उस तलब की तलब क्या करना..
कि तलब का मतलब ना रहे..।
रहे जमीन अपनी..और पैर भी..
दुनिया हो पूरी..चीज़ों से भरी..
लेकिन तलबगार इन सब का..
तन हो केवल... सर ना रहे..।
देखो तो पाओगे ..इस तलब पे ..
मिट रहे हो..लेकिन पछताओगे..
धुंआ है..शौक तुम्हारा जो ..
धुंआ ही बन जाओगे..यू तो..।
नफ़रत ही तो है खुद से ये..
क्या चाहते हो..कोई भी सलामत ना रहे..।।
बहुत बढ़िया।
ReplyDeleteक्या बात है ...
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