ऋणी रहूंगी सदा.. तुमको जो न अपना सकी.. स्त्री होकर भी..

मैं ऋणी रहूंगी सदा..

तुमको जो न अपना सकी..

स्त्री होकर भी..

न्याय न तुमको दिला सकी..

एक मत मेरा भी था हालांकि..

बहुमत न उसको बना सकी..

रूप रंग के चाहने वालों को 

मन का सौंदर्य न समझा सकी..

तुमको आशीर्वाद है लेकिन..

बेहतर तुमको घरबार मिले..

ये अंतिम तिरस्कार हो तुम्हारा..

तुमको अब सिर्फ चाहा हुआ ..

अपनत्व भरा घर संसार मिले...




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ओझल तन मन...जीवन.. हम तुम केवल बंधे बंधे.. हम राही केवल, नहीं हमराही...

ओझल तन मन...जीवन.. हम तुम केवल बंधे बंधे.. हम राही केवल, नहीं हमराही... चले आते हैं, चले जाते हैं... सुबह शाम बिन कहे सुने.. न हाथों का मेल....