नयन तुम्हारे, अधर तुम्हारे..
मेरे तो नहीं हैं..
क्योंकर अवलोकन उनका कर बैठे !!
वचन तुम्हारे ,कथन तुम्हारे..
मेरे तो नहीं हैं..
क्योंकर उनको हृदय में जगह दे बैठे !!
कर तुम्हारे, अवसर तुम्हारे..
मेरे तो नहीं हैं..
क्योंकर उम्मीद उनसे कर बैठे!!
त्याग तुम्हारे, चयन तुम्हारे..
मेरे तो नहीं हैं..
कैसे वरण जीवन का तुम हो बैठे!!
अस्वीकार मत करना...
क्यूंकि ये प्रणय निवेदन नहीं..
तुम्हारी एक परिक्रमा मात्र है..
प्रयोजन ना कोई समझना इसे..
जो भी है ..
सब निस्वार्थ है..।।