तुम्हारी हमारी ना सही किसी की तो होगी..
ना रही ज़िन्दगी अपनी फिर भी ..।
बाकी ज़िन्दगी होगी ..
तुम कहने को कुछ चूक जाओगे..
हम सुनने से कुछ रह जाएंगे..
बातें फिर भी यही सब ..
आगे पीछे किसी ने कही होंगी..।
मन व्याकुल हो कर शिथिल हो गया जो..
सब कुछ व्यर्थ सा लगता है..।
अब आंखे मूंद ही लें..लेकिन
कुछ सोच सोच कर मन में..
शेष समर चलता है..।
बहुत जिया, जी भर जिया..
सब काम काज निपटा भी दिए..।
जो था आवश्यक संसार व्यवहार..
सब बेड़ा पार लगा भी दिए..।
बूढ़े तन में लेकिन डूबा मन ..
कई पीढ़ियों का संसार रचता है..।।
जी हाँ, सच ही कहा है अर्पिता जी आपने ।
ReplyDeleteप्रभावशाली,सुन्दर सृजन।
ReplyDeleteजिजीविषा चैन से जीने भी नहीं देती और मरने भी नहीं देती, जिंदगी तो हर पल लुटा रही है नेमतें पर मन की यह एषणा समेटने भी नहीं देती
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना।
ReplyDeleteआमंत्रण के लिए बहुत बहुत आभार..
ReplyDeleteअवश्य शामिल होंगे.
बहुत सुंदर भावपूर्ण सृजन।
ReplyDeleteसादर।
बहुत सुंदर प्रस्तुति चिंतन और दर्शन के भाव मुखरित हो गए।
ReplyDeleteसुंदर ।
बहुत बहुत सुन्दर रचना |
ReplyDeleteबहुत कुछ कह गई ये पंक्ति..कि शेष समर चलता है..चलता ही रहता है सदैव..वाह
ReplyDeleteसुन्दर सार्थक मनोभावों को उर्वरा देती सुन्दर कृति..
ReplyDeleteबूढ़े तन में लेकिन डूबा मन ..
ReplyDeleteकई पीढ़ियों का संसार रचता है..।।
बहुत भावपूर्ण पंक्तियाँ प्रिय अर्पिता जी | जीवन इसी उहापोह में बीत जाता है |
सुन्दर सृजन ।
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