मेरी बातों में तो हैं बातें कई..
चाहे जो अर्थ लगा लो..
तुम जैसे हो..
वैसा ही अर्थ पाओगे..
निर्भर है तुम पर ही..
अब जो भी अर्थ निकालो..
अर्थ भी मै हो सकती हूं..
अर्थ का आधार भी...
पर समर्थ तुम ही हो..
चाहे जैसे मुझे संभालो..।
अर्थहीन भी..
क्या पता मेरा ..
ख्याल हो..
पर सब तर्क तुम्हीं हो..
असमंजस से मुझे बचा लो..!!!!!