प्रेम भी कोई चीज़ है क्या !!
करने को ,कर गुजने को !!
एहसास कहूं तो झूठा है..
दिमाग ने दिल को लूटा है..।
मतलबी जब लोग सभी..
ये बंधन कैसे दिलों का हैं !!
कितने उदाहरण है घूमते ..
वो जो थे कभी माथे को चूमते..।
चिता जलाकर भूल गए वो
रुखसत हुए है हम दुनिया से सिर्फ
रिश्ता तो नहीं टूटा है..।
मै हमारे तुम्हारे बच्चों में अभी जिंदा हूं
प्रेम था जिससे तुमको मैं वही वृंदा हूं..
कुंवारे बन के ले आए एक नए प्रेम को..
अब तो यकीनन कहीं प्रेम नहीं..
शरीर से बंधा मन होगा ये
मन से मन का मिलन नहीं..
प्रेम है झूठी परिकल्पना..
प्रेम से भरा यहां कोई मन नहीं..।।