ये बिन बात का तकल्लुफ..

ये बिन बात का तकल्लुफ !!

खत्म करो अब सब वास्ते..

पुल ही उड़ा डालो  मतलब के..

खुद तक बंद करो सब रास्ते.. ।

ये खुद की दुनिया भी मुकम्मल है..

किसी का दख़ल क्यों स्वीकारा जाए ??

एहसान जताते रहते हैं.. उपकार के नाम पर..

ऐसे ख़ुदाओं को क्यूं मदद के लिए पुकारा जाए !!

भूल जाओ चेहरे मतलबी और उन तक ही दौड़ते रहना..

तकलीफ तो यूं भी हैं..पूरी बिखोरो ये अधूरी मुस्कुराहटें..।

6 comments:

  1. बजा फ़रमाया आपने । आपकी यह कविता तो मुझ जैसे लोगों के लिए ही है - ज़िन्दगी जीने की सही राह दिखाने वाली एक मशाल ।

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  2. आशा का संचार करती सुन्दर रचना।

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  3. 'एहसान जताते रहते हैं.. उपकार के नाम पर..

    ऐसे ख़ुदाओं को क्यूं मदद के लिए पुकारा जाए !!'


    बिल्कुल सही कहा आपने।

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  4. बहुत बढ़िया कहा है ।

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  5. ख़ूब

    यूँ ख़ुद में खो जायें
    औऱ भाप हो जायें
    या बिखर जायें ऐसे
    कि बरसात हो जायें

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  6. सुन्दर आशावादी रचना

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ओझल तन मन...जीवन.. हम तुम केवल बंधे बंधे.. हम राही केवल, नहीं हमराही...

ओझल तन मन...जीवन.. हम तुम केवल बंधे बंधे.. हम राही केवल, नहीं हमराही... चले आते हैं, चले जाते हैं... सुबह शाम बिन कहे सुने.. न हाथों का मेल....