आज चले आते हैं वो ..
मखमली पहल बनकर..!
जिनकी कोशिश थी कभी..
ढहा देंगे मेरे सपनों के महल..
तूफानी कहर बन कर..!
लेकिन कुछ ऐसे निकले..
मेरी किस्मत के सितारे..
रह गए मंसूबे उनके..
बस बेअसर बन कर..!
बुरा भला किसी का.
तासीर में नहीं हमारी..
मिटे नहीं सूरत में किसी..
देख चुके वो..
जहर बन कर..!
अचरज है मुझे..
क्यूकर बदल जाते हैं !
इंसान अपनी ही धुन से
पलट जाते हैं..!
चलो देखा यूं भी दुनिया को..
दुश्मन कभी ..
कभी सहचर बन कर..!!
बहुत बढ़िया।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और हृदय स्पर्शी रचना।
ReplyDeleteसरलता के लिए प्रकृति के अपने इंतजाम है | कलुषित मन वालों के लिए सजा के अपने विधान | बहुत मन से एक चिंतन जो किसी के किलाफ नहीं जाता |सस्नेह शुभकामनाएं प्रिय अर्पिता जी |
ReplyDeleteएक गीत है न अर्पिता जी - यार बदल न जाना मौसम की तरह । अकसर वास्ता ऐसे ही रंग बदलने वालों से पड़ता है ज़िन्दगी में । आपकी अभिव्यक्ति अच्छी भी है, सच्ची भी । जुस्तजू जिसकी थी उसको तो न पाया हमने, इस बहाने से मगर देख ली दुनिया हमने ।
ReplyDeleteअचरज है मुझे..
ReplyDeleteक्यूकर बदल जाते हैं !
इंसान अपनी ही धुन से
पलट जाते हैं..!
चलो देखा यूं भी दुनिया को..
दुश्मन कभी ..
कभी सहचर बन कर..!! कोई अचरज नहीं.. ऐसे लोग अक्सर बहुत करीब ही ही मिल जाते हैं,मुझे भी, तुम्हें भी,उसे भी..सटीक कथन..
आशावादी रचना
ReplyDeleteवाह बेहतरीन सृजन
ReplyDeleteबहुत सुन्दर वर्णन
ReplyDeleteबहुत ख़ूब
ReplyDeleteबहुत बहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteआप की पोस्ट बहुत अच्छी है आप अपनी रचना यहाँ भी प्राकाशित कर सकते हैं, व महान रचनाकरो की प्रसिद्ध रचना पढ सकते हैं।
ReplyDeleteअचरज है मुझे..
ReplyDeleteक्यूकर बदल जाते हैं !
इंसान अपनी ही धुन से
पलट जाते हैं..! बहुत सही! बहुत सुंदर रचना!!!