आज चले आते हैं वो.....

आज चले आते हैं वो ..

मखमली पहल बनकर..!

जिनकी कोशिश थी कभी..

ढहा देंगे मेरे सपनों के महल..

तूफानी कहर बन कर..!

लेकिन कुछ ऐसे निकले..

मेरी किस्मत के सितारे..

रह गए मंसूबे उनके..

बस बेअसर बन कर..!

बुरा भला किसी का.

तासीर में नहीं हमारी..

मिटे नहीं सूरत में किसी..

देख  चुके वो..

जहर बन कर..!

अचरज है मुझे..

क्यूकर बदल जाते हैं !

इंसान अपनी ही धुन से 

पलट जाते हैं..!

चलो देखा यूं भी दुनिया को..

दुश्मन कभी ..

कभी सहचर बन कर..!!

12 comments:

  1. बहुत बढ़िया।

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  2. बहुत सुन्दर और हृदय स्पर्शी रचना।

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  3. सरलता के लिए प्रकृति के अपने इंतजाम है | कलुषित मन वालों के लिए सजा के अपने विधान | बहुत मन से एक चिंतन जो किसी के किलाफ नहीं जाता |सस्नेह शुभकामनाएं प्रिय अर्पिता जी |

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  4. एक गीत है न अर्पिता जी - यार बदल न जाना मौसम की तरह । अकसर वास्ता ऐसे ही रंग बदलने वालों से पड़ता है ज़िन्दगी में । आपकी अभिव्यक्ति अच्छी भी है, सच्ची भी । जुस्तजू जिसकी थी उसको तो न पाया हमने, इस बहाने से मगर देख ली दुनिया हमने ।

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  5. अचरज है मुझे..

    क्यूकर बदल जाते हैं !

    इंसान अपनी ही धुन से

    पलट जाते हैं..!

    चलो देखा यूं भी दुनिया को..

    दुश्मन कभी ..

    कभी सहचर बन कर..!! कोई अचरज नहीं.. ऐसे लोग अक्सर बहुत करीब ही ही मिल जाते हैं,मुझे भी, तुम्हें भी,उसे भी..सटीक कथन..

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  6. आशावादी रचना

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  7. वाह बेहतरीन सृजन

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  8. बहुत सुन्दर वर्णन

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  9. बहुत बहुत सुन्दर रचना

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  10. अचरज है मुझे..

    क्यूकर बदल जाते हैं !

    इंसान अपनी ही धुन से

    पलट जाते हैं..! बहुत सही! बहुत सुंदर रचना!!!

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ओझल तन मन...जीवन.. हम तुम केवल बंधे बंधे.. हम राही केवल, नहीं हमराही...

ओझल तन मन...जीवन.. हम तुम केवल बंधे बंधे.. हम राही केवल, नहीं हमराही... चले आते हैं, चले जाते हैं... सुबह शाम बिन कहे सुने.. न हाथों का मेल....