रांत..</b></div><div><b>कुछ स्त्रियों के केश मेहंदी में डूबे हुए..</b></div><div><b>छुपाने की,रंगने की, क्योंकर चाहत ?</b></div><div><b>कुछ बीते हुए को पाने की शायद थी अकुलाहट..</b></div><div><b>कुछ पुरुषों को बैठे देखा भिन्न भिन्न अवेगों में..</b></div><div><b>अखबारों के पन्ने कुछ ..उन अलसाई आंखों में..</b></div><div><b>भविष्य के कुछ सपने देखे..साथ बैठे कुछ अपने देखे..</b></div><div><b>परिवार देखे कुछ..कुछ अकेलेपन के दर्पण देखे..</b></div><div><b>इस सर्दी की धूप में ........छत पर खड़े हुए .....</b></div><div><b>देखे कुछ ताजातरीन रिश्ते..कुछ औंधे मुंह पड़े हुए..</b></div><div><b>खुद की छत पर भी देखा कुछ, मन भर गया..</b></div><div><b>दृश्य इधर उधर के , कभी कभी मेरे अपने घर के..</b></div><div><b>मन ने जो देखा आंखों के आइने से, चुपके से..</b></div><div><b>धीरे धीरे बोझिल बोझिल मन सीढ़ियों से नीचे उतर गया !!</b></div><div><br /></div>मन जैसा कुछhttp://www.blogger.com/profile/03267889928959025169noreply@blogger.com14tag:blogger.com,1999:blog-5654009267510607272.post-15544605757452795582021-02-07T19:35:00.000-08:002022-04-19T09:16:34.820-07:00खेलते खेलते निकले थे.. जीवन का प्यार लिए..<p><b>खेलते खेलते निकले थे.. जीवन का प्यार लिए..</b></p><p><b>बहुत लुभावना ,बहुत बड़ा अति आकर्षक संसार लिए..।</b></p><p><b>थोड़े बड़े हुए खुद जो..छोटे पग लगने लगे..</b></p><p><b>विस्तार जगत का देखा तो ,नापने वो भगने लगे..।</b></p><p><b>कुछ तो हाथ में आ जाए, मन भर के व्यापार हो..</b></p><p><b>लेकिन अनंत की चाह में खुद को ही ठगने लगे..।</b></p><p><b>प्रेम ऋतु भी आयी ,जीवन में कई बदलाव हुए..</b></p><p><b>छोटी सी दुनिया बसाने के पारित कई प्रस्ताव हुए..</b></p><p><b>आखिर में बन ही गई वो प्यारी सी दुनिया जो..</b></p><p><b>फंसे फंसे से, बुझे बुझे से.. दिखते हैं कुछ कुछ..</b></p><p><b>खुशियों की चाहत में अजीब से उतार चढ़ाव हुए..।</b></p><p><b>और बढ़े आगे जो..बहुत अशांत सा मन पाया हमने </b></p><p><b>पीछे तो कुछ था ही नहीं, आगे भी ना समझ पाया हमने..</b></p><p><b>बहुत पढ़ा, बहुत सीखा था और लिखा था पन्नों पर..</b></p><p><b>अब तो कुछ याद नहीं.. हैं अब शून्यता के खंडहर से..</b></p><p><b>इमारत तो थी नक्काशी दार, हैं अब जर्जर आधार लिए..</b></p><p><b>खेलते खेलते निकले थे.. जीवन का प्यार लिए..।।</b></p>मन जैसा कुछhttp://www.blogger.com/profile/03267889928959025169noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-5654009267510607272.post-64215523917100430422021-02-05T20:06:00.000-08:002022-03-16T22:34:02.247-07:00औपचारिकताओं से जो इतने ना बंधे होते..<p><b>औपचारिकताओं से जो..</b></p><p><b>इतने ना बंधे होते..!</b></p><p><b>जीवन जीते जी भर के..</b></p><p><b>ऐसे ना सधे, तने होते..!