ओ तीर के बैठईया...अब नही मिलोगे क्या ???


ओ तीर के बैठईया !
अब नहीं मिलोगे क्या ??
अब क्या हो गई अलग अलग नैय्या !!
उस पार हमें नहीं ले चलोगे क्या ??
ढूंढते थे हमें ..एक पल भी अलग होकर..
जीवन पथ के साथी..कैसे हो अलग होकर !!
तुमने तो विमान ले लिया ..अवसान ले लिया..
हम थे तुम्हारे ही सहारे..अब कुछ नही कहोगे क्या ??
सैय्या भी कठोर है.....और नींद खुली आंखों की.....
तुम बिन सब रिश्ते झूठे..दूरी ये अब बस सांसों की....
हाथ पकड़ के ले जाओ मुझे भी...अब अपने उस लोक में..
क्या मेरे लिए अब तुम ...इतना भी नहीं करोगे क्या ???
लड़कपन में तुम्हें देखा........यौवन में तुम्हें पाया........
बच्चों की कड़ी लेकर जीवन को साथ बढ़ाया.............
नाती पोतों वालों हमने हर पल साथ बिताया..............
ये वक्त सहन नहीं होता...इतनी लंबी यादें फिर भी.......
अंतिम विदा में मुझे ......फिर से नहीं वरोगे क्या??????
ओ तीर के बैठईया !!  .......अब दूर ही रहोगे क्या !!!!!
नहीं मिलोगे क्या ..............….................................
.....................................................................!!!


आज चले आते हैं वो.....

आज चले आते हैं वो ..

मखमली पहल बनकर..!

जिनकी कोशिश थी कभी..

ढहा देंगे मेरे सपनों के महल..

तूफानी कहर बन कर..!

लेकिन कुछ ऐसे निकले..

मेरी किस्मत के सितारे..

रह गए मंसूबे उनके..

बस बेअसर बन कर..!

बुरा भला किसी का.

तासीर में नहीं हमारी..

मिटे नहीं सूरत में किसी..

देख  चुके वो..

जहर बन कर..!

अचरज है मुझे..

क्यूकर बदल जाते हैं !

इंसान अपनी ही धुन से 

पलट जाते हैं..!

चलो देखा यूं भी दुनिया को..

दुश्मन कभी ..

कभी सहचर बन कर..!!

एक जगह थी खाली.. सामाजिक आधार बनाना था..।

एक जगह थी खाली..

सामाजिक आधार बनाना था..।

इसलिए जोड़े रिश्ते ..

मन से किसे निभाना था !!

तुम भी बहुत सही थे..

हम भी सीधे साधे..

सादे ही बंधन रखे हमने..

सादे सादे वादे..

उमंगों को बस बहलाना था..!!

ऐसा क्यों होकर रह गया..

पूछते क्यों हो मुझसे..??

सबसे आखिर में मेरी गिनती..!

आखिर में तुम भी ..!

मन तो बेसुध कब का..

प्रेम भी जैसे कोई किदवंती !!

आवश्कता थी साथ की बस..

बस खुद को कहीं ठहराना था !!

ऐसे ही हैं बंधन कई..

मन पर कोई दस्तक नहीं..

प्रतीक कई सर से पैर तक..

सजते तन पर केवल..

पहुंचते कभी मन तक नहीं..

एक घरौंदा बनाया हमने..

और खूब सजाया हमने..

बस कैद कहीं हो जाना था !!

यूं ही जोड़े रिश्ते..

मन से किसे निभाना था!!


कोई कोना हो हृदय का खाली थोड़ा बहुत

कोई कोना हो हृदय का खाली थोड़ा बहुत...

समाहित कर लेना...मेरा अभिवादन..धन्यवाद..

यदि ना हो..तो अविरल धारा बना देना..।

मैं जो ऋणी हूं आपकी..मेरे जुड़े हुए हाथ आपको..

अपने करो को जोड़कर किसी का ऋण चुका देना..।

ऐसे ही हर भावना..जुड़ती जाए अनंत तक..

