जो बंदिशे नहीं होंगी.. निश्चल प्रेम भी नहीं होगा..

जो बंदिशे नहीं होंगी..

निश्चल प्रेम भी नहीं होगा..।

मिलन में कोई मतलब हो सकता है..

ना मिले ..और प्रेम हो जाय सदा के लिए..

बस वही तो मन का प्रेम होगा..।

प्रेम अगर आलिंगन है..

अधरों का मिलन है..

और समाजिक व्यवहार नहीं..

निश्चित ही ये कुछ और है..

ये मौलिक प्यार नहीं..

मौलिकता को समझोगे कैसे ?

नैतिक जब मन के उदगार नहीं..

वो जो फांसते हैं मीठी मीठी बातों से..

उनको समझाना मुश्किल है..

तुम ही समझो हे प्रिया..

प्रेम अवश्य है जगत में..

तुम्हारे  लिए कहीं छुपा..

छुपा हुआ हो मकसद जिनका..

वो तुम्हारा प्यार नही...।।।।।

9 comments:

  1. बहुत बहुत आभार शामिल करने के लिए..नमन

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  2. ठीक कहा अर्पिता जी आपने ।

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  3. बिल्कुल
    बढ़िया सृजन

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  4. बहुत सटीक सन्दर्भ रेखांकित करती नायाब रचना..

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  5. सुन्दर भावाभिव्यक्ति ।

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  6. मिलन में कोई मतलब हो सकता है..

    ना मिले ..और प्रेम हो जाय सदा के लिए..

    बस वही तो मन का प्रेम होगा..।

    वाह !! प्रेम को परिभाषित करता सुंदर सृजन

    जो बंदिशे नहीं होंगी..
    निश्चल प्रेम भी नहीं होगा..।

    बिलकुल सही कहा आपने

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  7. स्पष्ट एवं मुखर लेखन।

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  8. बहुत बहुत सुन्दर अन्तर मन की अभिव्यक्ति

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  9. बहुत सुन्दर रचना...

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ओझल तन मन...जीवन.. हम तुम केवल बंधे बंधे.. हम राही केवल, नहीं हमराही...

ओझल तन मन...जीवन.. हम तुम केवल बंधे बंधे.. हम राही केवल, नहीं हमराही... चले आते हैं, चले जाते हैं... सुबह शाम बिन कहे सुने.. न हाथों का मेल....