एक पारदर्शी शीशा..
बन जाता है चलचित्र कभी..
देखते है जो उधर कभी..
उभर आती है आपकी हंसी,
नेत्रों से नेत्र का जो..
होता है मिलन कभी,
बदल जाते हैं..
आयाम सभी..
सुनना आपकी बातों का..
अनिवार्य सा लगता हैं..
यूं तो होती है और भी बातें कई..।।
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मेरे एनक के पीछे..
उस पारदर्शी शीशे से..
क्या दिखता है तुमको भी ऐसा ही..
मेरी आवाज़ लगती है..
तुमको भी मधुर सी..
उस पारदर्शी शीशे से..
दिखती है क्या तुमको भी..
कोई आकृति.....।।।।।