खुशियां हों बहारें हों ..आपकी ज़िन्दगी में..

खुशियां हों.. बहारें हों..

आपकी ज़िन्दगी में..

चमकते सितारें हों..

आपकी ज़िन्दगी में..

हम तो अकेले हैं..

अकेला है सफर हमारा..

यूं ही कट जाएगा..

ये रास्ता सारा..

हजारों सहारें हों..

आपकी ज़िन्दगी में..

कभी कोई ग़म ना आए..

आपको रुलाने के लिए..

ना कभी नयन खारे हों..

आपकी ज़िन्दगी में..

मेरी बात तुम्हें सिर्फ एक बात लगती है..बस इतनी पहचान क्यूं??

मेरी बात तुम्हें सिर्फ..

एक बात लगती है!!

मेरी बात की बस ..

इतनी पहचान क्यों??

हो सकता है तुम्हें.. 

भी वहीं जाना हो..

जहां मुझे जाना है..

दो कदम जिंदगी में..

अकेली उड़ान क्यूं..??

क्यूं चल रहे हो..

औरों को कुचलकर??

धर्म कर्म के रखवाले तुम..!!

अधर्म का करते इतना मान क्यूं??

परस्पर हैं..काम काज़ सब अपने..

फेरे में हैं.. ये दिन आज अपने..

एक दूसरे पर व्यर्थ का अहसान क्यूं ??


बादलों की औकात नहीं इतनी.. कि सूरज को निकलने की हिम्मत ना रहे...

बादलों की औकात नहीं इतनी..
सूरज को निकलने की हिम्मत ना रहे..
मुश्किलों की बिसात नहीं इतनी..
झेलने की उनको ताकत ना रहे..
बहुत बेतकल्लुफ़ हैं..
ज़िन्दगी के वाकयात भी..
क्योंकर सोचें हम..
कि ये हालत ना रहे..
बीतने के लिए ही हैं..
ये दिन महीने साल..!
रुकते भी नहीं ये किसी हाल..
तो फिर क्यों भला..
यूं भी हर बात से..
हमें उल्फत ना रहे.।।

इंचो में मैं नापी जाती हूं..तरह तरह से मैं आंकी जाती हूं..

इंचो में नापी जाती हूं..
आंखो से मैं कई..
आंकी जाती हूं..
चलाकर मैं परखी जाती हूं..
मां बाप का बोझ उतरने को..
कैसे कैसे मैं !!
देखी जाती हूं..!
कैसे कैसे मैं !!
ताकी जाती हूं..!
ये लड़की दिखाई नहीं..
अपराध बोध सा लगता है..
लड़की होने के एवज में..
मैं लगता है..मात्र !
एक अपराधी हूं !!
सवाल कई पूछे जाते हैं..
तंज भी मारे जाते हैं..
निर्णय पर यदि पहुंचे तो..
दाम हमारे तय होते हैं..!!
नए संबंधो की हामी में..
हम तो सिर्फ विलय होते हैं..!!
…..............................................
....…..........................................
स्वालंबी यदि नारी हो..
इतनी ना वो बेचारी हो..
बोझ ना लगे मां पिता को..
निर्णयों में उसकी हिस्सेदारी हो..
शिक्षा, सुरक्षा स्वालंबन..
ये वो गहने हो मां बाप के..
रखते हैं संजो के जिसे..
बेटी के जन्म से उसके..
भविष्य के लिए..
विलय नहीं उत्थान हो..
कन्यादान का अभिप्राय बदलो..
ताकि कन्याओं का कल्याण हो..।।

आज नहीं दिन अच्छे..कल हो भी सकते हैं...

आज नहीं दिन अच्छे..

कल हो भी सकते हैं..।

या आंख मूंद कर..

समस्यायों पर..

हम रो भी सकते हैं..।

या फिर सोचें हम..

ये हाल तो कुछ भी नहीं..

और चैन से सो भी सकते हैं..।

या फिर हालात बदलने को..

हम कोई कड़ी पिरो भी सकते हैं..।

कुछ ना कुछ तो करना होगा..

हालात ना वश में हो लेकिन..

हमको तो संभलना होगा..

संभावनाओं को ढूंढना होगा..

मुश्किलों से लड़ना होगा..

अच्छे दिनों के लिए..

किरदारों के भ्रम से निकलकर..

स्वयं विधाता बनना होगा..।

यकीनन होता है ऐसा..

यकीनन होता है ऐसा..

हृदय कहीं रुक जाता है..

काम धाम होते रहते हैं..!!

भेद कई चलते रहते हैं..

मेल मिलाप होते रहते हैं..!!

शांति सुकून की चाहत में..

ताम झाम होते रहते हैं..!!

झूठ फरेब के तिलिस्म में..

कृष्ण राम होते रहते हैं..!!

पाते हैं ना कुछ खोते हैं..

नाम तमाम होते रहते हैं..!!

यकीनन होता है ऐसा..

हृदय कहीं रुक जाता हैं..

दुआ सलाम होते रहते हैं..!!


मास्टर जी पढ़ा रहें हैं..

धूप निकली हुई है..

हरी घास पर बच्चे घेरे हुए..

मास्टर जी पढ़ा रहें हैं..

कुछ गाय है..आस पास

जैसे उनको भी पढ़ने की आस..

चित्रों के कुछ बोर्ड लगे हैं..

क्यारी में कुछ फूल खिले हैं..

कॉन्वेंट जैसी तो व्यवस्था नहीं पर..

तन्मयता से सिखा रहें हैं..

मास्टर जी पढ़ा रहे हैं..

कहीं सुना था ..

सरकारी शिक्षक पढ़ाते नहीं हैं..

बच्चों में मन लगाते नहीं हैं..

पर ये सजीवो में..

ज्ञान का प्रसार..

देख कर लगा मुझे इस बार..

कर्मनिष्ठा ही मूल है..

मास्टर जी ज्ञान फैला रहें हैं..

मास्टर जी पढ़ा रहें हैं..

बच्चों की उत्सुकता दिखाती है कि..

उन्हें भी सब सबक भा रहे हैं..

मास्टर जी पढ़ा रहें हैं..।।

ओझल तन मन...जीवन.. हम तुम केवल बंधे बंधे.. हम राही केवल, नहीं हमराही...

ओझल तन मन...जीवन.. हम तुम केवल बंधे बंधे.. हम राही केवल, नहीं हमराही... चले आते हैं, चले जाते हैं... सुबह शाम बिन कहे सुने.. न हाथों का मेल....