तुम्हारी हमारी ना सही किसी की तो होगी..

तुम्हारी हमारी ना सही किसी की तो होगी..

ना रही ज़िन्दगी अपनी फिर भी ..।

बाकी ज़िन्दगी होगी ..

तुम कहने को कुछ चूक जाओगे..

हम सुनने से कुछ रह जाएंगे..

बातें फिर भी यही सब ..

आगे पीछे किसी ने कही होंगी..।

मन व्याकुल हो कर शिथिल हो गया जो..

सब कुछ व्यर्थ सा लगता है..।

अब आंखे मूंद ही लें..लेकिन

कुछ सोच सोच कर मन में..

शेष समर चलता है..।

बहुत जिया, जी भर जिया..

सब काम काज निपटा भी दिए..।

जो था आवश्यक संसार व्यवहार..

सब बेड़ा पार लगा भी दिए..।

बूढ़े तन में लेकिन डूबा मन ..

कई पीढ़ियों का संसार रचता है..।।

12 comments:

  1. जी हाँ, सच ही कहा है अर्पिता जी आपने ।

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  2. प्रभावशाली,सुन्दर सृजन।

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  3. जिजीविषा चैन से जीने भी नहीं देती और मरने भी नहीं देती, जिंदगी तो हर पल लुटा रही है नेमतें पर मन की यह एषणा समेटने भी नहीं देती

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  4. आमंत्रण के लिए बहुत बहुत आभार..
    अवश्य शामिल होंगे.

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  5. बहुत सुंदर भावपूर्ण सृजन।
    सादर।

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  6. बहुत सुंदर प्रस्तुति चिंतन और दर्शन के भाव मुखरित हो गए।
    सुंदर ।

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  7. बहुत बहुत सुन्दर रचना |

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  8. बहुत कुछ कह गई ये पंक्ति‍..क‍ि शेष समर चलता है..चलता ही रहता है सदैव..वाह

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  9. सुन्दर सार्थक मनोभावों को उर्वरा देती सुन्दर कृति..

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  10. बूढ़े तन में लेकिन डूबा मन ..
    कई पीढ़ियों का संसार रचता है..।।
    बहुत भावपूर्ण पंक्तियाँ प्रिय अर्पिता जी | जीवन इसी उहापोह में बीत जाता है |

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  11. सुन्दर सृजन ।

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ओझल तन मन...जीवन.. हम तुम केवल बंधे बंधे.. हम राही केवल, नहीं हमराही...

ओझल तन मन...जीवन.. हम तुम केवल बंधे बंधे.. हम राही केवल, नहीं हमराही... चले आते हैं, चले जाते हैं... सुबह शाम बिन कहे सुने.. न हाथों का मेल....