बादलों की औकात नहीं इतनी.. कि सूरज को निकलने की हिम्मत ना रहे...

बादलों की औकात नहीं इतनी..
सूरज को निकलने की हिम्मत ना रहे..
मुश्किलों की बिसात नहीं इतनी..
झेलने की उनको ताकत ना रहे..
बहुत बेतकल्लुफ़ हैं..
ज़िन्दगी के वाकयात भी..
क्योंकर सोचें हम..
कि ये हालत ना रहे..
बीतने के लिए ही हैं..
ये दिन महीने साल..!
रुकते भी नहीं ये किसी हाल..
तो फिर क्यों भला..
यूं भी हर बात से..
हमें उल्फत ना रहे.।।

1 comment:

  1. बहुत सुंदर पंक्तियां 👌

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ओझल तन मन...जीवन.. हम तुम केवल बंधे बंधे.. हम राही केवल, नहीं हमराही... चले आते हैं, चले जाते हैं... सुबह शाम बिन कहे सुने.. न हाथों का मेल....