कैसे मैं शशक्त बनूं..

कैसे मैं शशक्त बनूं..

तुम पर जो इतनी आसक्त हूं..!!

मां जो हूं मैं तुम्हारी..

कटु बातों को भी भुला देती हूं..

उम्र के हर पड़ाव में..

बिल्कुल ना मैं सख्त हूं..

कैसे मैं शसक्त बनूं..

तुम पर जो इतनी आसक्त हूं..!!

बहन जो हूं मैं तुम्हारी..

भाग खुद का मैं तुम्हें थमा देती हूं..

लोलुप ना कोई लालस्त हूं..

कैसे मैं सशक्त बनूं..

तुम पर जो इतनी आसक्त हूं..!!

पत्नी जो हूं मैं तुम्हारी...

हर तरह से तुम्हारी भक्त हूं..

कैसे मैं शशक्त बनूं..

तुम पर जो इतनी आसक्त हूं..

पुत्री रूप में..

हर बात तुम्हारी पालित करने को..

मैं तो अभयस्त हूं..

कैसे मैं शशक्त बनूं..

तुम पर जो इतनी आशक्त हूं..!!

स्नेहिता मैं जो हूं..

स्नेही ही सिर्फ मैं हूं..

कलुषित भावनाओं से ..

मैं तो ना ग्रस्त हूं..

कैसे मैं शशक्त बनूं..

तुम पर जो इतनी आसक्त हूं..!!!

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समान विकास, समुचित सम्मान..

समान स्नेह, उपयुक्त उत्थान..

इस बात का बस मान रख लो..

मैं हूं जो आरंभ तुम्हारा..

कभी सहचरिनी, कभी सहारा..

तुम संग पलती बढ़ती..

और तुम्हारा ही रक्त हूं..

शशक्त मैं हो जाऊंगी..

बस तब ही जब ..

तुम्हारी तरफ से मैं..

आश्वस्त हूं..

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3 comments:

  1. बहुत अच्छा लिखा है आपने। ।

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  2. bahut hi sundar 👍

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ओझल तन मन...जीवन.. हम तुम केवल बंधे बंधे.. हम राही केवल, नहीं हमराही...

ओझल तन मन...जीवन.. हम तुम केवल बंधे बंधे.. हम राही केवल, नहीं हमराही... चले आते हैं, चले जाते हैं... सुबह शाम बिन कहे सुने.. न हाथों का मेल....