किसी के मन में मेरा भी कोई बसर हो..

किसी के मन में मेरा भी कोई बसर हो..

किसी की बातों में मेरी भी कोई खबर हो..।

उसकी आंखो में मेरे लिए कोई ललक हो..

चेहरे पर उसकी..मेरी मुस्कुराहट का असर हो..।

साथ बैठकर मन की कुछ बातें करे कोई..

अपनी भी कहे मन की..मेरी भी सुने कोई..।

ठहर कर बातें जम सी गईं है मन में..

रास्ता खुले बातों का..अबाध सफर हो..।

हां, कुछ ऐसा वक्त आया तो था..

किसी की मौजूदगी ने मन को लुभाया तो था..।

रुक क्यों नहीं पाया , मन ने अपनाया तो था..

उठ गए दोनों..बातें बीच में छोड़कर ..किसी शोर में..

सुन ना सके..एक दूसरे को..किसी और के विभोर में ।

बिछड़ जो गए..ऐसी भी ना कोई अंध लहर हो..।

चलो जोड़ लो..फिर से मन के फासले मिटा लो..।

धूप में बैठो उसी तरह फिर.. बातों को संभाल लो..

कोई अनमनी सुबह ना हो अब..ना कोई ऐसी दोपहर हो..।।

पहला कौर बहुत बढ़िया लगता है

पहला कौर बहुत बढ़िया लगता है..

शून्य से कुछ ऊपर उठना..

दरिया लगता है..।

जिन्दगी में कुछ खोकर भी..

पाकर सुकून भरा कुछ..

जीने का जरिया लगता है..।

है सब कुछ एक ही जैसा..

बदलती नहीं सूरत कोई..

पाओगे तुम वैसा ही..

देखने का बस नजरिया लगता है..।

बहुत चाहत थी कि..

एक दिन स्वप्निल ही हो जाऊं..

जीवन हो आनंदित केवल..

स्वर्णिम दिन बिताऊं..

संतोष की एक बूंद ..लेकिन

तृप्त जीवन की वास्तविक..

परिचर्या लगता है.. ।।

मैं एक किरदार हूं..

मैं एक किरदार हूं..!
कभी अहम पाल लेता हूं..
कभी वहम पाल लेता हूं..
हाथ देखता हूं जब खाली से..
ईश्वर का तलब गार हूं..।
मैं एक किरदार हूं..!
चलता हूं.. भागता हूं..
कुछ जोड़ने की जुगत में..
अपलक जागता हूं..!
ठहरता भी हूं मैं थककर..
रह जाता हूं लेकिन मैं अतृप्त सा..!
मैं एक अधूरा सा सार हूं !
मैं एक किरदार हूं..!
बसाता हूं.. सजाता हूं..
मन को बहुत रमाता हूं..
अनेकों वर्षों का मैं ..
गुड़ा भाग लगाता हूं..
एक घर अपना सा ..
अपनो से भरा हुआ..
एक दिन त्याग कर जाता हुआ..
किस बात का गुनहगार हूं..!!
मैं एक किरदार हूं..!!!!

कौन हूं मैं ? ज्ञान कहां से पाऊं..

कौन हूं मैं?
ज्ञान कहां से पाऊं..?
या फिर जानूं ही ना..
इस प्रश्न को ही मैं निभाऊं..।
जन्म मरण के फेरे में..
आए हैं जो इस घेरे में..
केंद्र बनूं कभी परिधि..
जीवन का कर्तव्य निभाऊं..।
कौन हूं मैं और नहीं कौन..?
क्यूं भ्रम को और बढ़ाऊं..।
फिर भी आवश्यक यदि..
प्रश्न का कोई हल है..
जियो पूर्ण सामर्थ्य से.. 
सम्मुख जो भी पल है.।
मैं वहीं हूं..जो ..
अनन्त की प्रणति है..
सर्वज्ञ के सार में..
जीवन की जो गति है..।
मैं जानूं या जानूं ना..
जानते तो होंगे महादेव हमारे..
खुद को प्रश्न बना भी दूं तो..
उत्तर हैं वो एकमेव हमारे ।।

स्वीकृति अस्वीकृति चलती रहती है..बात इतनी है कि बात बदलती रहती है..

स्वीकृति अस्वीकृति चलती रहती है..

बात इतनी है कि बात.. बदलती रहती है..!!

कभी होती है तपती दोपहर अपनी..

