बहुत साधारण सा ज्ञान मुझको..

बहुत साधारण सा ज्ञान मुझको..
रस छंद अलंकार नहीं लिखती..।
साधारण सी बातें है साफ साफ..
लच्छेदार वाक्य, श्रृंगार नहीं लिखती..।
हां कुछ कहना चाहती हूं तुमसे..
विनम्र सा निवेदन लिए..
बदलने हैं यहां के कुछ हालात..
क्रांति के नाम पर विवाद नहीं लिखती..।
बदलेगा ये माहौल भी..
तुम भी हाथ बढ़ाओ जो..
दो ही लोगों की तो बात है..
मसले ये सब सुलझाओ तो..
तुमको सुनाई ना दे..
ऐसी तो आवाज़ नहीं लिखती..।
कभी तुम प्रेरणा बनो..
कभी तुम सहारा..
कुछ सुधार करो..
कुछ निर्माण करो..
धरातल पर ना आ सकें जो..
ऐसे तो खयालात नहीं लिखती..।

8 comments:

  1. वाह! बहुत सुंदर।

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  2. यदि यह बात आपने अपने लिए कही है तो सत्य ही कही है । आपकी रचनाओं से तो यही परिलक्षित होता है । अभिव्यक्ति तो ऐसी ही होनी चाहिए । अभिनंदन आपका ।

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  3. बहुत बहुत सुन्दर सराहनीय

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  4. जितेंद्र जी की टिप्पणी से सहमत।
    बहुत अच्छा लिखा आपने।

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  5. बहुत ही सारगर्भित तरीके से अपने मन की बात कह दी ..और हमें सुनाई भी पड़ी..सुन्दर..

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  6. बहुत ही सुंदर।

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  7. अति सुन्दर कथ्य ।

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ओझल तन मन...जीवन.. हम तुम केवल बंधे बंधे.. हम राही केवल, नहीं हमराही...

ओझल तन मन...जीवन.. हम तुम केवल बंधे बंधे.. हम राही केवल, नहीं हमराही... चले आते हैं, चले जाते हैं... सुबह शाम बिन कहे सुने.. न हाथों का मेल....