ओझल तन मन...जीवन..
हम तुम केवल बंधे बंधे..
हम राही केवल, नहीं हमराही...
चले आते हैं, चले जाते हैं...
सुबह शाम बिन कहे सुने..
न हाथों का मेल..
न चाहतों की कोई बेल...
शब्द भी अनमने...
निष्कर्ष भी मिले जुले !!!
सपने भी कहते होंगे...
कैसे हम रहते होंगे...
हकीकतों का कहकहा सुनकर...
फिर तह कोई सुकून दे जाती होगी शायद..
मुसीबतों का गिरेबान पकड़कर...
इसी बहाने नींद आ जाती होगी गहरी सी...
जमीन पर पड़े पड़े......!!!!!!!!!!!
It is purely spiritual 👌
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