यदि कोई विवाद ना हो..
मुझे कोई प्रतिवाद ना हो..।
छेड़ दिया है जो शंखनाद ..
युद्ध की फिर क्यों शुरुवात ना हो..।
ये अतिक्रमण तुम्हारा..!!
मौन हमारा कब तक होगा..
ये दमन हमारा..तुम्हारे द्वारा..
क्योंकर ना प्रतिउत्तर होगा..।
सुख शांति अगर नहीं पसंद तुम्हें..
कब तक ना समर होगा..!
हमको इससे इंकार नहीं..
कि मानवता से प्यार नहीं..
मानव जो तुम रह ना सके..
हमसे भी ना अब सबर होगा..।
वैसे तो समझो इतनी बात..
अपनी अपनी हद में रहो.
हम नहीं चाहते युद्ध कभी..
तुम भी समझो कि..कुछ भी..
किसी का अप्रिय ना हो..।