मैं एक किरदार हूं..

मैं एक किरदार हूं..!
कभी अहम पाल लेता हूं..
कभी वहम पाल लेता हूं..
हाथ देखता हूं जब खाली से..
ईश्वर का तलब गार हूं..।
मैं एक किरदार हूं..!
चलता हूं.. भागता हूं..
कुछ जोड़ने की जुगत में..
अपलक जागता हूं..!
ठहरता भी हूं मैं थककर..
रह जाता हूं लेकिन मैं अतृप्त सा..!
मैं एक अधूरा सा सार हूं !
मैं एक किरदार हूं..!
बसाता हूं.. सजाता हूं..
मन को बहुत रमाता हूं..
अनेकों वर्षों का मैं ..
गुड़ा भाग लगाता हूं..
एक घर अपना सा ..
अपनो से भरा हुआ..
एक दिन त्याग कर जाता हुआ..
किस बात का गुनहगार हूं..!!
मैं एक किरदार हूं..!!!!

1 comment:

  1. सही बात कही,ज़िन्दगी के रंगमंच पर हम सब एक किरदार ही तो हैं।

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ओझल तन मन...जीवन.. हम तुम केवल बंधे बंधे.. हम राही केवल, नहीं हमराही... चले आते हैं, चले जाते हैं... सुबह शाम बिन कहे सुने.. न हाथों का मेल....