</b></p><p><b>हां ये भी जरूरी ही है..</b></p><p><b>लेकिन उचित अनुपात में....</b></p><p><b>अंकुश और बंदिशों के काश !</b></p><p><b>कुछ तो मानक बने होते ।</b></p><p><b>औपचारिकताओं को ही निभाया हमने..</b></p><p><b>कुछ ना मन का कर पाया हमने..।</b></p><p><b>फिर आलस वश कुछ प्रतिकार भी नहीं ..!</b></p><p><b>मन को छुपा दिया हमने, अब किसी बात का सरोकार नहीं ..</b></p><p><b>काश होता कुछ अंतर्मन में ,एक अदद.. स्वीकार के सिवा </b></p><p><b>कोई विरोध हालातों से.. एक जीवन निर्वाह के सिवा..</b></p><p><b>मन जैसा कुछ .. होता जीवन में ..जीवन से लगाव लिए..</b></p><p><b>मन ने औपचारिकताएं छोड़ मन के सपने बुने होते..।</b></p><p><b>अपने तो चिन्हित किए ..जीवन के स्वत: चुनाव ने..</b></p><p><b>काश ! औपचारिक ना होते इतने..सच में कुछ अपने होते...!!!</b></p>मन जैसा कुछhttp://www.blogger.com/profile/03267889928959025169noreply@blogger.com14tag:blogger.com,1999:blog-5654009267510607272.post-75555909961336108142021-02-04T16:34:00.002-08:002022-04-30T01:52:36.535-07:00हे ईश्वर ! तुम रहते कहां हो??<p> <a href="https://1.bp.blogspot.com/-Pum6fczgoj4/YQpdqqInZzI/AAAAAAAAARw/18NAer4Dn9AAe2dwRQJSIsJH1JXmQ5tQQCLcBGAsYHQ/s610/manjaisakuch-featured.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="305" data-original-width="610" height="100" src="https://1.bp.blogspot.com/-Pum6fczgoj4/YQpdqqInZzI/AAAAAAAAARw/18NAer4Dn9AAe2dwRQJSIsJH1JXmQ5tQQCLcBGAsYHQ/w200-h100/manjaisakuch-featured.jpg" width="200" /></a></p><p><b>हे ईश्वर ! तुम रहते कहां हो ??</b></p><p><b>हर जगह मौजूद हो ..ऐसा पता है मुझे..</b></p><p><b>देख लूं तुम्हें.. दिखते कहां हो??</b></p><p><b>मैंने सुना..तप करना होगा ..</b></p><p><b>तुम तक पहुंच सकूं..</b></p><p><b>संसार से उबरना होगा..।</b></p><p><b>पर हैं दावा करते लोग..</b></p><p><b>कुछ लोग हैं तुम्हारे खास !</b></p><p><b>कुछ घर हैं ठिकाने तुम्हारे..</b></p><p><b>लेकिन मुझे क्यूं है अविश्वास ..!</b></p><p><b>आकर तुम्हीं बताओ अब..टिकते कहां हो??</b></p><p><b>नाम तुम्हारा अपनी अपनी भाषा में,</b></p><p><b>रखे हैं रूप भी अलग अलग ..</b></p><p><b>अपनी अपनी परिभाषा में,</b></p><p><b>मैं भी नाम रख लूं कुछ और तुम्हारा..</b></p><p><b>मेरे प्रयोजनों से तुम !! </b></p><p><b>संज्ञा रखते कहां हो ??</b></p><p><b>स्त्री पुरुष.. भी क्या तुम करते हो !!</b></p><p><b>अर्धनारीश्वर हो ना तुम ..</b></p><p><b>फिर भेद के क्यूं ..दुनिया में रंग भरते हो..??</b></p><p><b>विविध तुम्हारी दुनिया सिर्फ..</b></p><p><b>भेद नहीं कल्पना तुम्हारी..</b></p><p><b>इस अज्ञान की दुनिया में..</b></p><p><b>ये बात बतलाने को..</b></p><p><b>तुम विचरते कहां हो ??