ओ तीर के बैठईया...अब नही मिलोगे क्या ???
आज चले आते हैं वो.....
आज चले आते हैं वो ..
मखमली पहल बनकर..!
जिनकी कोशिश थी कभी..
ढहा देंगे मेरे सपनों के महल..
तूफानी कहर बन कर..!
लेकिन कुछ ऐसे निकले..
मेरी किस्मत के सितारे..
रह गए मंसूबे उनके..
बस बेअसर बन कर..!
बुरा भला किसी का.
तासीर में नहीं हमारी..
मिटे नहीं सूरत में किसी..
देख चुके वो..
जहर बन कर..!
अचरज है मुझे..
क्यूकर बदल जाते हैं !
इंसान अपनी ही धुन से
पलट जाते हैं..!
चलो देखा यूं भी दुनिया को..
दुश्मन कभी ..
कभी सहचर बन कर..!!
एक जगह थी खाली.. सामाजिक आधार बनाना था..।
एक जगह थी खाली..
सामाजिक आधार बनाना था..।
इसलिए जोड़े रिश्ते ..
मन से किसे निभाना था !!
तुम भी बहुत सही थे..
हम भी सीधे साधे..
सादे ही बंधन रखे हमने..
सादे सादे वादे..
उमंगों को बस बहलाना था..!!
ऐसा क्यों होकर रह गया..
पूछते क्यों हो मुझसे..??
सबसे आखिर में मेरी गिनती..!
आखिर में तुम भी ..!
मन तो बेसुध कब का..
प्रेम भी जैसे कोई किदवंती !!
आवश्कता थी साथ की बस..
बस खुद को कहीं ठहराना था !!
ऐसे ही हैं बंधन कई..
मन पर कोई दस्तक नहीं..
प्रतीक कई सर से पैर तक..
सजते तन पर केवल..
पहुंचते कभी मन तक नहीं..
एक घरौंदा बनाया हमने..
और खूब सजाया हमने..
बस कैद कहीं हो जाना था !!
यूं ही जोड़े रिश्ते..
मन से किसे निभाना था!!
कोई कोना हो हृदय का खाली थोड़ा बहुत
कोई कोना हो हृदय का खाली थोड़ा बहुत...
समाहित कर लेना...मेरा अभिवादन..धन्यवाद..
यदि ना हो..तो अविरल धारा बना देना..।
मैं जो ऋणी हूं आपकी..मेरे जुड़े हुए हाथ आपको..
अपने करो को जोड़कर किसी का ऋण चुका देना..।
ऐसे ही हर भावना..जुड़ती जाए अनंत तक..
पहुंचे सुदूर..पूरे गगन में प्रसार हो..
मेरा प्रणाम आपको..मेरा श्री राम आपको..
जिस से मिलो उसको श्री राम का उदघोष सुना देना..
मेरी मुस्कान का स्रोत महादेव का आलय है..
जीवंतता मेरे हृदय की ..उनका ही प्रशय है..
मेरी मुस्कान को समझना संदेश शांति और प्रेम का..
आए जो भी सामने..मिलकर मुस्कुरा देना..।।
यदि कोई विवाद ना हो.. मुझे कोई प्रतिवाद ना हो..
यदि कोई विवाद ना हो..
मुझे कोई प्रतिवाद ना हो..।
छेड़ दिया है जो शंखनाद ..
युद्ध की फिर क्यों शुरुवात ना हो..।
ये अतिक्रमण तुम्हारा..!!
मौन हमारा कब तक होगा..
ये दमन हमारा..तुम्हारे द्वारा..
क्योंकर ना प्रतिउत्तर होगा..।
सुख शांति अगर नहीं पसंद तुम्हें..
कब तक ना समर होगा..!
हमको इससे इंकार नहीं..
कि मानवता से प्यार नहीं..
मानव जो तुम रह ना सके..
हमसे भी ना अब सबर होगा..।
वैसे तो समझो इतनी बात..
अपनी अपनी हद में रहो.
हम नहीं चाहते युद्ध कभी..
तुम भी समझो कि..कुछ भी..
किसी का अप्रिय ना हो..।
खूबसूरत नहीं थी मैं..तुम भी मनोहर नहीं थे
खूबसूरत..नहीं थी मैं..
तुम भी मनोहर नहीं थे..।
चांद विषय है...
ओझल तन मन...जीवन.. हम तुम केवल बंधे बंधे.. हम राही केवल, नहीं हमराही...
ओझल तन मन...जीवन.. हम तुम केवल बंधे बंधे.. हम राही केवल, नहीं हमराही... चले आते हैं, चले जाते हैं... सुबह शाम बिन कहे सुने.. न हाथों का मेल....
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हे ईश्वर ! तुम रहते कहां हो ?? हर जगह मौजूद हो ..ऐसा पता है मुझे.. देख लूं तुम्हें.. दिखते कहां हो?? मैंने सुना..तप करना होगा .. तुम तक पह...
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वो जो था कभी घर आंगन..... वो आज मकान बिकाऊ है. !! क्योंकर इतना हल्कापन.....!! रिश्तों का ये फीका मन......!! सब कुछ कितना चलताऊ है !! खूब कभी...
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अनुबंध मन के ........तोड़कर जाएंगे कहां .. लौटेंगे यहीं..मन के आकर्ष झुठलाएंगे कहां.. व्यथित होंगे.............तलाशेंगे तुम्हीं को.. वेदना ह...