दफ्तर से घर जब लौटकर..

दफ्तर से घर जब लौटकर..

मै आती हूं..

बच्चे का मंगाया हुआ..

कोई ना कोई सामान लाती हूं..

कभी कभी नहीं  भी ला पाती..

फिर भी संतोष उनके मुख पर पाती हूं..

पर सोचकर वो खुशी..असीम..

करती हूं प्रयास ..

ना आऊं कभी मैं खाली हाथ..

एक टॉफी या चॉकलेट..

की बात नहीं..

बच्चों का दिनभर का इंतजार है..

घर में चाहे सब कुछ हो..

पर वो एक नई चीज़ ..

जो हाथ में मेरे होती है..

नई खुशी नई भूख ..

तृप्त मन ..पूर्ण खुशी..

अभिव्यक्ति से परे..

थोड़ा सा ही कुछ पाकर ..

चहकते बच्चे मेरे..।।









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ओझल तन मन...जीवन.. हम तुम केवल बंधे बंधे.. हम राही केवल, नहीं हमराही...

ओझल तन मन...जीवन.. हम तुम केवल बंधे बंधे.. हम राही केवल, नहीं हमराही... चले आते हैं, चले जाते हैं... सुबह शाम बिन कहे सुने.. न हाथों का मेल....