कोई होता जो....


कोई होता जो बातो के पुलिंदे बनाता,
एक किताब लिख डा लते ,
जो वो लिखना सिखाता
जीवन में कोई मुकम्मल शाम होती 
कोई दिन खुशनुमा सा आता
बैठते साथ में
लड़ाई झगड़े नहीं होते
हाथ तो दुनियादारी की चीज है
मन से मन मिल जाता
मन जैसा कुछ होता 
बातों का सिलसिला बस मन ही बन जाता

फ़िक्र..

जो नहीं रहे अपने , उनकी फिक्र न करो..

जो तुम्हे याद नहीं करते उनका खुद से जिक्र ना करो!

फ़िक्र करोगे भी तो क्या ,मदद कर ना सकोगे..

मदद कर भी दोगे, खुद को उनका ..

अपना ए अदद कर ना सकोगे..

अब रहने भी दो ..…खुद को इतना छोटा साबित न करो..

जो नहीं रहे अपने ,उन्हें अपना रहने की ज़िद ना करो..

जो नहीं रहे अपने, उनकी फिक्र ना करो..



जहनसीब होते..जो आप करीब होते..

जहनसीब होते..

जो आप करीब होते..

होता ना गर कुछ भी..

सबसे अमीर होते !

अनगिनत अगणित ख्वाहिशों..

के बीच.. एक आपका आना..

ठहर जाना..हो जाता फिर..

बस एक ही ख्वाहिश का रह जाना..

मंजूर होता हमें..हर मंज़र..

चाहे वो कितने भी बेतरतीब होते..

जहनसीब होते ..

जो आप करीब होते ।।


क्या बाकी रह गया..

क्या बाकी रह गया ,

क्या कुछ हासिल हो गया !!

जब चले समेट कर ;

सब कुछ हमेशा के लिए..

हमेशा के लिए ...

सब बाकी रह गया !!

ना वक़्त ने बचाया कुछ , 

ना वक़्त ने गवाया कुछ..

हिसाब किताब ज़िन्दगी का..

लगाते रहे हम  ..

इधर ना था कुछ, 

उधर भी ना कुछ..

मुक़ाबिल रह गया !!

क्या बाकी रह गया, 

क्या कुछ हासिल हो गया !!



मानसिकता

एक सहकर्मी है हमारे ,दो लड़कियां हैं उनकी
आज भी उनका मानना है कि लड़कियों को
वश में रहना चाहिए..मै सोच रही थी ,,वश में
रहना है क्या आखिर?
किसी को वश में करना ही क्यूं है ?
जीवन सुंदर है...
सभी अपने वश में रहे तो कितना अच्छा हो.
परवश तो हीनता को जन्म देता है..
किसी को बलवान किसी को कमजोर बनाता है..
आज अगर मानसिकता ना बदली तो पुरुष समाज 
अपनी बहन बेटियो के साथ कभी न्याय नहीं कर पाएगा और स्त्री समाज खुद की रक्षा !

मन जैसा कुछ..

मन तो बहुत करता है ..

कहने को.. करने को ..

देखने को..सुनने को.. 

मिलता नहीं मन जैसा कुछ..

मन जैसा कुछ कहां मिलेगा??

किसी को पता हो तो..

वो रास्ता बता दे..

कुछ है क्या मन जैसा ..

किसी की बातों में..

है तो अगर वो.. 

मुझे आवाज़ लगा दे..








ओझल तन मन...जीवन.. हम तुम केवल बंधे बंधे.. हम राही केवल, नहीं हमराही...

ओझल तन मन...जीवन.. हम तुम केवल बंधे बंधे.. हम राही केवल, नहीं हमराही... चले आते हैं, चले जाते हैं... सुबह शाम बिन कहे सुने.. न हाथों का मेल....