खूबसूरत नहीं थी मैं..तुम भी मनोहर नहीं थे

खूबसूरत..नहीं थी मैं..

तुम भी मनोहर नहीं थे..।

साथ में आए तो..
नयन मेरे चमकने लगे..
तुम भी मुस्कुराने लगे..।
और साथ चले जब..
जीवनसाथी बनकर..
आकर्षण के कवच त्यागकर..
हम दोनों एक दूसरे को पसंद आने लगे..।
फिर पंख एक हो गए..
हम अनंत में खो गए..
ढूंढ कर लाए हम किलकारियां..
प्रेम को समझ पाने लगे..।
ख्वाहिशें मेरी हो गईं तुम्हारी..
तुम्हारी चाहते हम चाहने लगे..।
जीवन की सब गलियों से निकलकर..
साथ बैठे जब बहुत दूर चलकर..।
जहां हृदय का पूर्ण संगम हो..।
कुछ खूबसूरत है..तो मैं हूं..
कुछ मनोहर है..वो तुम हो..।।

14 comments:

  1. वाह👌👌 जीवन में प्रेम दैहिक आकर्षण पर आधारित हो तो वह देह की चमक बदलते ही अपनी आभा खो देता है। मन के स्तर की आत्मीयता ही अमर होती है। बहुत ही सुंदर शब्दों में आपने प्रतिकात्मक रूप में एक सुंदर प्रणय गाथा बयाँ की है।
    इस सरस मनोरम सृजन के लिए हार्दिक शुभकामनाएं ❤❤🌹🌹

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  2. बहुत सुकोमल भाव । जब दो लोग दो नहीं रहते, एक हो जाते हैं । मिलता है जहां धरती से गगन, आओ वहीं हम जाएं; तू तू ना रहे, मैं मैं ना रहूं, इकदूजे में खो जाएं ।

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  3. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (२१-०२-२०२१) को 'दो घरों की चिराग होती हैं बेटियाँ' (चर्चा अंक- ३९८४) पर भी होगी।

    आप भी सादर आमंत्रित है।
    --
    अनीता सैनी

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  4. बहुत बढ़िया। कोमल भावों में डूबी सुंदर रचना। इस हृदयस्पर्शी सृजन के लिए आपको शुभकामनाएँ। सादर।

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  5. धीरे धीरे परवान चढ़ता प्रेम ही शाश्वत होता है । बेहतरीन अभिव्यक्ति ।

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  6. सुन्दर अभिव्यक्ति !! कोमल भाव !!

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  7. बहुत खूब ''चंदन-पानी'' की भांत‍ि है आपकी ये रचना...दोनों एक भी हैं और अलग भी..वाह

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  8. "फिर पंख एक हो गए..
    हम अनंत में खो गए..
    ढूंढ कर लाए हम किलकारियां..
    प्रेम को समझ पाने लगे..।"

    वाह !!प्रेमरस में डूबी हृदयस्पर्शी रचना....

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  9. यथार्थ के धरातल पर पनपता प्रेम ही स्थिर और दृढ़ हैं ।
    बहुत सुंदर सृजन थोड़े में बहुत कुछ कह रही है आपकी रचना।
    वाह!!

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  10. वाह ! बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ।

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  11. अत्यंत सुन्दर सराहनीय रचना

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  12. कोमल भावों में डूबी रचना।

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  13. बहुत सुंदर

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  14. ye prem ki parakashtha hai.Apratim Atulneeya

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ओझल तन मन...जीवन.. हम तुम केवल बंधे बंधे.. हम राही केवल, नहीं हमराही...

ओझल तन मन...जीवन.. हम तुम केवल बंधे बंधे.. हम राही केवल, नहीं हमराही... चले आते हैं, चले जाते हैं... सुबह शाम बिन कहे सुने.. न हाथों का मेल....