प्रेम भी कोई चीज़ है क्या !!

प्रेम भी कोई चीज़ है क्या !!

करने को ,कर गुजने को !!

एहसास कहूं तो झूठा है..

दिमाग ने दिल को लूटा है..।

मतलबी जब लोग सभी..

ये बंधन कैसे दिलों का हैं !!

कितने उदाहरण है घूमते ..

वो जो थे कभी माथे को चूमते..।

चिता जलाकर भूल गए वो 

रुखसत हुए है हम दुनिया से सिर्फ 

रिश्ता तो नहीं टूटा है..।

मै हमारे तुम्हारे बच्चों में अभी जिंदा हूं

प्रेम था जिससे तुमको मैं वही वृंदा हूं..

कुंवारे बन के ले आए एक नए प्रेम को..

अब तो यकीनन कहीं प्रेम नहीं..

शरीर से बंधा मन होगा ये 

मन से मन का मिलन नहीं..

प्रेम है झूठी परिकल्पना..

प्रेम से भरा यहां कोई मन नहीं..।।

12 comments:

  1. बहुत बढ़िया।

    ReplyDelete
  2. प्रणय दिवस के अवसर पर सार्थक प्रस्तुति।

    ReplyDelete
  3. बहुत बढ़िया और सार्थक सृजन के लिए आपको बधाई और शुभकामनाये। सादर।

    ReplyDelete
  4. अत्यंत गहन अभिव्यक्ति ।

    ReplyDelete
  5. सुन्दर रचना..आज के परिदृश्य में प्रभावी भी..

    ReplyDelete
  6. बहुत सुन्दर प्रशंसनीय रचना

    ReplyDelete
  7. आपकी अभिव्यक्ति पीड़ा से युक्त है । निजी पीड़ा (यदि कोई है) को अस्थाई रूप से विस्मृत कर के निरपेक्ष भाव से देखेंगी तो पाएंगी कि सच्चे प्रेमियों की प्रजाति अभी लुप्त नहीं हुई है । हां, ऐसे लोग अब बहुत कम रह गए हैं । पर यह बात भी मनुष्यों पर ही लागू है, निर्दोष तथा निश्छल पशु-पक्षियों पर नहीं ।

    ReplyDelete
  8. हृदयस्पर्शी सृजन ।

    ReplyDelete
  9. दिल के भावों को बहुत ही खूबसूरती से व्यक्त किया है आपने।

    ReplyDelete
  10. जो भी नाम दे दो पर ये कुछ तो है .. जुड़ाव इसी तो है ...
    सुन्दर भावपूर्ण लिखा है ...

    ReplyDelete
  11. वो जो थे कभी माथे को चूमते..।

    चिता जलाकर भूल गए वो ..

    चिंतनपरक है आपकी रचना। बहुत-बहुत शुभकामनाएँ आदरणीया....

    ReplyDelete
  12. बहुत सुंदर अंदाज़ में लिखी बेहतरीन रचना

    ReplyDelete

ओझल तन मन...जीवन.. हम तुम केवल बंधे बंधे.. हम राही केवल, नहीं हमराही...

ओझल तन मन...जीवन.. हम तुम केवल बंधे बंधे.. हम राही केवल, नहीं हमराही... चले आते हैं, चले जाते हैं... सुबह शाम बिन कहे सुने.. न हाथों का मेल....