जो बंदिशे नहीं होंगी..
निश्चल प्रेम भी नहीं होगा..।
मिलन में कोई मतलब हो सकता है..
ना मिले ..और प्रेम हो जाय सदा के लिए..
बस वही तो मन का प्रेम होगा..।
प्रेम अगर आलिंगन है..
अधरों का मिलन है..
और समाजिक व्यवहार नहीं..
निश्चित ही ये कुछ और है..
ये मौलिक प्यार नहीं..
मौलिकता को समझोगे कैसे ?
नैतिक जब मन के उदगार नहीं..
वो जो फांसते हैं मीठी मीठी बातों से..
उनको समझाना मुश्किल है..
तुम ही समझो हे प्रिया..
प्रेम अवश्य है जगत में..
तुम्हारे लिए कहीं छुपा..
छुपा हुआ हो मकसद जिनका..
वो तुम्हारा प्यार नही...।।।।।
बहुत बहुत आभार शामिल करने के लिए..नमन
ReplyDeleteठीक कहा अर्पिता जी आपने ।
ReplyDeleteबिल्कुल
ReplyDeleteबढ़िया सृजन
बहुत सटीक सन्दर्भ रेखांकित करती नायाब रचना..
ReplyDeleteसुन्दर भावाभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteमिलन में कोई मतलब हो सकता है..
ReplyDeleteना मिले ..और प्रेम हो जाय सदा के लिए..
बस वही तो मन का प्रेम होगा..।
वाह !! प्रेम को परिभाषित करता सुंदर सृजन
जो बंदिशे नहीं होंगी..
निश्चल प्रेम भी नहीं होगा..।
बिलकुल सही कहा आपने
स्पष्ट एवं मुखर लेखन।
ReplyDeleteबहुत बहुत सुन्दर अन्तर मन की अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना...
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