</b></p>मन जैसा कुछhttp://www.blogger.com/profile/03267889928959025169noreply@blogger.com18tag:blogger.com,1999:blog-5654009267510607272.post-2291943908570174692021-02-03T17:45:00.001-08:002022-06-06T03:13:08.221-07:00ये बिन बात का तकल्लुफ..<p><b>ये बिन बात का तकल्लुफ !!</b></p><p><b>खत्म करो अब सब वास्ते..</b></p><p><b>पुल ही उड़ा डालो मतलब के..</b></p><p><b>खुद तक बंद करो सब रास्ते.. ।</b></p><p><b>ये खुद की दुनिया भी मुकम्मल है..</b></p><p><b>किसी का दख़ल क्यों स्वीकारा जाए ??</b></p><p><b>एहसान जताते रहते हैं.. उपकार के नाम पर..</b></p><p><b>ऐसे ख़ुदाओं को क्यूं मदद के लिए पुकारा जाए !!</b></p><p><b>भूल जाओ चेहरे मतलबी और उन तक ही दौड़ते रहना..</b></p><p><b>तकलीफ तो यूं भी हैं..पूरी बिखोरो ये अधूरी मुस्कुराहटें..।</b></p>मन जैसा कुछhttp://www.blogger.com/profile/03267889928959025169noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-5654009267510607272.post-72843022557903171222021-02-01T16:47:00.000-08:002022-03-16T22:33:41.229-07:00बहुत साधारण सा ज्ञान मुझको..<b>बहुत साधारण सा ज्ञान मुझको..</b><div><b>रस छंद अलंकार नहीं लिखती..।</b></div><div><b>साधारण सी बातें है साफ साफ..</b></div><div><b>लच्छेदार वाक्य, श्रृंगार नहीं लिखती..।</b></div><div><b>हां कुछ कहना चाहती हूं तुमसे..</b></div><div><b>विनम्र सा निवेदन लिए..</b></div><div><b>बदलने हैं यहां के कुछ हालात..</b></div><div><b>क्रांति के नाम पर विवाद नहीं लिखती..।</b></div><div><b>बदलेगा ये माहौल भी..</b></div><div><b>तुम भी हाथ बढ़ाओ जो..</b></div><div><b>दो ही लोगों की तो बात है..</b></div><div><b>मसले ये सब सुलझाओ तो..</b></div><div><b>तुमको सुनाई ना दे..</b></div><div><b>ऐसी तो आवाज़ नहीं लिखती..।</b></div><div><b>कभी तुम प्रेरणा बनो..</b></div><div><b>कभी तुम सहारा..</b></div><div><b>कुछ सुधार करो..</b></div><div><b>कुछ निर्माण करो..</b></div><div><b>धरातल पर ना आ सकें जो..</b></div><div><b>ऐसे तो खयालात नहीं लिखती..।</b></div><div><br /></div>मन जैसा कुछhttp://www.blogger.com/profile/03267889928959025169noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-5654009267510607272.post-78735972918203709262021-01-31T20:22:00.000-08:002022-03-16T22:33:52.296-07:00क्या हुआ जो.. निकल गए हैं सालों<p><b>क्या हुआ जो..</b></p><p><b>निकल गए हैं सालों..</b></p><p><b>निर्णय तक आने में..।</b></p><p><b>मन पर वश ना था..</b></p><p><b>अपना लिया तुमको मन ने..</b></p><p><b>कर तुम्हारे पकड़ना चाह है..लेकिन..</b></p><p><b>आधार ही मेरा मिट जाएगा..</b></p><p><b>कर छोड़ कर आने में..।</b></p><p><b>विलंब समझते हो जिसको तुम..</b></p><p><b>वो मेरी एक मजबूरी है..</b></p><p><b>मनाने का यत्न है उनको..