किसी के मन में मेरा भी कोई बसर हो..
किसी की बातों में मेरी भी कोई खबर हो..।
उसकी आंखो में मेरे लिए कोई ललक हो..
चेहरे पर उसकी..मेरी मुस्कुराहट का असर हो..।
साथ बैठकर मन की कुछ बातें करे कोई..
अपनी भी कहे मन की..मेरी भी सुने कोई..।
ठहर कर बातें जम सी गईं है मन में..
रास्ता खुले बातों का..अबाध सफर हो..।
हां, कुछ ऐसा वक्त आया तो था..
किसी की मौजूदगी ने मन को लुभाया तो था..।
रुक क्यों नहीं पाया , मन ने अपनाया तो था..
उठ गए दोनों..बातें बीच में छोड़कर ..किसी शोर में..
सुन ना सके..एक दूसरे को..किसी और के विभोर में ।
बिछड़ जो गए..ऐसी भी ना कोई अंध लहर हो..।
चलो जोड़ लो..फिर से मन के फासले मिटा लो..।
धूप में बैठो उसी तरह फिर.. बातों को संभाल लो..
कोई अनमनी सुबह ना हो अब..ना कोई ऐसी दोपहर हो..।।
अतिसुंदर पक्तिया!!
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