तुम्हारी हमारी ना सही किसी की तो होगी..
ना रही ज़िन्दगी अपनी फिर भी ..।
बाकी ज़िन्दगी होगी ..
तुम कहने को कुछ चूक जाओगे..
हम सुनने से कुछ रह जाएंगे..
बातें फिर भी यही सब ..
आगे पीछे किसी ने कही होंगी..।
मन व्याकुल हो कर शिथिल हो गया जो..
सब कुछ व्यर्थ सा लगता है..।
अब आंखे मूंद ही लें..लेकिन
कुछ सोच सोच कर मन में..
शेष समर चलता है..।
बहुत जिया, जी भर जिया..
सब काम काज निपटा भी दिए..।
जो था आवश्यक संसार व्यवहार..
सब बेड़ा पार लगा भी दिए..।
बूढ़े तन में लेकिन डूबा मन ..
कई पीढ़ियों का संसार रचता है..।।