मैं ऋणी रहूंगी सदा..
तुमको जो न अपना सकी..
स्त्री होकर भी..
न्याय न तुमको दिला सकी..
एक मत मेरा भी था हालांकि..
बहुमत न उसको बना सकी..
रूप रंग के चाहने वालों को
मन का सौंदर्य न समझा सकी..
तुमको आशीर्वाद है लेकिन..
बेहतर तुमको घरबार मिले..
ये अंतिम तिरस्कार हो तुम्हारा..
तुमको अब सिर्फ चाहा हुआ ..
अपनत्व भरा घर संसार मिले...
No comments:
Post a Comment