आज पुष्पों से आच्छादित है..।
यदि ये एक फूल होता मात्र..
या कोई गुलदस्ता ..
कुछ रोज़ में मुरझा गया होता..
मुश्किल भी होता बचाना उसे..
सोचो कैसे वो भला बचा होता..।
लेकिन गमले में लगा ये पौधा..
मेरे सामर्थ्य में है इसे सींचना..
पालना , उसे बढ़ते देखना..।
इसकी टहनी से मैंने और भी..
हरियाली प्रेम की पाई है..।
नई ऊर्जा हर एक कली के साथ..
ये नहीं कुछ देर का साथी..
बिल्कुल तुम्हारे प्रेम की तरह..
ये भी कालजयी है..।।
Bahoot achhi rachna hai aapki,
ReplyDeleteIsi tarah aap likhte, muskurate rahen apni jindagi me
Thanks
इस कविता का अर्थ केवल शब्दों में ही नहीं है, शब्दों तथा पंक्तियों के मध्य भी कहीं छुपा है । जो समझना चाहे (और जिस रूप में समझना चाहे), समझ ले । जहाँ तक मेरा प्रश्न है, क्या कहूं कि मैंने क्या समझा और क्या महसूस किया ? वाणी मूक हो गई है ।
ReplyDeleteबसन्तोत्सव पर सुन्दर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteवाह!बहुत अनमोल है उपहार।
ReplyDeleteसादर