हमको तुम्हारी चाहत नहीं है..।
कल तक तुमको हमारी..
जरूरत नहीं थी..
आज हमको तुम्हारी..
जरूरत नहीं है..।
कभी चाहा था तुम्हें..
हृदय अचंभित आज भी है..
वो प्रणय निवेदन मेरा..
हालांकि विलंबित आज भी है..
मगर अब स्वीकृति तुम्हारी !!
खैर इसकी अब हमें हसरत नहीं है ।
रूप रंग कद काठी मेरी..
तुमको जो नहीं लुभावनी लगी..
अस्वीकरण का नहीं रोष मुझे…
पर पलट कर आना मेरी ओर..
आज इसकी इजाज़त नहीं है..।
चाहत होगी तुमको हमारी..
मगर हमको तुम्हारी चाहत नहीं है..।।
राहत इतनी ही है कि
ReplyDeleteचाहत तुम्हारी से
आहत न हुई कभी !!
हत हुई वेदना
था जिसे दूर भेदना !!
मार्मिक टिप्पणी करने वाले मित्र..
ReplyDeleteकृपया अपना परिचय दीजिए..
आपका धन्यवाद..
बहुत ही सुंदर रचना.👌
ReplyDeletesadar prnam devi
ReplyDeleteप्रणाम आपको
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