उस बिंदु पर आओ ना..

उस बिंदु पर आओ ना..

ना कोई कहासुनी हो..

मै भी जहां सही हूं..

तुम भी जहां सही हो..

वाद विवाद किनारे हों..

हम दोनों ही..

एक दूसरे के सहारे हों..

ना कोई तना तनी हो..

उस बिंदु पर आओ ना..

जहां दोनों लोग सही हों.

इतने कटु क्यूं नेत्र तुम्हारे..

क्या कोई संताप है !!

है तो हमारी तुम्हारी ही..

जो भी कोई बात है..

मै समर्पित कब से हूं..

तुम भी झुक जाओ ना..

क्यों रात अंधेरी घनी हो !!

उस बिंदु पर आओ ना..

जहां दोनों लोग सही हों..

तुम कठोर , मै कोमल..

ताकत तुम, मैं संबल..

तुम सृष्टि का गौरव..

मैं सृष्टि का प्रतीक प्रतिपल..

इस भेद का जश्न मनाओ ना...

भरपूर रोशनी हो..

उस बिंदु पर आओ ना..

जहां दोनों लोग सही हों..।।

5 comments:

  1. बहुत सुंदर 👌👌👍💐💐

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  2. बहुत अच्छा लिख रहीं हाँ आप | पर आपने नाम नहीं दिया अपना | किस नाम से पुकारें आपको ?????

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    1. धन्यवाद रेणु जी..
      अर्पिता कहकर बुला सकती हैं..
      आपकी कविताएं बहुत अर्थपूर्ण है ,आपके ब्लॉग पर पढ़ी..बहुत अच्छी लगीं..
      सादर प्रणाम

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  3. लाजवाब,
    कैसे कहूँ तू निर्बल मैं सबल,
    मेरा वजूद तुझसे से हरवक्त हरपल,
    तुझ बिन मैं निराकार,निर्विकार,
    मैं कब से खड़ा बिना मुखौटा बिना लिबास,
    ठिठुर रहा माघ की सर्द रातों में,
    झांको तो चौबारे से,
    "इतने कटु क्यूं नेत्र तुम्हारे..
    क्या कोई संताप है !!
    है तो हमारी तुम्हारी ही..
    जो भी कोई बात है..

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ओझल तन मन...जीवन.. हम तुम केवल बंधे बंधे.. हम राही केवल, नहीं हमराही...

ओझल तन मन...जीवन.. हम तुम केवल बंधे बंधे.. हम राही केवल, नहीं हमराही... चले आते हैं, चले जाते हैं... सुबह शाम बिन कहे सुने.. न हाथों का मेल....