उपाय..

दूसरों के लिए नियम कानून..

अपने लिए उपाय है..

यही ज्ञान सनातन..

अन्याय का अभिप्राय है..

नियम बनाए जिसने , 

अपने लिए संशोधन किए ..

खुद चाहे जैसे भी जिएं,

अन्य को बेड़ियों के संकाय हैं...

खुद के मार्ग सरल -सरस,

औरों के लिए कठिन प्राय हैं..

जो ना होता ऐसा तो..

गीता क्यों सुनानी पड़ती !!

कभी जो रावण वध की कथा..

महाभारत क्यों रचानी पड़ती..

अन्तिम अवलोकन लेकिन..

कर्म, ज्ञान और बल..

बदलते रहते हैं मानक इनके,

जन्म से लेकर मृत्यु तक प्रतिपल ।

निश्चित है.. अवसान - दुर्गति,

घमंड ,अन्याय के प्रतिफल ।।

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ओझल तन मन...जीवन.. हम तुम केवल बंधे बंधे.. हम राही केवल, नहीं हमराही...

ओझल तन मन...जीवन.. हम तुम केवल बंधे बंधे.. हम राही केवल, नहीं हमराही... चले आते हैं, चले जाते हैं... सुबह शाम बिन कहे सुने.. न हाथों का मेल....