थोड़ा तो आराम दो..

कम से कम चाय बनाना सीख लो..

फरमानों को थोड़ा विराम दो..

हे पुरुष समाज !!

हमें थोड़ा तो आराम दो..

घर की लक्ष्मी ..

नाम की..क्यूं !!

हमें मुकम्मल नाम दो..

हे पुरुष समाज !!

हमें कुछ तो आराम दो..

अब तो हमारी भी हिस्सेदारी..

घर का खर्च चलाने में..

वापस जो घर आऊं तो..

मेरे जैसी मुस्कुराहट तुमको..

और सुनहरी शाम दो..

हे पुरुष समाज !!

हमें भी आराम दो..

दर्द मुझे भी..

दिनभर की थकी हारी..

मै भी तुम जैसी.. 

कुछ तो संज्ञान लो..!

हे पुरुष समाज !!

थोड़ा तो आराम दो..

फरमानों को विराम दो..!!


















और मैं भी हूं...

रिश्ते नाते..

और रिश्तेदार..।

लोग अपने..

और घर परिवार..।

भूल ना जाना आदतन !!

उनमें एक मैं भी हूं..।

मै भी हूं ..

हर पूजा की साथी..

साथी हर कदम की..

साथी मैं हर वचन की

मन के अधूरेपन की..

झुठला ना देना आदतन..

एक जीवन..

मैं भी हूं..।

स्वागत प्रियजन का..

उमंगों से भरे..

उत्सव तीज त्योहार..

खुशियां हों अपार..

ठुकरा ना देना आदतन..

एक मन मैं भी हूं..!


स्वीकार कर लो..जो सभ्य और सही हो..

स्वीकार कर लो..

जो सभ्य और सही हो..

सीखने में शर्म कैसी ?

चाहे बात छोटे बच्चे ही ने कही हो।

तू तू मैं के आलाप..

क्योंकर करें हम ऐसे जाप..

उम्र का..

हैसियत का मसला ही नहीं है..

ये आपकी जुबान का..

किसी की शक्सियत की पहचान का..

तरीका है..

"आप"के संबोधन का ..

कोई विकल्प नहीं है..

सभी हैं गुरु किसी ना किसी तरह. .

यहां कोई भी अल्प नहीं है..।।

यहां कोई भी अल्प नहीं है..।।


चाय..

चाय..
स्वागत है, सत्कार है आगंतुक का..
दिनभर का कोई ना कोई संग है ये..
मौसम का मिज़ाज है ये कोई,
हर मौसम के साथ, लिए रूप कई..
हर किसी को पसंद है ये..
रोटी के साथ, किसी गरीब के हाथ 
रोटी को नरम बनाती हुई..
जीवन का अप्रतिम आनंद है ये..
सुबह के नाश्ते का सबसे खास..
भोजन के बाद का अवकाश..
शाम का निश्चित प्रबंध है ये..
किसी बात का आरंभ..
किसी बात का सारांश..
समूह चर्चा के मध्य..
मुख्य आकर्षण ..
चर्चा को आगे तक ले जाने का..
हां कोई यंत्र है ये..
हर किसी को पसंद है ये..


















रावण अभी मरा नहीं है..

रावण अभी मरा नहीं है..

कितने हैं ये भी पता नहीं है..

लक्ष्मण, राम पलायन कर गए..

हनुमान किधर हैं..किधर गए??

हृदय सभी का चंचल सा..

स्थिरता का पता नहीं है..

रावण अभी मरा नहीं है..

नारी रहे वश में सदा..पुरुष के..

यही सदा की विडंबनाय..

पुरुष ही उसका भाग्य विधाता..

मनमुताबिक भोगी जाए..

शोषण सदा प्रथा रही है..

रावण अभी मरा नहीं है..

किसमें किसमें हैं ..

ये भी पता नहीं है..

होते बहुत बखान ..

नारी के उत्थान के..

करते सभी अहसान उसपर..

बेचारी सुकुमारी जान के..

या कुछ दंभ के पाश..

प्रेम स्वरूप बांध के..

शशक्तता एक धता रही है..

रावण अभी मरा नहीं है..।।।।

मशाल ए दयार ..

यूं तो होते हैं हर गली में शायर दो चार...

मगर जो दिल की बात सुन ले..

वो ही मशाल ए दयार है..

मसले बहुत से हैं..

शब्दों में पिरोना बात नहीं कोई.

हाथों में ले ले बात..

वही खालिस यलगार है..

वो ही मशाल ए दयार है।

उस बिंदु पर आओ ना..

उस बिंदु पर आओ ना..

ना कोई कहासुनी हो..

मै भी जहां सही हूं..

तुम भी जहां सही हो..

वाद विवाद किनारे हों..

हम दोनों ही..

एक दूसरे के सहारे हों..

ना कोई तना तनी हो..

उस बिंदु पर आओ ना..

जहां दोनों लोग सही हों.

इतने कटु क्यूं नेत्र तुम्हारे..

क्या कोई संताप है !!

है तो हमारी तुम्हारी ही..

जो भी कोई बात है..

मै समर्पित कब से हूं..

तुम भी झुक जाओ ना..

क्यों रात अंधेरी घनी हो !!

उस बिंदु पर आओ ना..

जहां दोनों लोग सही हों..

तुम कठोर , मै कोमल..

ताकत तुम, मैं संबल..

तुम सृष्टि का गौरव..

मैं सृष्टि का प्रतीक प्रतिपल..

इस भेद का जश्न मनाओ ना...

भरपूर रोशनी हो..

उस बिंदु पर आओ ना..

जहां दोनों लोग सही हों..।।

ओझल तन मन...जीवन.. हम तुम केवल बंधे बंधे.. हम राही केवल, नहीं हमराही...

ओझल तन मन...जीवन.. हम तुम केवल बंधे बंधे.. हम राही केवल, नहीं हमराही... चले आते हैं, चले जाते हैं... सुबह शाम बिन कहे सुने.. न हाथों का मेल....