यदि कोई विवाद ना हो..
मुझे कोई प्रतिवाद ना हो..।
छेड़ दिया है जो शंखनाद ..
युद्ध की फिर क्यों शुरुवात ना हो..।
ये अतिक्रमण तुम्हारा..!!
मौन हमारा कब तक होगा..
ये दमन हमारा..तुम्हारे द्वारा..
क्योंकर ना प्रतिउत्तर होगा..।
सुख शांति अगर नहीं पसंद तुम्हें..
कब तक ना समर होगा..!
हमको इससे इंकार नहीं..
कि मानवता से प्यार नहीं..
मानव जो तुम रह ना सके..
हमसे भी ना अब सबर होगा..।
वैसे तो समझो इतनी बात..
अपनी अपनी हद में रहो.
हम नहीं चाहते युद्ध कभी..
तुम भी समझो कि..कुछ भी..
किसी का अप्रिय ना हो..।
सुख शांति अगर नहीं पसंद तुम्हें..
ReplyDeleteकब तक ना समर होगा..!
हमको इससे इंकार नहीं..
कि मानवता से प्यार नहीं..
मानव जो तुम रह ना सके..
हमसे भी ना अब सबर होगा..।
सही कहा दी। कभी न कभी तो सब्र का बांध टूटेगा ही।
वाह....
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
इस रचना को पढ़ कर लग रहा कि पड़ोसी देशों की तसर्फ इशारा है ।
ReplyDeleteसार्थक कृति ।
बहुत ही सुंदर और प्रभावी रचना के लिये आपका बहुत आभार
ReplyDeleteप्रिय अर्पिता आपकी रचना कई मोर्चे पर लोहा लेने के लिए तैयार है.
ReplyDeleteसारगर्भित सृजन के लिए बहुत शुभकामनाएं..
सार्थक और सारगर्भित रचना। आपके निशाने पर घर के ही लोग लगते हैं।
ReplyDeleteसुंदर!!!
ReplyDeleteबात तो ठीक ही कही है अर्पिता जी आपने ।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया।
ReplyDeleteहद मैं रहना भी सिखाना पड़ता है!
ReplyDeleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति,अर्पिता।
ReplyDeleteवीर रस में चेतावनी, वाह ...वैसे तो समझो इतनी बात..
ReplyDeleteअपनी अपनी हद में रहो.... धन्य हो बहन
वाह!बहुत सुंदर वीर रस से सराबोर सृजन।
ReplyDeleteसादर
बहुत खूब। चेतावनी देने का एक अलग सा अंदाज़। स्वाभिमान पर कोई आघात ना हो तब तक प्रतिघात नहीं। उसके बाद यही कुछ। B
ReplyDeleteबहुत बहुत सुन्दर
ReplyDelete