हश्र यही होता..
जब बेखयाल ही..
सब कुछ..
क्या फर्क पड़ता है ..
ऐसा होता या ..
वैसा होता..
या कुछ भी नहीं होता..!!
डूब जाना ही ..
जीवन के बवंडर में..
खुशी है..अगर
किसे फिर सत्यता का ..
यकीन होता..
कुछ भी होता..
हश्र यही होता...
ओझल तन मन...जीवन.. हम तुम केवल बंधे बंधे.. हम राही केवल, नहीं हमराही... चले आते हैं, चले जाते हैं... सुबह शाम बिन कहे सुने.. न हाथों का मेल....
Guud
ReplyDeleteRight said
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