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स्वीकृति अस्वीकृति चलती रहती है..बात इतनी है कि बात बदलती रहती है..

स्वीकृति अस्वीकृति चलती रहती है..

बात इतनी है कि बात.. बदलती रहती है..!!

कभी होती है तपती दोपहर अपनी..

कभी शाम किसी की जलती रहती है..।

किस बात का लुफ्त लेते हो दूसरों के हालातों में..

आज हमारी कल तुम्हारी बारी है साहब..

सबकी तहरीर बदलती रहती है..।

रखते हैं तलवार सभी..

खंजर सबके पास है..

किस भ्रम में जीते हो..!!

चुप रहते है लेकिन..

आग तो हृदय में सुलगती रहती है..

बात इतनी है कि बात बदलती रहती है.. ।

मेरी बात तुम्हें सिर्फ एक बात लगती है..बस इतनी पहचान क्यूं??

मेरी बात तुम्हें सिर्फ..

एक बात लगती है!!

मेरी बात की बस ..

इतनी पहचान क्यों??

हो सकता है तुम्हें.. 

भी वहीं जाना हो..

जहां मुझे जाना है..

दो कदम जिंदगी में..

अकेली उड़ान क्यूं..??

क्यूं चल रहे हो..

औरों को कुचलकर??

धर्म कर्म के रखवाले तुम..!!

अधर्म का करते इतना मान क्यूं??

परस्पर हैं..काम काज़ सब अपने..

फेरे में हैं.. ये दिन आज अपने..

एक दूसरे पर व्यर्थ का अहसान क्यूं ??


ओझल तन मन...जीवन.. हम तुम केवल बंधे बंधे.. हम राही केवल, नहीं हमराही...

ओझल तन मन...जीवन.. हम तुम केवल बंधे बंधे.. हम राही केवल, नहीं हमराही... चले आते हैं, चले जाते हैं... सुबह शाम बिन कहे सुने.. न हाथों का मेल....