कोई कोना हो हृदय का खाली थोड़ा बहुत...
समाहित कर लेना...मेरा अभिवादन..धन्यवाद..
यदि ना हो..तो अविरल धारा बना देना..।
मैं जो ऋणी हूं आपकी..मेरे जुड़े हुए हाथ आपको..
अपने करो को जोड़कर किसी का ऋण चुका देना..।
ऐसे ही हर भावना..जुड़ती जाए अनंत तक..
पहुंचे सुदूर..पूरे गगन में प्रसार हो..
मेरा प्रणाम आपको..मेरा श्री राम आपको..
जिस से मिलो उसको श्री राम का उदघोष सुना देना..
मेरी मुस्कान का स्रोत महादेव का आलय है..
जीवंतता मेरे हृदय की ..उनका ही प्रशय है..
मेरी मुस्कान को समझना संदेश शांति और प्रेम का..
आए जो भी सामने..मिलकर मुस्कुरा देना..।।
मेरी मुस्कान को समझना संदेश शांति और प्रेम का..
ReplyDeleteआए जो भी सामने..मिलकर मुस्कुरा देना..।।
बहुत सुंदर,जय श्री राम
आए जो भी सामने, मिलकर मुस्करा देना । जी हां अर्पिता जी । यही करना चाहिए । बात सही है आपकी ।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया।
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteतपती धूप में साया बन जाना
खोते सायों में दीपक बन जाना
मेरी मुस्कान का स्रोत महादेव का आलय है..
ReplyDeleteजीवंतता मेरे हृदय की ..उनका ही प्रशय है..
मेरी मुस्कान को समझना संदेश शांति और प्रेम का..
आए जो भी सामने..मिलकर मुस्कुरा देना..।..दार्शनिक भावों से सजी सुंदर कृति..कृपया मेरे ब्लॉग को भी फ़ॉलो करें..
सुन्दर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत मधुर सुन्दर रचना
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