किराए के घर..

किराए के घर..

मेरी गली के..

शायद सभी गलियों के..

बिना उजालों के थे..

सभी किरायेदार जो..

अपने अपने घरों को चले गए थे..

उनके मालिक कहां रहते हैं !!

जो आए भी नहीं इधर?

ये कौनसा विस्तार है..

अनगिनत घर जो सूने रह जाते हैं..

परिणति खाली रह जाना ही है..

शायद..

जिन्हे किरायेदार बसाते हैं !!

ऐसा इसलिए भी है ..

और नियत भी यही है

समेट उतना ही पाओगे..

जितनी अंजुली है..

नाम का तो सबकुछ है..

जमीन और जायजाद..

पर उन किराए के मकानों का ..

नाम बस इतना है..

आज की दीवाली कागज पर . .

कल का वो सपना है. !!












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ओझल तन मन...जीवन.. हम तुम केवल बंधे बंधे.. हम राही केवल, नहीं हमराही... चले आते हैं, चले जाते हैं... सुबह शाम बिन कहे सुने.. न हाथों का मेल....