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थोड़ा तो आराम दो..

कम से कम चाय बनाना सीख लो..

फरमानों को थोड़ा विराम दो..

हे पुरुष समाज !!

हमें थोड़ा तो आराम दो..

घर की लक्ष्मी ..

नाम की..क्यूं !!

हमें मुकम्मल नाम दो..

हे पुरुष समाज !!

हमें कुछ तो आराम दो..

अब तो हमारी भी हिस्सेदारी..

घर का खर्च चलाने में..

वापस जो घर आऊं तो..

मेरे जैसी मुस्कुराहट तुमको..

और सुनहरी शाम दो..

हे पुरुष समाज !!

हमें भी आराम दो..

दर्द मुझे भी..

दिनभर की थकी हारी..

मै भी तुम जैसी.. 

कुछ तो संज्ञान लो..!

हे पुरुष समाज !!

थोड़ा तो आराम दो..

फरमानों को विराम दो..!!


















ओझल तन मन...जीवन.. हम तुम केवल बंधे बंधे.. हम राही केवल, नहीं हमराही...

ओझल तन मन...जीवन.. हम तुम केवल बंधे बंधे.. हम राही केवल, नहीं हमराही... चले आते हैं, चले जाते हैं... सुबह शाम बिन कहे सुने.. न हाथों का मेल....