कोई होता जो बातो के पुलिंदे बनाता,
कोई होता जो....
कोई होता जो बातो के पुलिंदे बनाता,
फ़िक्र..
जो नहीं रहे अपने , उनकी फिक्र न करो..
जो तुम्हे याद नहीं करते उनका खुद से जिक्र ना करो!
फ़िक्र करोगे भी तो क्या ,मदद कर ना सकोगे..
मदद कर भी दोगे, खुद को उनका ..
अपना ए अदद कर ना सकोगे..
अब रहने भी दो ..…खुद को इतना छोटा साबित न करो..
जो नहीं रहे अपने ,उन्हें अपना रहने की ज़िद ना करो..
जो नहीं रहे अपने, उनकी फिक्र ना करो..
जहनसीब होते..जो आप करीब होते..
जहनसीब होते..
जो आप करीब होते..
होता ना गर कुछ भी..
सबसे अमीर होते !
अनगिनत अगणित ख्वाहिशों..
के बीच.. एक आपका आना..
ठहर जाना..हो जाता फिर..
बस एक ही ख्वाहिश का रह जाना..
मंजूर होता हमें..हर मंज़र..
चाहे वो कितने भी बेतरतीब होते..
जहनसीब होते ..
जो आप करीब होते ।।
क्या बाकी रह गया..
क्या बाकी रह गया ,
क्या कुछ हासिल हो गया !!
जब चले समेट कर ;
सब कुछ हमेशा के लिए..
हमेशा के लिए ...
सब बाकी रह गया !!
ना वक़्त ने बचाया कुछ ,
ना वक़्त ने गवाया कुछ..
हिसाब किताब ज़िन्दगी का..
लगाते रहे हम ..
इधर ना था कुछ,
उधर भी ना कुछ..
मुक़ाबिल रह गया !!
क्या बाकी रह गया,
क्या कुछ हासिल हो गया !!
मानसिकता
मन जैसा कुछ..
मन तो बहुत करता है ..
कहने को.. करने को ..
देखने को..सुनने को..
मिलता नहीं मन जैसा कुछ..
मन जैसा कुछ कहां मिलेगा??
किसी को पता हो तो..
वो रास्ता बता दे..
कुछ है क्या मन जैसा ..
किसी की बातों में..
है तो अगर वो..
मुझे आवाज़ लगा दे..
ओझल तन मन...जीवन.. हम तुम केवल बंधे बंधे.. हम राही केवल, नहीं हमराही...
ओझल तन मन...जीवन.. हम तुम केवल बंधे बंधे.. हम राही केवल, नहीं हमराही... चले आते हैं, चले जाते हैं... सुबह शाम बिन कहे सुने.. न हाथों का मेल....
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तुम पर इल्ज़ाम लगाएंगे कैसे.. धुरी तुम्हारी ही..तुम्ही से तो सधे हुए हैं .. बोझिल मन हो सकता है... समर्पण भाव खो सकता है... तुमसे दूर जायेंग...
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पहला कौर बहुत बढ़िया लगता है.. शून्य से कुछ ऊपर उठना.. दरिया लगता है..। जिन्दगी में कुछ खोकर भी.. पाकर सुकून भरा कुछ.. जीने का जरिया लगता है...