</b></p><p><b>जिनके बिना ये रस्म अधूरी है..।</b></p><p><b>हम तो एक हो सकते हैं ऐसे वैसे भी..</b></p><p><b>लेकिन क्या मिलेगा हमें यूं ..</b></p><p><b>उन सबकी व्यवस्थित ...</b></p><p><b>परिकल्पनाएं..इच्छाएं झुठलाने में..।</b></p><p><b>देखो ..प्रेम मुझे तुमसे ही है..</b></p><p><b>और कोई स्वीकार नहीं..</b></p><p><b>किन्तु..ये भी सच है प्रिय..</b></p><p><b>तुम्हारा ही मुझपर केवल अधिकार नहीं..।</b></p><p><b>भागना, पुराने रिश्ते तोड़ना ये भी तो कोई प्यार नहीं ..!!</b></p><p><b>मैं यत्न करूंगी.. तुम्हें मुझे एक साथ..</b></p><p><b>अपने हमारे स्वीकार करें ..दें आशीर्वाद ।।</b></p><p><b>……..........…........................................................</b></p><p><b>….......…...…........................................….............</b></p><p><b>युवा पीढ़ी प्रेम को कितना समझती है..इसका मेरे पास कोई विश्लेषण मौजूद नहीं है..लेकिन युवाओं से मेरा निवेदन है कि यह कविता पढ़ें और प्रेम के नाम पर अपने भविष्य..माता पिता के सपने ..सामाजिक व्यवस्था का मजाक ना बनने दें..इस कविता का प्रथम पात्र एक युवती है..अन्यथा ना ले कोई लेकिन अधिकतर मामलों में गलत कदम लेने के लिए लड़के आतुर होते है और लड़कियों को उकसाते भी है..हालांकि ये मन की बेसब्री होती है ..किसी का दोष नहीं दूंगी..किन्तु रुकें ,सोचें ..और बड़ों की बात मानें..शुभ कामनाएं ।</b></p>मन जैसा कुछhttp://www.blogger.com/profile/03267889928959025169noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-5654009267510607272.post-36820402506755591782021-01-30T17:42:00.002-08:002022-05-18T10:32:15.892-07:00मैंने लिखी थी एक कविता..<p><b>मैंने लिखी थी एक कविता..</b></p><p><b>एक सुनहरे कागज पर..</b></p><p><b>तुमको अर्पण कर दी थी..</b></p><p><b>तुमने कागज समझ यूं ही उड़ा दी..</b></p><p><b>मेरी भेंट शायद तुम्हारी समझ से परे थी..</b></p><p><b>तुमने बताया भी नहीं..</b></p><p><b>कि तुम्हें कुछ समझ नहीं आया..</b></p><p><b>या निम्न समझ लिया उसे..</b></p><p><b>कुछ तो बताना था..</b></p><p><b>हां या ना का निर्णय सुनाना था..</b></p><p><b>तुम्हारे शून्य से उत्तर ने..</b></p><p><b>अनगिनत प्रस्ताव मुस्कुराहट के..</b></p><p><b>छीन लिए मुझसे..</b></p><p><b>मैं लिख लेती और एक कविता..</b></p><p><b>यदि तुम स्पष्ट होते..</b></p><p><b>तुमने मुझे एक जगह क्यों रोक दिया..??</b></p><p><b>चलो कोई बात नहीं..</b></p><p><b>आज जो खुद से खुद को जान गए हैं..</b></p><p><b>आपके मन से दूर खुद को पहचान गए हैं</b></p><p><b>मेरी कविता के अब से प्रतिमान नए हैं..</b></p><p><b>तुमने साधक चुन लिया कोई अन्य..</b></p><p><b>अब से मेरे भी भगवान नए हैं .. !!!!!!</b></p>मन जैसा कुछhttp://www.blogger.com/profile/03267889928959025169noreply@blogger.com18