वो 12 रूपए...

वो 12 रुपए ..

जो लावारिश पड़े थे..

पता नहीं किसकी जेब से गिरे थे..

नजर उधर पड़ी ..

एक शख्स की..

उठा कर बोला..

पास में बैठी महिला से..

3 रुपए तो देना..

12 में 3 जोड़ देते है..

किराया पूरा हो जाएगा..।।

किराया  तो खैर पूरा हो गया.. 

पर देखो क्या गया..

हिन्दू थे तो धर्म गया..

मुस्लिम थे तो ईमान ..

एक जरा से अधैर्य ने कर दी..

आप की सम्पूर्ण पहचान.. !!


इतना ही बहुत है..तुम जो हाथ बंटाते हो..

तुम किचन तक चले आते हो..

इतना ही बहुत है..

कर नहीं पाते मदद पूरी..

आटा गूंधने में पानी जो गिराते हो..

इतना ही बहुत है..

चाय जो मैं बनाती हूं..

छानकर जो तुम ले जाते हो..

इतना ही बहुत है..

सब्जी काटते हैं जब हम..

लहसुन जो छिलाते हो..

इतना ही बहुत है..

खाना जब बन जाता है..

सबको जो परोस आते हो..

इतना ही बहुत है..

मेरे साथ मिलकर….

अंत में खाना जो खाते हो..

इतना ही बहुत है..

लोगों के निरर्थक व्यंग पर..

हस कर टाल जाते हो..

इतना ही बहुत है..

तुम जो एक नई उम्मीद जगाते हो..

बहुत है 💛💛बहुत है💛💛बहुत है💛💛..

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मेरे बच्चे ..मेरे भाइयों ..मेरे पापाजी ..

और मेरे पति जी..सभी को धन्यवाद ...........

मेरे तो नहीं हैं...

नयन तुम्हारे, अधर तुम्हारे..

मेरे तो नहीं हैं..

क्योंकर अवलोकन उनका कर बैठे !!

वचन तुम्हारे ,कथन तुम्हारे..

मेरे तो नहीं हैं..

क्योंकर उनको हृदय में जगह दे बैठे !!

कर तुम्हारे, अवसर तुम्हारे..

मेरे तो नहीं हैं..

क्योंकर उम्मीद उनसे कर बैठे!!

त्याग तुम्हारे, चयन तुम्हारे..

मेरे तो नहीं हैं..

कैसे वरण जीवन का तुम हो बैठे!!

अस्वीकार मत करना...

क्यूंकि ये प्रणय निवेदन नहीं..

तुम्हारी एक परिक्रमा मात्र है..

प्रयोजन ना कोई समझना इसे..

जो भी है ..

सब निस्वार्थ है..।।

















किराए के घर..

किराए के घर..

मेरी गली के..

शायद सभी गलियों के..

बिना उजालों के थे..

सभी किरायेदार जो..

अपने अपने घरों को चले गए थे..

उनके मालिक कहां रहते हैं !!

जो आए भी नहीं इधर?

ये कौनसा विस्तार है..

अनगिनत घर जो सूने रह जाते हैं..

परिणति खाली रह जाना ही है..

शायद..

जिन्हे किरायेदार बसाते हैं !!

ऐसा इसलिए भी है ..

और नियत भी यही है

समेट उतना ही पाओगे..

जितनी अंजुली है..

नाम का तो सबकुछ है..

जमीन और जायजाद..

पर उन किराए के मकानों का ..

नाम बस इतना है..

आज की दीवाली कागज पर . .

कल का वो सपना है. !!












जो चाहे अर्थ लगा लो..

मेरी बातों में तो हैं बातें कई..

चाहे जो अर्थ लगा लो..

तुम जैसे  हो..

वैसा ही अर्थ पाओगे..

निर्भर है तुम पर ही.. 

अब जो भी अर्थ निकालो..

अर्थ भी मै हो सकती हूं..

अर्थ का आधार भी...

पर समर्थ तुम ही हो..

चाहे जैसे मुझे संभालो..।

अर्थहीन भी..

क्या पता मेरा ..

ख्याल हो..

पर सब तर्क तुम्हीं हो..

असमंजस से मुझे बचा लो..!!!!!














ये बताओ भले ही ना..

कौन हो तुम..

ये बताओ भले ही ना..

कैसे हो ..

ये ही बता दो ।

दूर तक चलना ..

साथ हमारे जो मुनासिब नहीं..

हृदय से मुझे अपना लो..

मुफलिसी का रिश्ता है..

हमारा तुम्हारा..

कोई लेन देन की बात नहीं होगी..

बस सहमति के कुछ स्वर मिला दो..

नाम तुम्हारा जानने की ..

ख्वाहिश नहीं हमारी..

अपनी कोई यादगार 

सुझा दो..।

फर्क बहुत होगा ..

हम में और तुम में..

कोई मेल बताओ भले ही ना..

कोई संयोग है कि नहीं..

इतना समझा दो..।


एक पारदर्शी शीशा...

आपके और मेरे मध्य में..
एक पारदर्शी शीशा..
बन जाता है चलचित्र कभी..
देखते है जो उधर कभी..
उभर आती है आपकी हंसी,
नेत्रों से नेत्र का जो..
होता है मिलन कभी,
बदल जाते हैं..
आयाम सभी..
सुनना आपकी बातों का..
अनिवार्य सा लगता हैं..
यूं तो होती है और भी बातें कई..।।
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मेरे एनक के पीछे..
उस पारदर्शी शीशे से..
क्या दिखता है तुमको भी ऐसा ही..
मेरी आवाज़ लगती है..
तुमको भी मधुर सी..
उस पारदर्शी शीशे से..
दिखती है क्या तुमको भी..
कोई आकृति.....।।।।।







ओझल तन मन...जीवन.. हम तुम केवल बंधे बंधे.. हम राही केवल, नहीं हमराही...

ओझल तन मन...जीवन.. हम तुम केवल बंधे बंधे.. हम राही केवल, नहीं हमराही... चले आते हैं, चले जाते हैं... सुबह शाम बिन कहे सुने.. न हाथों का मेल....