उस तलब की तलब क्या करना..

उस तलब की तलब क्या करना..

कि तलब का मतलब ना रहे..।

रहे जमीन अपनी..और पैर भी..

दुनिया हो पूरी..चीज़ों से भरी..

लेकिन तलबगार इन सब का..

तन हो केवल... सर ना रहे..।

देखो तो पाओगे ..इस तलब पे ..

मिट रहे हो..लेकिन पछताओगे..

धुंआ है..शौक तुम्हारा जो ..

धुंआ ही बन जाओगे..यू तो..।

नफ़रत ही तो है खुद से ये..

क्या चाहते हो..कोई भी सलामत ना रहे..।।

कभी कभी पतझड़ों का कोई विराम नहीं होता..

कभी कभी पतझड़ों का..
कोई विराम नहीं होता..।
गुजरते रहतें हैं...यूं तो
कई दिन सुबह और शाम ..
मुकम्मल मुकाम नहीं होता..।
मैं शायद या फिर ..
जंगलों की तरफ ..
रुख किए हुए हूं..
इधर कोई नहीं गुजरता..
किसी का इधर शायद..
एहतराम नहीं होता..।
नई कोपले निकले..
फिर अदब का माहौल हो..
जड़ में रह गया है जीवन..जो
चेहरे पर फिर रौनक ए शाम हो..।
पतझड़ों का विराम हो..।

अब तो प्रेम नहीं है..

अब तो प्रेम नहीं हैं..!
ना मन में ना जीवन में..।
था भी कभी ..तो क्या था??
प्रेम एक दुविधा था..।
लेकिन वही शायद ..
प्रेम सर्वथा था..।
शब्दों के स्पर्श थे..
नैनों के वचन थे..
अधरो के मुस्कुराने से..
देखते थे तुम्हें..
प्रेम था मुझे तुमसे..।
जब कुछ भी नहीं सहज था..
मन कौतूहल मचाता था..।
देखने की उत्कंठा थी मात्र..
छूने से प्रेम डर जाता था..।
प्रेम था सहसा उपजा ..।
कोई वहां प्रयोजन नहीं था..।
अब है तो क्या है..!!
मन शांत..कौतूहल शांत..
प्रेम अशांत है किन्तु..
एक खीच तान संघर्ष है..
आज प्रेम मात्र भ्रामक विमर्ष है..।।


तुम अभी गुज़रे कहां हो !!

तुम अभी गुज़रे कहां हो छलावे से..

जब गुजरना तब बताना..कैसा था !

खत्म हो गया बड़ी आसानी से जो

वो प्यार बस क्या दिखावे जैसा था..!!

तुमसे तो वो भी ना हुआ..जिसमे सवाल हो...

कैसा था..कौनसा था..जरूर कोई मलाल हो..

तुम रहने दो ये खोज बीन करना..प्यार की

ठगी ठगी सी बातें तुमसे ना फिलहाल हो..

ऐसा है ..रहने दो प्यार का पाठ पढ़ाना..

हम थे जैसे..तुम थे जैसे..ये नहीं वैसा था..

प्यार तो मिथ्या हो गया..वैसा भी ना हुआ..

अपने में कभी ...जैसा था..!!!!!!!!!!!!!

आज परम अहसास हुआ..

आज परम अहसास हुआ..
दो बातें हुई जुड़ी हुईं..
मैं खुश रहना जो चाहूं..
पहले सुरक्षित करनी होगी..
दूसरों की खुशी..
मेरा घर पहुंचना ..
सुकून घर का..
और लोग भी पा लें..
घोंसला मन का..
मन मेरा होगा पुलकित..
महफूज़ करनी होगी..
पहले औरों की भी हंसी..

किस्मत की कमान टूट भी जाए तो क्या..

किस्मत की कमान टूट भी जाए तो क्या..

तरकश में तीर उम्मीदों के रखना,

धनुष बनाना कोई नया..अपनी धुन का..

और तीर प्रत्यंचा पर कसना..

भेद देना लक्ष्य जीवन का..।

तुमको शुभकामनाएं ..नए समर की..

नए जीवन की......वैभवी उमर की..।

मुझे आशीर्वाद बना कर रखना..

मां हूं मैं तुम्हारी..बहन या कोई साथी..

बस विजय ही तुम्हारी चाहती..।।।

किसी के मन में मेरा भी कोई बसर हो..

किसी के मन में मेरा भी कोई बसर हो..

किसी की बातों में मेरी भी कोई खबर हो..।

उसकी आंखो में मेरे लिए कोई ललक हो..

चेहरे पर उसकी..मेरी मुस्कुराहट का असर हो..।

साथ बैठकर मन की कुछ बातें करे कोई..

अपनी भी कहे मन की..मेरी भी सुने कोई..।

ठहर कर बातें जम सी गईं है मन में..

रास्ता खुले बातों का..अबाध सफर हो..।

हां, कुछ ऐसा वक्त आया तो था..

किसी की मौजूदगी ने मन को लुभाया तो था..।

रुक क्यों नहीं पाया , मन ने अपनाया तो था..

उठ गए दोनों..बातें बीच में छोड़कर ..किसी शोर में..

सुन ना सके..एक दूसरे को..किसी और के विभोर में ।

बिछड़ जो गए..ऐसी भी ना कोई अंध लहर हो..।

चलो जोड़ लो..फिर से मन के फासले मिटा लो..।

धूप में बैठो उसी तरह फिर.. बातों को संभाल लो..

कोई अनमनी सुबह ना हो अब..ना कोई ऐसी दोपहर हो..।।

ओझल तन मन...जीवन.. हम तुम केवल बंधे बंधे.. हम राही केवल, नहीं हमराही...

ओझल तन मन...जीवन.. हम तुम केवल बंधे बंधे.. हम राही केवल, नहीं हमराही... चले आते हैं, चले जाते हैं... सुबह शाम बिन कहे सुने.. न हाथों का मेल....