तुम अभी गुज़रे कहां हो छलावे से..
जब गुजरना तब बताना..कैसा था !
खत्म हो गया बड़ी आसानी से जो
वो प्यार बस क्या दिखावे जैसा था..!!
तुमसे तो वो भी ना हुआ..जिसमे सवाल हो...
कैसा था..कौनसा था..जरूर कोई मलाल हो..
तुम रहने दो ये खोज बीन करना..प्यार की
ठगी ठगी सी बातें तुमसे ना फिलहाल हो..
ऐसा है ..रहने दो प्यार का पाठ पढ़ाना..
हम थे जैसे..तुम थे जैसे..ये नहीं वैसा था..
प्यार तो मिथ्या हो गया..वैसा भी ना हुआ..
अपने में कभी ...जैसा था..!!!!!!!!!!!!!
बहुत खूब लिखा आपने।
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteबहुत खूब जी
अच्छा लिखा है ... यूं ही लिखते रहिए ।
ReplyDeleteआशीर्वाद बनाए रखियेगा..
Deleteआपकी आभारी..