ओझल तन मन...जीवन.. हम तुम केवल बंधे बंधे.. हम राही केवल, नहीं हमराही...

ओझल तन मन...जीवन..

हम तुम केवल बंधे बंधे..

हम राही केवल, नहीं हमराही...

चले आते हैं, चले जाते हैं...

सुबह शाम बिन कहे सुने..

न हाथों का मेल..

न चाहतों की कोई बेल...

शब्द भी अनमने...

निष्कर्ष भी मिले जुले !!!

सपने भी कहते होंगे...

कैसे हम रहते होंगे...

हकीकतों का कहकहा सुनकर...

फिर तह कोई सुकून दे जाती होगी शायद..

मुसीबतों का गिरेबान पकड़कर...

इसी बहाने नींद आ जाती होगी गहरी सी...

जमीन पर पड़े पड़े......!!!!!!!!!!!



तुम पर इल्ज़ाम लगाएंगे कैसे.. धुरी तुम्हारी ही..तुम्ही से तो सधे हुए हैं ..

तुम पर इल्ज़ाम लगाएंगे कैसे..

धुरी तुम्हारी ही..तुम्ही से तो सधे हुए हैं ..

बोझिल मन हो सकता है...

समर्पण भाव खो सकता है...

तुमसे दूर जायेंगे कैसे ...

मन से इतने जो बंधे हुए हैं...

कलह कोई, द्वेष कोई.. 

न रखना बहुत देर तक...

नही पहुंचती मेरी मंशा भी..

रिश्तों के इन हेर फेर तक..

तुमको उलझाएंगे कैसे..

तुम्हारी ही जद में पड़े हुए हैं..

घर मेरा तुम्हारा ................ 

..ये जमावड़ा...रिश्तों का जाल सारा..

ये कांटा ...वो मछुवारा....

इन सबमें तुमको फसाएंगे कैसे..

किसी बात पर तो हम भी..

अकर्मण्य से तड़प रहें हैं...!!!!!!



ऋणी रहूंगी सदा.. तुमको जो न अपना सकी.. स्त्री होकर भी..

मैं ऋणी रहूंगी सदा..

तुमको जो न अपना सकी..

स्त्री होकर भी..

न्याय न तुमको दिला सकी..

एक मत मेरा भी था हालांकि..

बहुमत न उसको बना सकी..

रूप रंग के चाहने वालों को 

मन का सौंदर्य न समझा सकी..

तुमको आशीर्वाद है लेकिन..

बेहतर तुमको घरबार मिले..

ये अंतिम तिरस्कार हो तुम्हारा..

तुमको अब सिर्फ चाहा हुआ ..

अपनत्व भरा घर संसार मिले...




ओझल तन मन...जीवन.. हम तुम केवल बंधे बंधे.. हम राही केवल, नहीं हमराही...

ओझल तन मन...जीवन.. हम तुम केवल बंधे बंधे.. हम राही केवल, नहीं हमराही... चले आते हैं, चले जाते हैं... सुबह शाम बिन कहे सुने.. न हाथों का मेल....