कभी शाम किसी की जलती रहती है..।

किस बात का लुफ्त लेते हो दूसरों के हालातों में..

आज हमारी कल तुम्हारी बारी है साहब..

सबकी तहरीर बदलती रहती है..।

रखते हैं तलवार सभी..

खंजर सबके पास है..

किस भ्रम में जीते हो..!!

चुप रहते है लेकिन..

आग तो हृदय में सुलगती रहती है..

बात इतनी है कि बात बदलती रहती है.. ।

ईंट पत्थर मकान नहीं ..मेरा घर है ये..

ईंट पत्थर मकान नहीं ..

मेरा घर है ये..

मतलबी रिश्तों की तरह..

बेजान नहीं..।।

मेरा घर है ये..

किसी का आशीर्वाद है ये..

किसी का ये सपना है..

मेरे अपनों की बुनियाद है..

ये घर मेरा अपना है..

तुम्हारा कोई अहसान नहीं !!

मेरा घर है ये..

तुम आना सोच समझकर..

यदि नहीं उज्ज्वल ध्येय तुम्हारा..

किसी की घुटती इच्छाओं का..

उत्थान नहीं..

मेरा घर है ये..।।

चाहत होगी तुमको हमारी..मगर हमको तुम्हारी चाहत नहीं है..

चाहत होगी तुमको हमारी..
हमको तुम्हारी चाहत नहीं है..।
कल तक तुमको हमारी..
जरूरत नहीं थी..
आज हमको तुम्हारी..
जरूरत नहीं है..।
कभी चाहा था तुम्हें..
हृदय अचंभित आज भी है..
वो प्रणय निवेदन मेरा..
हालांकि विलंबित आज भी है..
मगर अब स्वीकृति तुम्हारी !!
खैर इसकी अब हमें हसरत नहीं है ।
रूप रंग कद काठी मेरी..
तुमको जो नहीं लुभावनी लगी..
अस्वीकरण का नहीं रोष मुझे…
पर पलट कर आना मेरी ओर..
आज इसकी इजाज़त नहीं है..।
चाहत होगी तुमको हमारी..
मगर हमको तुम्हारी चाहत नहीं है..।।

कर ना पकड़ो तुम मेरे..हृदय मेरा स्पर्श कर लो..

कर ना पकड़ो तुम मेरे..

हृदय मेरा स्पर्श कर लो..

बातें ना करो मोहक मोहक..

अलौकिक कोई विमर्श कर लो..

दिन रात के वही सब काम काज़..

कुछ तो आज सहर्ष कर लो..

दूर रहो तुम खड़े..

निहारें तुम्हें पल पल..

खुद को कोई वर्ष कर लो..

कोई ना स्वार्थ हो जहां..

पाने की ना हो चेष्टा.. 

आलंगित केवल प्रेम हो..

ऐसा भी कोई संघर्ष कर लो..

कर ना पकड़ो तुम मेरे..

हृदय मेरा स्पर्श कर लो..।।

प्रेम बहुत करते हैं तुमसे.. पर ये गायब हो जाएगा..

प्रेम बहुत करते हैं तुमसे..

गायब हो जायेगा पर ये..

अनायास यू छूने से..

देखकर जो तुमको चमक उठते हैं

आलिंगन के प्रयोजन में हो जाएंगे 

नयन मेरे सूने से..

तबीयत हमारी नहीं छुई मुई सी..

पर हृदय हमारा कोमल है..

ना चाहना जो संबंध हृदय के..

सस्नेह विदा ले लेना..

जाना बहुत करीने से..

प्रेम बहुत करते हैं तुमसे..

पर ये गायब हो जाएगा..

अनायास यूं छूने से..

तमाशा देखने वालों की कतार में शुमार हम भी हैं..

तमाशा देखने वालों की कतार में..

शुमार हम भी हैं..!!

हम ना सही कोई और बचा लेगा उसे..

इस गलतफहमी का शिकार हम भी हैं..!!

नफ़रत और रंज की दुनिया में..

कोई निर्णायक भूमिका न ले सके..

एक बिन धार की तलवार हम भी हैं..!!

झुका लेते हैं सर ..संघर्ष किए बिना..

नहीं करते प्रतिकार कोई..

क्या कहें..बहुत समझदार हम भी हैं..!!

मंज़िल की खोज में हैं..

रास्तों को रौंदते हुए..

बहुत कुछ पा लेने के..

तलबगार हम भी हैं!!

