चाहत होगी तुमको हमारी..मगर हमको तुम्हारी चाहत नहीं है..

चाहत होगी तुमको हमारी..
हमको तुम्हारी चाहत नहीं है..।
कल तक तुमको हमारी..
जरूरत नहीं थी..
आज हमको तुम्हारी..
जरूरत नहीं है..।
कभी चाहा था तुम्हें..
हृदय अचंभित आज भी है..
वो प्रणय निवेदन मेरा..
हालांकि विलंबित आज भी है..
मगर अब स्वीकृति तुम्हारी !!
खैर इसकी अब हमें हसरत नहीं है ।
रूप रंग कद काठी मेरी..
तुमको जो नहीं लुभावनी लगी..
अस्वीकरण का नहीं रोष मुझे…
पर पलट कर आना मेरी ओर..
आज इसकी इजाज़त नहीं है..।
चाहत होगी तुमको हमारी..
मगर हमको तुम्हारी चाहत नहीं है..।।

5 comments:

  1. राहत इतनी ही है कि
    चाहत तुम्हारी से
    आहत न हुई कभी !!

    हत हुई वेदना
    था जिसे दूर भेदना !!

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  2. मार्मिक टिप्पणी करने वाले मित्र..
    कृपया अपना परिचय दीजिए..
    आपका धन्यवाद..

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  3. बहुत ही सुंदर रचना.👌

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ओझल तन मन...जीवन.. हम तुम केवल बंधे बंधे.. हम राही केवल, नहीं हमराही... चले आते हैं, चले जाते हैं... सुबह शाम बिन कहे सुने.. न हाथों का मेल....