ईश्वर ...

ईश्वर प्रथम श्वास..

ईश्वर अंतिम विश्वास...

मध्य में जो कुछ भी है,

है व्यर्थ का सब आभास ।।




एक मुस्कुराता हुआ चेहरा...

एक मुस्कुराता हुआ चेहरा देखा..

कई मुस्कुराते हुए फिर, चेहरे नजर आए ,

फिर मुस्कुराते हुए चेहरों पर , कुछ पहरे नज़र आए !!

वो कौन सी बंदिशें थी , जो जान नहीं पाए हम,

पर देख कर उन्हे कुछ राज गहरे नजर आए।

ये दुनिया की सच्चाई के प्रतीक थे कुछ शायद,

जो आधी आबादी के लिए ही बनी है,,

जो हसती है, खेलती है, 

दुख भी झेलती है..

कुछ कहती नहीं ज्यादातर

ज्यादातर नहीं सोचती है,

उसकी गणित बहुत कमजोर है

उसकी मन की इसलिए बाते कुछ अलग सी हैं...

चेहरे के भाव कुछ और हैं!!!

सीता हैं अभी जंगल में


सीता हैं अभी जंगल में,
रावण अभी तक मरा नहीं है!
राम जब आयेंगे..
युद्ध करेंगे
मुक्त तब सीता होगी
राम अभी तक जन्मे नहीं है
रावण अभी तक मरा नहीं है
लक्ष्मण का भी पता नहीं है
सीता हैं अभी जंगल में!!

खत्म होने से पहले..


 खत्म होने से पहले, एक पहल हो ज़िन्दगी की

कुछ कहने लायक काम हो जाय!

यूं ही जाया किए उम्र ए ज़िन्दगी

थोड़ी देर के लिए ही नाम हो जाए!!!

तामाशीन

 सब सो रहें हैं,

या तामाशीन हैं शायद!!

मतलब भर की आंख खुली बंद रखते हैं!!!

उनका मसला हो, उम्मीद मदद की ...

दूसरों के मसलों पर कान मुंह बंद रखते हैं!!!


मेरा घर है यह.. ईंट पत्थर मकान नहीं..


ईंट पत्थर मकान नहीं

मेरा घर है ये...

मतलबी रिश्तों की तरह बेजान नहीं,

मेरा घर है ये...

कुछ भी....होता..

कुछ भी होता , 
हश्र यही होता..
जब बेखयाल ही..
सब कुछ..
क्या फर्क पड़ता है ..
ऐसा होता या ..
वैसा होता..
या कुछ भी नहीं होता..!!
डूब जाना ही ..
जीवन के बवंडर में..
खुशी है..अगर
किसे फिर सत्यता का ..
यकीन होता..
कुछ भी होता..
हश्र यही होता...

ओझल तन मन...जीवन.. हम तुम केवल बंधे बंधे.. हम राही केवल, नहीं हमराही...

ओझल तन मन...जीवन.. हम तुम केवल बंधे बंधे.. हम राही केवल, नहीं हमराही... चले आते हैं, चले जाते हैं... सुबह शाम बिन कहे सुने.. न हाथों का मेल....