तमाशा देखने वालों की कतार में..

शुमार हम भी हैं..!!

मुस्कुरा कर तो देखो.. अपनों को पास बुलाकर तो देखो..

वो जो दूर दूर रहते हैं..
खुद में मशगूल रहते हैं..
उनको जाने भी दो अब..
खुद को यूं बोझिल ना करो..
गैरों की सी तासीर वाले वो..
उनकी अहमियत को ..
खुद में शामिल ना करो..
कितनी जबरदस्त मुस्कुराहट है तुम्हारी..
मुस्कुरा कर तो देखो..
अपने भी हैं आस पास 
बुलाकर तो देखो..
अशांत ना रहो..
रोशनी में आओ..
थोड़ा सा आंख ..
उठाकर तो देखो..
तुम खुद के लिए ..
बहुत बड़ी खुशी हो..
खुद को पाकर तो देखो..
किसी और की आस में जीना बंद करो..
खुल कर हंसो अब से..
सब लोग हसेंगे संग तुम्हारे..
तुम जो चलोगे पुलकित पुलकित..
सब लोग चलेंगे संग तुम्हारे..
आज ये शर्त लगाकर तो देखो..
थोड़ा सा मुस्कुरा कर तो देखो..
भीड़ से बाहर आकर तो देखो..
पहला कदम बढ़ा कर तो देखो..

चले जाएंगे हम..रोना ना तुम..तुमको हमारी कसम है..

चले जाएंगे हम,

रोना ना तुम..

तुमको हमारी कसम है..

ये मौत क्या है.. 

कुछ भी नहीं है ..

मौत तो आखिर होनी ही है ..

फिर तुमको काहे का गम है..

कौन कहता है कि मिलते नहीं,

लोग जुदा होके,

हम फिर मिलेंगे..

ये यकीन है हमारा..

नहीं ये भरम है..

चले जाएंगे हम..

रोना ना तुम..

तुमको हमारी कसम है..

x

खुशियां हों बहारें हों ..आपकी ज़िन्दगी में..

खुशियां हों.. बहारें हों..

आपकी ज़िन्दगी में..

चमकते सितारें हों..

आपकी ज़िन्दगी में..

हम तो अकेले हैं..

अकेला है सफर हमारा..

यूं ही कट जाएगा..

ये रास्ता सारा..

हजारों सहारें हों..

आपकी ज़िन्दगी में..

कभी कोई ग़म ना आए..

आपको रुलाने के लिए..

ना कभी नयन खारे हों..

आपकी ज़िन्दगी में..

मेरी बात तुम्हें सिर्फ एक बात लगती है..बस इतनी पहचान क्यूं??

मेरी बात तुम्हें सिर्फ..

एक बात लगती है!!

मेरी बात की बस ..

इतनी पहचान क्यों??

हो सकता है तुम्हें.. 

भी वहीं जाना हो..

जहां मुझे जाना है..

दो कदम जिंदगी में..

अकेली उड़ान क्यूं..??

क्यूं चल रहे हो..

औरों को कुचलकर??

धर्म कर्म के रखवाले तुम..!!

अधर्म का करते इतना मान क्यूं??

परस्पर हैं..काम काज़ सब अपने..

फेरे में हैं.. ये दिन आज अपने..

एक दूसरे पर व्यर्थ का अहसान क्यूं ??


बादलों की औकात नहीं इतनी.. कि सूरज को निकलने की हिम्मत ना रहे...

बादलों की औकात नहीं इतनी..
सूरज को निकलने की हिम्मत ना रहे..
मुश्किलों की बिसात नहीं इतनी..
झेलने की उनको ताकत ना रहे..
बहुत बेतकल्लुफ़ हैं..
ज़िन्दगी के वाकयात भी..
क्योंकर सोचें हम..
कि ये हालत ना रहे..
बीतने के लिए ही हैं..
ये दिन महीने साल..!
रुकते भी नहीं ये किसी हाल..
तो फिर क्यों भला..
यूं भी हर बात से..
हमें उल्फत ना रहे.।।

ओझल तन मन...जीवन.. हम तुम केवल बंधे बंधे.. हम राही केवल, नहीं हमराही...

ओझल तन मन...जीवन.. हम तुम केवल बंधे बंधे.. हम राही केवल, नहीं हमराही... चले आते हैं, चले जाते हैं... सुबह शाम बिन कहे सुने.. न हाथों का मेल....