दोस्त मेरे..मेरे जीवनसाथी..
हैं तो यूं कई रिश्ते तुमसे..
पर दोस्ती का एहसास तुमसे ..
हर रिश्ते से बढ़कर चाहती..।
मेरी बातों को वरा जब तुमने..
और सहज संसार बने..।
पति तो रिश्ता औपचारिक था..
दोस्त बने जब,अलौकिक सा प्यार बने..।
किलकारियों ने जोड़े रिश्ते ..
एक नया अनुभव आया..।
जिम्मेदारियों को साझा किया हमने..
तुमने तथाकथित परंपरा कह कर..
नहीं मदद से कभी जी चुराया..।
नई परम्परा नए संदर्भ जब तुमने दिए..
परमेश्वर तो आवश्कता वश थे तुम..
मित्रवत हुए तो..हृदयेश्वर बने..।
जब जब तुम कोमल हुए..
और सशक्त मुझे किया..।
बन गए तुम उस उस पल..
हर जन्म के मनचाहे पिया..।।