मैं एक किरदार हूं..
उस असर में क्यों रहना !! जो खुद का असर बेअसर कर दे..
उस असर में क्यों रहना !!
जो खुद का असर ..
बेअसर कर दे.. ।।
खुद की कही बात ..
दूसरों के सर कर दे..।।
बेईमानी तो आसान है बहुत..
इतना भी सरल क्या जीना !
कि ज़िन्दगी यूं ही बसर कर दें !!
चाहे जैसे जिओ..
मगर किसी से उलझ कर नहीं..
सीधी भी सड़क जाती है!!
बेवजह क्यों मुसाफिरों को ..
इधर उधर कर दें !!
महफूज़ रहोगे हमेशा..
ज़िन्दगी रही ना रही..
ये काया छोड़कर ...बस
रूह के लिए उमर कर दे ।।
कौन हूं मैं ? ज्ञान कहां से पाऊं..
स्वीकृति अस्वीकृति चलती रहती है..बात इतनी है कि बात बदलती रहती है..
स्वीकृति अस्वीकृति चलती रहती है..
बात इतनी है कि बात.. बदलती रहती है..!!
कभी होती है तपती दोपहर अपनी..
कभी शाम किसी की जलती रहती है..।
किस बात का लुफ्त लेते हो दूसरों के हालातों में..
आज हमारी कल तुम्हारी बारी है साहब..
सबकी तहरीर बदलती रहती है..।
रखते हैं तलवार सभी..
खंजर सबके पास है..
किस भ्रम में जीते हो..!!
चुप रहते है लेकिन..
आग तो हृदय में सुलगती रहती है..
बात इतनी है कि बात बदलती रहती है.. ।
ईंट पत्थर मकान नहीं ..मेरा घर है ये..
ईंट पत्थर मकान नहीं ..
मेरा घर है ये..
मतलबी रिश्तों की तरह..
बेजान नहीं..।।
मेरा घर है ये..
किसी का आशीर्वाद है ये..
किसी का ये सपना है..
मेरे अपनों की बुनियाद है..
ये घर मेरा अपना है..
तुम्हारा कोई अहसान नहीं !!
मेरा घर है ये..
तुम आना सोच समझकर..
यदि नहीं उज्ज्वल ध्येय तुम्हारा..
किसी की घुटती इच्छाओं का..
उत्थान नहीं..
मेरा घर है ये..।।
चाहत होगी तुमको हमारी..मगर हमको तुम्हारी चाहत नहीं है..
कर ना पकड़ो तुम मेरे..हृदय मेरा स्पर्श कर लो..
कर ना पकड़ो तुम मेरे..
हृदय मेरा स्पर्श कर लो..
बातें ना करो मोहक मोहक..
अलौकिक कोई विमर्श कर लो..
दिन रात के वही सब काम काज़..
कुछ तो आज सहर्ष कर लो..
दूर रहो तुम खड़े..
निहारें तुम्हें पल पल..
खुद को कोई वर्ष कर लो..
कोई ना स्वार्थ हो जहां..
पाने की ना हो चेष्टा..
आलंगित केवल प्रेम हो..
ऐसा भी कोई संघर्ष कर लो..
कर ना पकड़ो तुम मेरे..
हृदय मेरा स्पर्श कर लो..।।
ओझल तन मन...जीवन.. हम तुम केवल बंधे बंधे.. हम राही केवल, नहीं हमराही...
ओझल तन मन...जीवन.. हम तुम केवल बंधे बंधे.. हम राही केवल, नहीं हमराही... चले आते हैं, चले जाते हैं... सुबह शाम बिन कहे सुने.. न हाथों का मेल....
-
जो बंदिशे नहीं होंगी.. निश्चल प्रेम भी नहीं होगा..। मिलन में कोई मतलब हो सकता है.. ना मिले ..और प्रेम हो जाय सदा के लिए.. बस वही तो मन का प्...
-
वो जो था कभी घर आंगन..... वो आज मकान बिकाऊ है. !! क्योंकर इतना हल्कापन.....!! रिश्तों का ये फीका मन......!! सब कुछ कितना चलताऊ है !! खूब कभी...
-
खूबसूरत..नहीं थी मैं.. तुम भी मनोहर नहीं थे..। साथ में आए तो.. नयन मेरे चमकने लगे.. तुम भी मुस्कुराने लगे..। और साथ चले जब.. जीवनसाथी बनकर.....