अपना घर एक मंदिर है..

अपना घर एक मंदिर है..

जो भी आए स्वागत है..

हृदय में स्नेह लिए..

अपनेपन का ध्येय लिए..

स्वागत है..स्वागत है..

जो द्वार से ही..

नमस्कार कर ले..

उसका भी स्वागत है..

जो पास आकर..

हाल सुनाए..

उसका भी स्वागत है..

देहरी छूने वाले भी ..

अभिनंदित हैं..

हृदय में जो बस जाए..

उसका भी स्वागत है..

आए मन में भेद लिए..

कुटिल कुटिल जो मुस्काए।

उसका भी स्वागत है..

हमारे हित का सोचे..

और सच्चा मीत कहाए..

उसका भी स्वागत है..

अपना घर एक मंदिर है..

जो भी आए स्वागत है..

शांति, अमन, चैन...ईश्वर व्याप्ति का आधार..

शांति, अमन, चैन...

ईश्वर व्याप्ति का आधार ।।

मुस्कान, अधर का प्रतीक निरंतर..

जब तक शांति का प्रसार..

सुंदरता जीवन की अविरल
जब तक द्वेष ..ना बने विचार ।।

बल ..असीम और अटूट..

जब तक हृदय में विश्वास..

विश्वास के सारे उपक्रम..

ईश्वर रूप का अभिप्राय..।।




अपने शहर का हाल बताओ..क्या हाल हैं?

 मेरे शहर में धुंध है..

और और कई सवाल हैं...

अपने शहर का हाल बताओ..

उधर क्या हाल हैं ??

व्यस्त हैं सभी..अलग अलग ..

अलग अलग सबके ख्याल हैं..

तुम्हारे उधर क्या हाल चाल हैं??

मैं असमंजस में हूं..

प्रेम करूं स्वयं से ही..

या औरों से भी लौ लगाऊं..

यही सब छोटे मोटे..

यहां बवाल हैं..

तुम बताओ ..

कैसे मिज़ाज ..उधर..

हाल फिलहाल हैं ??

इंजन कोई..

कोई डिब्बा रेल का..

हिस्सा हैं सभी..

एक चलते हुए खेल का..

कुछ हैं ..बहुत आराम से..

कुछ खस्ताहाल हैं..

तुम बताओ उधर..

रफ़्तार की क्या चाल है ??

मेरे शहर में धुंध है..

और कई सवाल हैं.........

…..........…....................!!!!!

हर जुबान कहती है..हर नज़र कहती है..

हर जुबान कहती है..
हर नज़र कहती है..
जिंदगी कहां रहती है..
जिंदगी किधर से गुजरती है ।
उनके अल्फ़ाज़ कहते हैं..
वो सब कैसे रहते हैं..
नज़र कहती है उनकी..
क्या कुछ वो सहते हैं..
गरीबों मुफ्लिसो की ..
दुनिया अमीर होती है.. लेकिन
गर गुजरना कभी उधर से..
ना खोलना कभी..
उनके दर्द के तहखाने..
क्या पता कभी..
ज़िन्दगी हमें भी..
लाए ये दर्द दिखलाने..

कहीं उड़ता नहीं..मेरा मन..

कहीं उड़ता नहीं मेरा मन..

तुम्हारे हृदय के द्वार पर ..

ये बैठा रहता है..

कभी जो खुलेंगे द्वार..

दर्शन को तुम्हारे..

वो क्षण सोचा करता है..

मैं तो नश्वर,

मात्र एक किश्वर..

हूं मैं तो सदा से अश्वर..

तुम तो अद्वितीय, अप्रतिम..

हे ईश्वर..कई नामों वाले..

हर एक नाम से तुम्हें ..

जपता रहता है..

कहीं उड़ता नहीं मेरा मन..

तुम्हारे हृदय के द्वार पर.

ये बैठा रहता है..










कैसे मैं शशक्त बनूं..

कैसे मैं शशक्त बनूं..

तुम पर जो इतनी आसक्त हूं..!!

मां जो हूं मैं तुम्हारी..

कटु बातों को भी भुला देती हूं..

उम्र के हर पड़ाव में..

बिल्कुल ना मैं सख्त हूं..

कैसे मैं शसक्त बनूं..

तुम पर जो इतनी आसक्त हूं..!!

बहन जो हूं मैं तुम्हारी..

भाग खुद का मैं तुम्हें थमा देती हूं..

लोलुप ना कोई लालस्त हूं..

कैसे मैं सशक्त बनूं..

तुम पर जो इतनी आसक्त हूं..!!

पत्नी जो हूं मैं तुम्हारी...

हर तरह से तुम्हारी भक्त हूं..

कैसे मैं शशक्त बनूं..

तुम पर जो इतनी आसक्त हूं..

पुत्री रूप में..

हर बात तुम्हारी पालित करने को..

मैं तो अभयस्त हूं..

कैसे मैं शशक्त बनूं..

तुम पर जो इतनी आशक्त हूं..!!

स्नेहिता मैं जो हूं..

स्नेही ही सिर्फ मैं हूं..

कलुषित भावनाओं से ..

मैं तो ना ग्रस्त हूं..

कैसे मैं शशक्त बनूं..

तुम पर जो इतनी आसक्त हूं..!!!

…….......................................................

.............................................................

समान विकास, समुचित सम्मान..

समान स्नेह, उपयुक्त उत्थान..

इस बात का बस मान रख लो..

मैं हूं जो आरंभ तुम्हारा..

कभी सहचरिनी, कभी सहारा..

तुम संग पलती बढ़ती..

और तुम्हारा ही रक्त हूं..

शशक्त मैं हो जाऊंगी..

बस तब ही जब ..

तुम्हारी तरफ से मैं..

आश्वस्त हूं..

.……...........................................

…...............................................

दफ्तर से घर जब लौटकर..

दफ्तर से घर जब लौटकर..

मै आती हूं..

बच्चे का मंगाया हुआ..

कोई ना कोई सामान लाती हूं..

कभी कभी नहीं  भी ला पाती..

फिर भी संतोष उनके मुख पर पाती हूं..

पर सोचकर वो खुशी..असीम..

करती हूं प्रयास ..

ना आऊं कभी मैं खाली हाथ..

एक टॉफी या चॉकलेट..

की बात नहीं..

बच्चों का दिनभर का इंतजार है..

घर में चाहे सब कुछ हो..

पर वो एक नई चीज़ ..

जो हाथ में मेरे होती है..

नई खुशी नई भूख ..

तृप्त मन ..पूर्ण खुशी..

अभिव्यक्ति से परे..

थोड़ा सा ही कुछ पाकर ..

चहकते बच्चे मेरे..।।









ओझल तन मन...जीवन.. हम तुम केवल बंधे बंधे.. हम राही केवल, नहीं हमराही...

ओझल तन मन...जीवन.. हम तुम केवल बंधे बंधे.. हम राही केवल, नहीं हमराही... चले आते हैं, चले जाते हैं... सुबह शाम बिन कहे सुने.. न हाथों का मेल....