पहुंचे सुदूर..पूरे गगन में प्रसार हो..

मेरा प्रणाम आपको..मेरा श्री राम आपको..

जिस से मिलो उसको श्री राम का उदघोष सुना देना..

मेरी मुस्कान का स्रोत महादेव का आलय है..

जीवंतता मेरे हृदय की ..उनका ही प्रशय है..

मेरी मुस्कान को समझना संदेश शांति और प्रेम का..

आए जो भी सामने..मिलकर मुस्कुरा देना..।।

यदि कोई विवाद ना हो.. मुझे कोई प्रतिवाद ना हो..

यदि कोई विवाद ना हो..

मुझे कोई प्रतिवाद ना हो..।

छेड़ दिया है जो शंखनाद ..

युद्ध की फिर क्यों शुरुवात ना हो..।

ये अतिक्रमण तुम्हारा..!!

मौन हमारा कब तक होगा..

ये दमन हमारा..तुम्हारे द्वारा..

क्योंकर ना प्रतिउत्तर होगा..।

सुख शांति अगर नहीं पसंद तुम्हें..

कब तक ना समर होगा..!

हमको इससे इंकार नहीं..

कि मानवता से प्यार नहीं..

मानव जो तुम रह ना सके..

हमसे भी ना अब सबर होगा..।

वैसे तो समझो इतनी बात..

अपनी अपनी हद में रहो. 

हम नहीं चाहते युद्ध कभी..

तुम भी समझो कि..कुछ भी..

किसी का अप्रिय ना हो..।


खूबसूरत नहीं थी मैं..तुम भी मनोहर नहीं थे

खूबसूरत..नहीं थी मैं..

तुम भी मनोहर नहीं थे..।

साथ में आए तो..
नयन मेरे चमकने लगे..
तुम भी मुस्कुराने लगे..।
और साथ चले जब..
जीवनसाथी बनकर..
आकर्षण के कवच त्यागकर..
हम दोनों एक दूसरे को पसंद आने लगे..।
फिर पंख एक हो गए..
हम अनंत में खो गए..
ढूंढ कर लाए हम किलकारियां..
प्रेम को समझ पाने लगे..।
ख्वाहिशें मेरी हो गईं तुम्हारी..
तुम्हारी चाहते हम चाहने लगे..।
जीवन की सब गलियों से निकलकर..
साथ बैठे जब बहुत दूर चलकर..।
जहां हृदय का पूर्ण संगम हो..।
कुछ खूबसूरत है..तो मैं हूं..
कुछ मनोहर है..वो तुम हो..।।

चांद विषय है...

चांद विषय है ...
कई लेखों का..
कई कविताओं का..
कई बातों का..
कई मुहावरों का..
कई अभियानों का..
कई उड़ानों का..।
अब चांद पर और क्या !
जो है आकर्षण दुनियाभर का
उस पर भला और गौर क्या..।
गुरुत्वाकर्षण ज्वार भाटे का..
पृथ्वी का कोई मीत या..
दुश्मनी में रची बसी कोई रीत..।
चांद रात के किस्से संभालिए..
आभासी दुनिया से खुद को निकालिए..।
दुनिया दूर की खूबसूरत सी ही है..
देखने को असलियत मन की दूरबीन निकालिए..।
बदसूरत होना भी यूं तो कोई पाप पुण्य का लेखा नहीं..।
मन के स्वीकार्य हैं कभी सुलझे हुए कभी उलझे हुए..
कभी किसी ने मन से नहीं देखा, कभी मन देखा नहीं..।।

ओझल तन मन...जीवन.. हम तुम केवल बंधे बंधे.. हम राही केवल, नहीं हमराही...

ओझल तन मन...जीवन.. हम तुम केवल बंधे बंधे.. हम राही केवल, नहीं हमराही... चले आते हैं, चले जाते हैं... सुबह शाम बिन कहे सुने.. न हाथों का मेल....